जीवन और समानता का अधिकार अंतर्निहित मानवाधिकार, नागरिक तक सीमित नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट ने सजा काटने के बावजूद कैद किए गए पाकिस्तानी व्यक्ति को रिहा किया

Shahadat

9 March 2024 4:41 AM GMT

  • जीवन और समानता का अधिकार अंतर्निहित मानवाधिकार, नागरिक तक सीमित नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट ने सजा काटने के बावजूद कैद किए गए पाकिस्तानी व्यक्ति को रिहा किया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में पाकिस्तानी नागरिक को रिहा करने का आदेश दिया। उक्त व्यक्ति विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत अपनी पूरी सजा काटने के बाद भी जेल में बंद था।

    जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने कहा:

    भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 भारतीय नागरिकों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि भारत की धरती पर रहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध हैं। वास्तव में [यह] संविधान से प्रवाहित नहीं होता है, बल्कि इसे केवल संविधान द्वारा मान्यता दी गई है। ऐसे अधिकार अंतर्निहित मानवाधिकार हैं, जो मानव अस्तित्व कहलाने योग्य जीवन से अभिन्न हैं। किसी भी परिस्थिति में किसी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता, जिसने अपनी सजा पूरी कर ली है, उसको जेल की किसी भी कोठरी में हिरासत में नहीं रखा जा सकता। याचिकाकर्ता नं. 2 सम्मानपूर्वक जीवन जीने का हकदार है।

    याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया कि वह 2001 में पाकिस्तानी पासपोर्ट और वैध वीजा के साथ देश में आया था, लेकिन विदेशी अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ा। 2019 में 2022 तक तीन साल के लिए दोषी ठहराया गया।

    यह तर्क दिया गया कि हालांकि उसे रिहा कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन वह अपनी सजा समाप्त होने के बाद भी हिरासत में रहा।

    राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि सजा समाप्त होने के बाद याचिकाकर्ता को पाकिस्तान वापस भेजा जाना था। मगर निर्वासन लंबित रहने तक व्यक्ति को कैदियों से दूर, लेकिन जेल परिसर के भीतर सेल में रखा गया।

    यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को पाकिस्तानी दूतावास तक बेहतर पहुंच के लिए तिहाड़ जेल ले जाया गया, लेकिन दूतावास ने उसकी नागरिकता स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उसके निर्वासन से संबंधित जटिलताओं के कारण वह हिरासत में रहा।

    राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि जो व्यक्ति किसी देश का नागरिक नहीं है, उसे देश में स्वतंत्र रूप से रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। 1946 अधिनियम के तहत ऐसे व्यक्तियों के लिए गिरफ्तारी और हिरासत के आदेश पारित किए जा सकते हैं।

    संघ के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को निर्वासित करना ही एकमात्र विकल्प था, लेकिन ऐसा जल्द नहीं होगा, क्योंकि पाकिस्तानी अधिकारियों ने उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

    यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता वैध वीजा के साथ आया था, लेकिन उसे अधिक समय तक रुकने का दोषी ठहराया गया। एक विदेशी के अधिकार भारतीय नागरिक के अधिकारों के बराबर नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी सजा काटने के बाद भी जेल में है। आख़िरकार जेल की कोठरी जेल की कोठरी ही होती है, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए।

    कोर्ट ने संविधान के तहत अनुच्छेद 14 और 21 के उन अधिकारों पर गौर किया, जो भारतीय धरती पर किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध थे, न कि केवल नागरिकों के लिए। साथ ही माना कि ये अधिकार निरंकुश है और याचिकाकर्ता को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है।

    तदनुसार, उसकी रिहाई का आदेश देते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता किसी आदमी की भूमि में नहीं था और ऐसी स्थिति में, जहां राज्य के कानून के कवच में 'झंझट' है, संवैधानिक अदालत को उसकी रक्षा के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए।

    तदनुसार, याचिकाकर्ता को उसकी मूल सजा के खिलाफ अपील लंबित रहने तक कुछ शर्तों के साथ रिहाई की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: मोनोयारा बेगम बनाम भारत संघ

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