अपराधियों को सज़ा से छूट देने का क्या है प्रावधान? सीआरपीसी की धारा 432 के बारे में मुख्य बातें
Lakshita Rajpurohit
29 Aug 2022 10:42 AM IST
हाल ही में बिलकिस बानो मामले में 11 अपराधियों को जेल से रिहा किए जाने पर काफी जन आक्रोश सामने आया है, परंतु, कानून की व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था से भिन्न है, क्योंकि कानून सबके के लिए है लेकिन न्याय सबके लिए नहीं है। कहा गया है विधि तो न्याय प्राप्ति का मात्र एक उपकरण है। हमें कानून और न्याय एक समझने की भ्रांति नहीं पालनी चाहिए बल्कि इन्हें अलग-अलग पहलुओं से देखा जाना चाहिए।
आदर्श समाज का हर व्यक्ति चाहेगा अपराधी को उसके लिए की सजा अवश्य मिलनी चाहिए, लेकिन हमारे संविधान और कानून में कुछ उपबंध ऐसे हैं जो अपराधियों को उनके गुनाह से माफी भी देते हैं। इस नीति के पीछे हमारे ड्राफ्टर्स का उदारवादी दृष्टिकोण था। वो एक ऐसा समाज चाहते थे जिसमें सुधार की गुंजाइश हर जगह रखी जाए, चाहे वह व्यक्ति अपराधी ही क्यों न हो।
हमारे संविधान में अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति और अनुच्छेद 161 राज्य के गवर्नर को शक्ति है कि किसी अपराध की सजा भोग रहे अपराधी की सजा का निलंबन, सज़ा में छूट और सज़ा का लघुकरण कर सकते हैं। शक्तियां दोनो को ही समान हैं, लेकिन गवर्नर को फांसी की सजा के मामलों में माफी देने की आज्ञा नहीं है, जबकि राष्ट्रपति को है।
हमारे संविधिक विधि (Statutory Law) में भी ऐसे प्रावधान हैं। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 से धारा 435 तक एक पूरा अध्याय दिया गया है, जिसमें समुचित सरकार द्वारा अपराधी की सजा के निलंबन, सज़ा माफी, और लघुकरण के उपबंध वर्णित हैं। इन धाराओं में सरकार के पास शक्ति तो हैं परंतु ये कुछ परिस्थितियों के अधीन है। इसमें सरकार अपराधी व्यक्ति की सहमति के बिना उसकी सजा को रोक सकती है, कम कर सकती या उसे रिहा भी कर सकती हैं; किसी शर्त के साथ या शर्त के बिना।
सीआरपीसी धारा 432 दण्डादेशों का निलम्बन या सज़ा माफ करने की शक्ति-
"(1) जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दण्डादेश दिया जाता है तब समुचित सरकार किसी समय, शर्तों के बिना या ऐसी शर्तों पर जिन्हें दण्डादिष्ट व्यक्ति स्वीकार करे उसके दण्डादेश के निष्पादन का निलंबन या जो दण्डादेश उसे दिया गया है, उसका पूरा या उसके किसी भाग माफ कर सकती है।
(2) जब कभी समुचित सरकार के दण्डादेश के निलम्बन या परिहार के लिए आवेदन किया जाता है तब समुचित सरकार उस न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश से जिसके समक्ष दोषसिद्धि हुई थी या जिस द्वारा उसकी पुष्टि की गई थी, अपेक्षा कर सकेगी कि वह इस बारे में कि आवेदन मंजूर किया जाए या नामंजूर किया जाए, अपनी राय, ऐसी राय के लिए अपने कारणों सहित कथित करे और अपनी राय के कथन के साथ विचारण के अभिलेख की या उसके ऐसे अभिलेख की, जैसा विद्यमान हो, प्रमाणित प्रतिलिपि भी भेजे।
(3) यदि कोई शर्त, जिस पर दण्डादेश का निलम्बन या सज़ा माफ की गई है, समुचित सरकार की राय में पूरी नहीं हुई है तो समुचित सरकार निलम्बन या सज़ा रद्द कर सकती है और तब, यदि वह व्यक्ति, जिसके पक्ष में दण्डादेश का निलम्बन या माफी दी गई है, मुक्त है तो वह किसी पुलिस अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है और दण्डादेश के अनवसित भाग को भोगने के लिए प्रतिप्रेषित किया जा सकता है।
(4) वह शर्त, जिस पर दण्डादेश का निलम्बन या परिहार इस धारा के अधीन किया जाए, ऐसी हो सकती है जो उस व्यक्ति द्वारा, जिसके पक्ष में दण्डादेश का निलम्बन या परिहार किया जाए, पूरी की जाने वाली हो या ऐसी हो सकती है जो उसकी इच्छा पर आश्रित न हो।
(5) समुचित सरकार दण्डादेशों के निलम्बन के बारे में और उन शर्तों के बारे में जिन पर अर्जियां उपस्थित की और निपटाई जानी चाहिए, साधारण नियमों या विशेष आदेशों द्वारा निदेश दे सकती है :
परन्तु अठारह वर्ष से अधिक की आयु के किसी पुरुष के विरुद्ध किसी दण्डादेश की दशा में (जो जुर्माने के दण्डादेश से भिन्न है) दण्डादिष्ट व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई कोई ऐसी अर्जी तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी जब तक दण्डादिष्ट व्यक्ति जेल में न हो, तथा-
(क) जहां ऐसी अर्जी दण्डादिष्ट व्यक्ति द्वारा दी जाती है वहां जब तक वह जेल के भारसाधक अधिकारी की मार्फत उपस्थित न की जाए, अथवा
(ख) जहां ऐसी अर्जी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी जाती है वहां जब तक उसमें यह घोषणा न हो कि दण्डादिष्ट व्यक्ति जेल में है।
(6) ऊपर की उपधाराओं के उपबंध दण्ड न्यायालय द्वारा इस संहिता की या किसी अन्य विधि की किसी धारा के अधीन पारित ऐसे आदेश को भी लागू होंगे जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को निर्बाधित करता है या उस पर या उसकी संपत्ति पर कोई दायित्व अधिरोपित करता है।
(7) इस धारा में और धारा 433 में "समुचित सरकार" पद से-
(क) उन दशाओं में जिनमें दण्डादेश ऐसे विषय से संबद्ध किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है या उपधारा (6) में निर्दिष्ट आदेश ऐसे विषय से संबद्ध किसी विधि के अधीन पारित किया गया है, जिस विषय पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, केन्द्रीय सरकार, अभिप्रेत है;
(ख) अन्य दशाओं में, उस राज्य की सरकार अभिप्रेत है जिसमें अपराधी दण्डादिष्ट किया गया है या उक्त आदेश पारित किया गया है।"
यहां निलंबन का अर्थ है, सजा के निष्पादन (execution) को रोकना या वापस लेना। यह सजा का अस्थायी स्थगन है। सज़ा में माफी का अर्थ है, सजा की अवधि को कम करना बिना उसके प्राकृतिक स्वरूप को बदले। लघुकरण का अर्थ है, सजा का प्रभाव कम करना तथा उसके बदले छोटी सजा से बड़ी सजा को प्रस्थापित(restitute) करना।
धारा 432 के निष्कर्ष जैसे-
1. उपधारा(1) के अनुसार जिस अपराध के संबंध में सजा निलंबन या परिहार किया जा रहा है वो किसी भी प्रकृति का अपराध हो सकता है, क्योंकि संहिता इसके बारे में मौन है। साथ ही यह भी कहना उचित होगा की यह सजा से रिहाई का सारवान नियम (substantive rule) बताती है।
लेकिन राज्य सरकार स्वयं माफी नीति संबंधित कानून बना सकती है और उसमें किन्ही अपराधों का उल्लेख कर सकती है जिसके संबंध में सरकार अपराधी की सजा कम करना चाहती है।
जैसे: कोई राज्य सरकार तय कर ले कि वे हत्या और रेप के मामलों में सजा याफ्ता दोषियों को माफी नहीं की जाएगी या 10 वर्ष से कम सजा की अवधि के अपराध में माफी आवेदन किया जा सकेगा, इत्यादि।
2. इस धारा का दूसरा सब से मुख्य तत्व "समुचित सरकार" हैं। उसे ही इस धारा में शक्ति हैं सजा को निलंबित या परिहार करने की। लेकिन समुचित सरकार होगी कौन है, इसका विवरण उपधारा (7) में हमें मिलता भी है, जिसके अनुसार केंद्रीय या राज्य सरकार को समुचित सरकार माना गया है।
जैसे: अपराध राजस्थान में हुआ, विचारण और सजा की घोषणा भी यही की गई तो इस संदर्भ में समुचित सरकार राजस्थान सरकार होगी।
लेकिन यदि अपराध राजस्थान में हुआ और विचारण और सजा की घोषणा गुजरात राज्य में हुई है, तब उस दशा में समुचित सरकार गुजरात सरकार होगी न की राजस्थान सरकार।
इसके अतिरिक्त समुचित सरकार के विषय में कुछ विशिष्ट नियम धारा 435 सीआरपीसी में भी मिलते हैं, जिसके अनुसार जहां मामले का अन्वेषण केंद्रीय अंवेषण एजेंसी द्वार या दिल्ली विशेष स्थापन पुलिस (जैसे CBI) द्वारा अंवेषण किया गया हो उस दशा में धारा 432 का उपयोग करने से पहले राज्य केन्द्र सरकार से पूर्व सहमति लेना आवश्यक है।
जैसे, अपराध राजस्थान में हुआ लेकिन मामले का अंवेषण CBI द्वारा किया जा रहा, अब ऐसी परिस्थिति में राजस्थान सरकार को सजा को रोकने या रिहाई के लिए केन्द्र सरकार से आज्ञा लेनी होगी अन्यथा यह फैसला अवैध होगा।
3. सजा के निलंबन या छूट के लिए उपयुक्त सरकार को किए गए एक आवेदन पर, इससे पहले अदालत के पीठासीन न्यायाधीश से परामर्श लेना आवश्यकता है जिसके द्वारा दोषी ठहराया गया था। वह जज सरकार के आवेदन पर अपनी राय देगा की क्या सरकार को रिहाई का विचार करना चाहिए या नहीं। इस तरह की राय के लिए जज अपने कारणों सहित कथन करेगा और रिकॉर्ड की प्रमाणित प्रति के साथ सरकार को अपनी राय भेजेगा।
ऐसा ही भारत संघ बनाम श्रीहरन (2016) 7 SCC 1 मामले में तय किया गया था कि, विशेष रुप से पीठासीन न्यायाधीश की राय सरकार पर बाध्यकारी होगी, लेकिन रिहाई के लिए सरकार को उस पीठासीन अधिकारी से परामर्श प्राप्त करना चाहिए।
कोर्ट ने जोर देते हुए कहा,
"सिर्फ एक और कारक'नहीं है श्रीहरन (सुप्रा.) में न्यायालय ने कहा कि पीठासीन न्यायाधीश की राय अपराध की प्रकृति, अपराधी के रिकार्ड, उनकी पृष्ठभूमि और अन्य प्रासंगिक कारकों पर प्रकाश डालती है। महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने कहा कि पीठासीन न्यायाधीश की राय सरकार को 'सही' निर्णय लेने में सक्षम बनाएगी कि सजा को माफ किया जाना चाहिए या नहीं। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि पीठासीन न्यायाधीश की राय केवल एक प्रासंगिक कारक है, जिसका छूट के आवेदन पर कोई निर्धारक प्रभाव नहीं पड़ता है।
सीआरपीसी की धारा 19 432 (2) के तहत प्रक्रियात्मक सुरक्षा का उद्देश्य विफल हो जाएगा यदि पीठासीन न्यायाधीश की राय सिर्फ एक अन्य कारक बन जाती है जिसे सरकार द्वारा छूट के लिए आवेदन तय करते समय ध्यान में रखा जा सकता है। तब यह संभव है कि धारा 432(2) के तहत प्रक्रिया महज औपचारिकता बनकर रह जाए।"
4. यदि सरकार द्वारा दोषी पर कोई शर्त अधिरोपित की जाती है और उसका भंग कर दिया जाता है, तो समुचित सरकार रिहाई का फ़ैसला रद्द कर सकती है और इसके बाद उसको किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है और बची हुई सजा के भाग को भोगने के लिए कोर्ट द्वारा पुनः रिमांड किया जा सकेगा है।
इस धारा का प्रभाव यह है कि कैदी को एक निश्चित तारीख को रिहा किया जाएगा और विधि की नजर में वह एक कारावास से स्वतंत्र व्यक्ति होगा, परंतु इसका अर्थ यह नहीं की वो दोषमुक्त कहलाएगा क्योंकि रिहाई की शर्तों का पालन नहीं किए जाने पर उसे किसी भी दिन किसी भी समय वापस कारावास भेजा जा सकता है।
इसी बिंदु पर राज्य सरकार दिल्ली NCT बनाम प्रेम राज मामले में तय किया की धारा 432 सरकार को सजा माफ करने का अधिकार देती है। धारा के उपबंधों का उद्देश है कि यह मात्र दोषी को सजा से छूट देती है और साथ ही दोषी की पहले वाली सजा को सही भी मानती है। रिहाई का प्रभाव दोषमुक्ति (Acquittal) नहीं है, इसीलिए पीड़ित को ऐसी रिहाई को कोर्ट में चुनौती देने का पूर्ण अधिकार होगा।
उपरोक्त निष्कर्ष से स्पष्ट है हर राज्य अपनी माफी संबंधित नीति बना सकता है और लागू कर सकता लेकिन उसपर धारा 432 का प्रक्रियात्मक निर्बंध (Procedural condition) रहेगा, क्योंकि हमारे ड्राफ्टर्स ये जानते थे यदि सरकार द्वारा अपनी नीतियों का मनमाना प्रयोग किया गया तो उसे इस नियम द्वारा रोका जा सकता है। यानि समुचित सरकार द्वारा धारा 432 में वर्णित प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है और आज्ञापक भी है, इसलिए कहना उचित होगा समुचित सरकार की माफी नीति पर धारा 432 का उपबंध अधिभावी होगा।