ट्रायल कोर्ट को बिना सोचे-समझे गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं करना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

Shahadat

24 July 2024 5:46 AM GMT

  • ट्रायल कोर्ट को बिना सोचे-समझे गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं करना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट बिना सोचे-समझे और कानून के तहत उसे उचित ठहराए बिना गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं कर सकता।

    जस्टिस सुव्रा घोष की एकल पीठ ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट रद्द कर दिया, जिन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत आरोप लगाए गए, जबकि उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने बिना सोचे-समझे याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था।

    आरोप पत्र में याचिकाकर्ताओं पर भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के तहत अपराध का आरोप नहीं लगाया गया और आरोपित आदेश में यह खुलासा नहीं किया गया कि वे कानून की प्रक्रिया से बच सकते हैं या सबूतों से छेड़छाड़/नष्ट कर सकते हैं। बेशक जांच अधिकारी ने जांच के दौरान याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार करना जरूरी नहीं समझा और आरोप पत्र का संज्ञान लेने पर अदालत के समक्ष उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने कोई कदम नहीं उठाया।

    न्यायालय ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में ट्रायल कोर्ट को कानून के अनुसार इसे जारी करने का औचित्य सिद्ध किए बिना याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं करना चाहिए।

    याचिकाकर्ता 19 सितंबर 2023 को झारग्राम के प्रथम न्यायालय के एडिशनल सेशन जज द्वारा विशेष मामला नंबर 5/2021 के संबंध में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने के आदेश से व्यथित थे।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं का नाम एफआईआर में नहीं था और शिकायत दर्ज होने के छह साल बाद आरोप पत्र प्रस्तुत करने पर उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया।

    यह कहा गया कि हालांकि सेशन जज ने 6 अगस्त 2021 को प्रस्तुत आरोप पत्र का संज्ञान लिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कोई समन/वारंट जारी नहीं किया गया।

    19 सितंबर 2023 को ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं सहित फरार आरोपियों के खिलाफ बिना कोई कारण बताए गिरफ्तारी का वारंट जारी किया, यह तर्क दिया गया,

    यह प्रस्तुत किया गया कि जब जांच के दौरान याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार नहीं किया गया तो चार्जशीट का संज्ञान लेने पर कोर्ट द्वारा वारंट नहीं बल्कि समन जारी किया जाना चाहिए।

    यह तर्क दिया गया कि जिन आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420/406//409/467/120बी के तहत आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया, उन्हें कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत दी गई।

    राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं सहित सभी आरोपियों के खिलाफ अन्य अपराधों के अलावा संहिता की धारा 409/120बी के तहत समग्र आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया।

    यह कहा गया कि धारा 409 जघन्य अपराध है और ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी करके उन्हें ट्रायल के दौरान उपस्थित होने के लिए सही किया।

    हालांकि, इन दलीलों से असहमत होते हुए अदालत ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने बिना सोचे-समझे गिरफ्तारी का वारंट जारी किया और याचिकाकर्ताओं पर धारा 409 आईपीसी के तहत आरोप नहीं लगाए गए।

    तदनुसार, अदालत ने वारंट रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: शशांक मैती और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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