कोरोनावायरस और संविधान: घरेलू कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा दया नहीं दाय‌ित्व है

LiveLaw News Network

30 March 2020 1:41 PM GMT

  • कोरोनावायरस और संविधान: घरेलू कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा दया नहीं दाय‌ित्व है

    उदित भाटिया

    कॉव‌िड-19 का प्रकोप रोकने के लिए देश भर में लागू किए लॉक डाउन के बाद अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की स्‍थ‌िति और प्रतिबंध के बाद उन पड़ने वालों प्रभावित को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है? राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों से अनुरोध किया ‌था कि वे अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देना जारी रखें, लॉकडाउन की अवधि में जिन्हें ज्यादा नुकसान हो सकता था।

    गौतम भाटिया ने हाल ही में संवैधानिक ढांचे (विशेष रूप से, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23) के तहत कर्मचारियों के सुरक्ष‌ित कामकाज के अधिकारों पर एक आलेख लिखा था। आम नागरिक, नियोक्ता के रूप में अपने घरेलू कर्मचारियों को जो संरक्षण प्रदान करता है, उन पर जोर देकर मैं उनकी दलीलों में अपने पूरक जोड़ना चाहता हूं।

    'घरेलू कर्मचारी' से तात्‍पर्य ऐसे कर्मचारियों से हैं, जो घरेलू कामकाज में लगे हैं, जैसे क्लीनर, रसोइया, कपड़े धोने का स्टाफ, सुरक्षा कर्मचारी आदि।

    इस आलेख में मैंने यह स्पष्ट किया है कि घरेलू कर्मचारियों को तनख्वाह देना जारी रखना, नियोक्ताओं का उत्तरदायित्व है, न कि धर्मार्थ कार्य। आलेख में नियोक्ता के रूप में नागरिकों की ही बात की गई है, न कि किसी कॉर्पोरेशन की। हालांकि यहां दिए गए तर्कों को कॉर्पोरेशन पर भी लागू किया जा सकता है। हालांकि, कॉर्पोरेशन को, आम नागरिकों के तुलना में, कई विशेषाधिकारों प्राप्त होते हैं जैसे कि इकाई परिरक्षण, परिसंपत्ति परिबंधन और सीमित देयता आदि।

    यही कारण होता है कि निगमों के दायित्व, नियोक्ता के रूप में आम नागरिक के दायित्वों से अधिक कठोर होते हैं।

    मेरे तर्क का आधार यह है कि एक कल्याणकारी राज्य की गैरमौजूदगी में समृद्घ नागरिकों का यह कर्तव्य होता है कि वो घरेलू कर्मचारियों के रोजगार और आय की रक्षा का दाय‌ित्व वहन करें। भारत में घरेलू कर्मचारियों को मामूली स्तर का राजकीय संरक्षण प्राप्त है। कल्याणकारी प्रणाली के रूप में एक ऐसा ढांचा मौजूद है, जो बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है। हालांकि कई लोगों के लिए, निजी रोजगार ही वह ढांचा है, जो इन अधिकारों और हितों सुरक्षा कर पाता है।

    चूंकि, कल्याणकारी राज्य का न होना धनाढ्यों के ‌लिए धन संचय करने का एक मौका भी है। और धन का गैर-बराबरी का बंटवारा अमीर को और अमीर बना रहा है। इसलिए घरेलू कर्मचारियों के रोजगार की सुरक्षा का दायित्व अमीर नागरिकों पर आता है। ऐसे क्यों है? इसकी आगे जांच करते हैं।

    केस 1: कल्पना कीजिए कि मैं बिना किसी कारण के अपने पड़ोसी के ओवन ले लेता हूं। और मान लीजिए कि उसके पास खाना पकाने के ‌लिए एक मात्र साधन ओवन ही था। यह सुझाव देना ठीक नहीं होगा कि मेरा कर्तव्य है कि मैं पड़ोसी का भोजन पकाकर अपने कृत्यों की भरपाई करूं (यह मानकर कि मैं तुरंत ओवन लौटाने के लिए किसी कारण से असमर्थ हूं)। हालांकि हमारे उद्देश्यों के लिए, इस परिदृश्य में एक आपत्ति है।

    एक वर्ग के रूप में अपेक्षाकृत अमीर, निश्चित रूप से गरीबों को उपलब्ध कमजोर सुरक्षा तंत्र का दोषी ठहराया जा सकता है।

    यह संभव है कि उनके सकारात्मक कार्यों, जैसे कि जिन राजनेताओं का उन्होंने चुनाव किया, या उनकी गलतियां, जैसे कि सामाजिक सुरक्षा में मौजूद ऊंचनीच पर उनकी चुप्पी, उन्हें नैतिक रूप दोषी ठहराती है। ऐसी स्थिति में अमीर नागरिकों का यह उपचारात्मक कर्तव्य है कि वो गरीबों की मदद करें।

    हालांकि, इस बिंदु से यह निहितार्थ निकालना कि अमीरों का गरीबों के प्रति व्यक्तिगत यह कर्तव्य है, मुश्क‌िल होगा। निस्संदेह, समस्या यह है कि अपेक्षाकृत अमीर वर्ग के कुछ सदस्य निर्दोष होने का दावा कर सकते हैं: हो सकता है कि उन्होंने वर्तमान सरकार को वोट नहीं दिया हो, या उन्होंने गरीबों के लिए अधिक सामाजिक सुरक्षा की पैरवी की हो। आइए हम इसे दोषहीनता की समस्या कहते हैं।

    केस 2: एक दूसरा काल्पनिक मामला दोषहीनता की समस्या को दूर करने में मदद कर सकता है। कल्पना कीजिए कि मेरी पड़ोसी के पाए खान बनाने के लिए एक मात्र साधन ओवन ही है। अब मान लीजिए, मेरी जानकारी के बिना एक आगंतुक वह ओवन लेता चला गया।

    उस आगंतुक ने ओवन की बिक्री के पैसे से मेरे ल‌िए टेलीविजन सेट खरीदना चाहा। ऐसा करने के बाद, वह गायब हो गया- या शायद मेरे पड़ोसी को कोई भी मुआवजा देने के लिए तैयार नहीं है। मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में पड़ोसी के लिए खाना बनाना मेरा कर्तव्य है।

    ऐसा इसलिए कि भले ही मैंने अपने पड़ोसी का नुकसान नहीं किया है, फिर भी मुझे इससे अनुचित लाभ मिला है। अब जब तक कि मैं टेलीविजन सेट बेचकर अपने पड़ोसी को ओवन वापस नहीं कर देता, यह सुनिश्‍चित करना मेरी जिम्‍मेदारी है कि उसे रोजाना भोजन मिलता रहे।

    यह उदाहरण दोषहीनता की समस्या से उत्पन्न चुनौती को सुलझा देता है।

    यहां, किसी की निष्ठुरता के कारण किसी के नुकसान के लिए किसी की जिम्‍मेदारी नहीं है। बल्कि, किसी के दोष के प्रति अन्याय से लाभान्वित होने के बावजूद, जब कोई व्यक्ति दोषहीन होता है, तो वंचित पार्टी के कुछ नुकसान को 'कम करने' के लिए एक कर्तव्य को जन्म देता है। इस तर्क का अंतर्निहित अंतर्ज्ञान काफी परिचित है।

    यदि हम एक जातीय समूह से संबंधित हैं, जो अनुचित लाभ उठाता है, तो हमारा कर्तव्य है कि हम नुकसान में रहे समूह को हुए नुकसान को कम करें।

    कल्याणकारी राज्य को पीछे हटने के लिए अपेक्षाकृत अमीरों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, अब तक अपेक्षाकृत सपन्न वर्ग ही इससे वे इससे लाभान्वित होते रहे हैं, फिर भी उनका कर्तव्य है कि कम लाभान्वितों के नुकसान को कम करें।

    केस 2 के साथ भी एक समस्या है। सामाजिक सुरक्षा के अभाव में यह अमीरों की ही जिम्मेदारी ही क्यों हो कि वो गरीबों को होने वाले नुकसान की भरपाई करें। यह हमें यह नहीं बताता है कि अमीरों का गरीबों प्रति विशिष्ट दायित्व क्यों हैं? आइए, हम इसे विनिर्देशन समस्या कहते हैं।

    केस 3: अब मैं एक उदाहरण देता हैं, जो हमें विनिर्देशन की समस्या का समाधान करने में मदद कर सकता है, जो हमें दिखा रहा है कि संपन्न नियोक्ता अपने घरेलू कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से क्षतिपूरक शुल्क क्यों रखते हैं।

    मान लीजिए कि मेरे पड़ोसी के पास, ओवन के अलावा, एक माइक्रोवेव है, जिसे वह खाना पकाने के लिए उपयोग कर सकता है। मान लीजिए कि उसे भोजन पकाने के लिए दो साधनों में से कम से कम एक की आवश्यकता है। अब कल्पना कीजिए, फिर से, एक आगंतुक मेरे पड़ोसी का ओवन छीन लेता है और इसकी बिक्री के पैसे मुझे एक टेलीविजन सेट खरीदता है।

    इस उदाहरण में, मेरे पड़ोसी के पास अभी भी एक माइक्रोवेव है, जिसका उपयोग वह अपने भोजन पकाने के लिए कर सकता है। जैसे, मैं उसे कुछ मुआवजा दे सकता हूं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि मुझे उसके लिए खाना बनाना चाहिए, क्योंकि वह अपना भोजन बनाना जारी रख सकता है। लेकिन कल्पना कीजिए कि उसके पास जो माइक्रोवेव है, वह मैंने उसे उधार दिया था।

    मुझे लगता है कि, मुझे वर्तमान परिस्थितियों में माइक्रोवेव नहीं लेना चाहिए। चूंकि मुझे उसकी ओवन की कमी से लाभ हुआ है, इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मैं उसकी भोजन तैयार करने की क्षमता को होने वाले किसी भी नुकसान को कम कर दूं। अगर मेरे माइक्रोवेव को वापस लेने उसे उसे खाना पकाने दिक्कत होती है, तो मेरा कर्तव्य है में उसे खाना पकाने साधनों से वंचित न करूं।

    यह मामला, मुझे लगता है कि दिखाता है कि कल्याणकारी राज्य की अनुपस्थिति कैसे, जिस तरह से हमें घरेलू रोजगार के बारे में सोचना चाहिए, उससे जुड़ी है। चूंकि कल्याणकारी राज्य की अनुपस्थिति से अपेक्षाकृत अमीरों को अनुचित लाभ गरीबों की हानि के लिए है, इसलिए उनका कर्तव्य है कि वे गरीबों को ऐसी स्थिति में रखने से परहेज करें जो कल्याणकारी राज्य की अनुपस्थिति में उनका संकट बढ़ा।

    रोजगार और और इससे होने वाली आय एक ऐसा कारक है, जिस पर गरीब भरोसा करता हैं - जैसे हमारे उदाहरण में माइक्रोवेव है- इसलिए सामाजिक सुरक्षा के अभाव में अमीरों का कर्तव्य है कि गरीबों को ऐसे खतरे में डालने से बचें।

    प्रधानमंत्री की यह दलील कि नियोक्ता अपने घरेलू कर्मचारियों को तनख्वाह देना जारी रखे, पूरी तरह से उन प्रामाणिक संबंधों पर ध्यान नहीं देता, जिनमें निजी नियोक्ता और घरेलू कर्मचारी खुद को पाते हैं।

    कल्याणकारी राज्य की अनुपस्थिति में और विशेष रूप से, एक महामारी की मौजूदगी में, कर्मचारियों की आय नियोक्ताओं का कर्तव्य है। इस तरह के रोजगार की सुरक्षा को परोपकार या दया के कार्य के रूप में रेखांकित करना नैतिक रूप से ठीक नहीं है, उस दाय‌ित्व के प्रति असम्मान है, जिससे हम जुड़ें हैं।

    यह लेखक के न‌िजी विचार हैं।

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