जीएन साईंबाबा केस : सुप्रीम कोर्ट की शनिवार की सुनवाई को लेकर उठे सवाल

Manu Sebastian

16 Oct 2022 6:37 AM GMT

  • जीएन साईंबाबा केस : सुप्रीम कोर्ट की शनिवार की सुनवाई को लेकर उठे सवाल

    यूएपीए मामले में प्रोफेसर जीएन साईंबाबा और पांच अन्य को आरोपमुक्त करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैर-कामकाजी दिवस शनिवार को असाधारण विशेष सुनवाई को लेकर वकीलों के समूह में चर्चाओं का बाजार गर्म है।

    जिस आनन-फानन में शनिवार (15 अक्टूबर 2022) अपराह्न 3.59 बजे दायर याचिका को गैर-कार्य दिवस पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, वह भी एक विशेष पीठ के समक्ष, इसने तमाम लोगों को चौंका दिया है, क्योंकि वर्तमान बेंच की व्यवस्था के अनुसार, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की कोई नियमित पीठ नहीं है। इसके साथ ही सवाल मास्टर ऑफ द रोस्टर के रूप में भारत के मुख्य न्यायाधीश पर रुक जाते हैं।

    कोर्ट के नियमित कामकाज के समय से परे असाधारण सुनवाई तभी होती हैं, जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे शामिल होते हैं या गंभीर संवैधानिक संकट टालने की आवश्यकता होती है। हमने याकूब मेमन और निर्भया मामलों में आधी रात को सुनवाई देखी है, क्योंकि वे कैदियों की आसन्न फांसी को रोकने को लेकर याचिकाएं थीं। कोर्ट अर्नब गोस्वामी और विनोद दुआ के मामलों की सुनवाई के लिए छुट्टियों पर बैठी थी, क्योंकि उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता दांव पर थी। शासन से संबंधित अत्यावश्यकताओं को देखते हुए कर्नाटक और महाराष्ट्र विधानसभाओं से संबंधित मामलों में विशेष सुनवाई की गई थी। जीएन साईंबाबा मामले में, ऐसी कौन सी तात्कालिकता थी, जो नियमित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होने के लिए दो दिन और इंतजार नहीं कर सकती थी? वकीलों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे एक वाक्य को यहां हम इस्तेमाल कर सकते हैं कि यदि मामले को नियमित रूप से सुना जाता तो "क्या आसमान गिर गया होता"? यह सवाल कई वकील और अन्य नागरिक पूछ रहे हैं। हाईकोर्ट द्वारा मंजूर की गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीनने की याचिका के लिए विशेष सुनवाई क्यों?

    आखिरकार, हाईकोर्ट ने आरोपियों को इस आधार पर तत्काल रिहा करने का आदेश देते हुए कि वैध मंजूरी की कमी के कारण मुकदमा विकृत हो गया था, सीआरपीसी की धारा 437 ए के संदर्भ में ट्रायल कोर्ट को संतुष्ट करने के लिए बॉण्ड निष्पादित करने को कहा था। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने सुनिश्चित किया था कि आगे अपील की सुनवाई लंबित रहने तक अभियुक्त कानून की रचनात्मक हिरासत में रहेगा। सभी छह आरोपी पिछले सात साल से कारावास की सजा काट रहे हैं और उनमें से एक की इस साल अगस्त में अपील के लंबित रहने के दौरान मौत हो गई थी। व्हील चेयर पर पूरी तरह आश्रित प्रोफेसर जीएन साईबाबा 90% शारीरिक रूप से विकलांग हैं और कई बीमारियों से पीड़ित हैं।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुक्रवार (14 अक्टूबर) शाम को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा किये गये मौखिक अनुरोध को खारिज कर दिया था।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने एसजी से कहा,

    "हम बरी किये जाने के आदेश पर रोक नहीं लगा सकते। हम इसे सोमवार को सुनेंगे।" जब एसजी ने याचिका की सुनवाई के लिए जोर देकर आग्रह किया, तो न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, "उन्हें बरी किये जाने का आदेश मिला है। भले ही हम इसे सोमवार को ही (सुनवाई के लिए) लेते हैं, और यह मानते हुए कि हम नोटिस जारी करते हैं, तब भी हम आदेश पर रोक नहीं लगा सकते।

    "क्या साईबाबा मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश इतना विकृत या चौंकाने वाला है कि एक विशेष बैठक में असाधारण सुनवाई की आवश्यकता आन पड़ी हो? ट्रायल कोर्ट की दोषसिद्धि को रद्द करने वाले अपीलीय आदेश कोई असाधारण नहीं हैं। साथ ही, मंजूरी के अभाव और जांच एजेंसी की वैधानिक शक्ति की कमी जैसे आधार पर मुकदमे को खारिज करने वाले अपीलीय आदेश दुर्लभ नहीं हैं, खासकर विशेष कानूनों में।

    यूएपीए के संदर्भ में भी, हाल ही में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ को केरल हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर विचार करने का अवसर मिला, जिसमें हाईकोर्ट ने एक कथित माओवादी नेता को इस आधार पर आरोपमुक्त किया था कि अनिवार्य समय-सीमा के भीतर मंजूरी नहीं दी गई थी।

    जस्टिस शाह की अगुवाई वाली उक्त पीठ ने केरल सरकार को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दी, जब सरकार के वकील ने यह माना कि हाईकोर्ट का विचार कानून में सही था।

    पिछली बार जब तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई के समय में शनिवार को सुनवाई हुई थी, तब भी कोर्ट की बदनामी हुई थी। वह भी मामला किसी नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता या किसी संवैधानिक संकट से संबंधित नहीं था, बल्कि यौन उत्पीड़न के आरोपों पर मीडिया रिपोर्टों के खिलाफ तत्कालीन सीजेआई गोगोई के व्यक्तिगत गुस्से से संबंधित था।

    मौजूदा सीजेआई ललित के कार्यकाल को अब तक कानूनी बिरादरी और आम जनता से उनके द्वारा उठाए गए कई साहसिक और सकारात्मक उपायों के मद्देनजर प्रशंसा मिल रही है - जैसे लंबे समय से लंबित मामलों में संविधान पीठ की सुनवाई फिर से शुरू करना, तीस्ता सीतलवाड़ और सिद्दीकी कप्पन की जमानत याचिकाओं पर शीघ्र निर्णय, लाइव-स्ट्रीमिंग की शुरुआत, मामलों का तेजी से निपटान आदि। हालांकि, जीएन साईबाबा मामले में शनिवार की सुनवाई

    भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनके अब तक के बेदाग रिकॉर्ड पर एक धब्बा छोड़ देगी।

    Next Story