वैधानिक प्रक्रिया के माध्यम से आयु निर्धारित होने पर कर्मचारी की जन्मतिथि में सुधार की अनुमति नहीं दी जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

Shahadat

27 Jun 2025 10:59 AM

  • वैधानिक प्रक्रिया के माध्यम से आयु निर्धारित होने पर कर्मचारी की जन्मतिथि में सुधार की अनुमति नहीं दी जा सकती: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस अनिरुद्ध रॉय की पीठ ने माना कि जब वैधानिक प्रक्रिया का उचित तरीके से पालन किया गया हो तो कोई भी प्रक्रियागत त्रुटि या कानून का गलत इस्तेमाल वास्तविक या लिपिकीय गलती नहीं मानी जाती। वर्तमान मामले में चूंकि याचिकाकर्ता की आयु उसकी नियुक्ति के समय लागू नियमों के अनुसार निर्धारित की गई, इसलिए जन्मतिथि में सुधार के उसके अनुरोध को अस्वीकार करना अवैध नहीं माना जा सकता।

    संक्षिप्त तथ्य:

    याचिकाकर्ता दामोदर घाटी निगम (DVC) के ग्रुप सी कर्मचारी हैं, जिन्हें 19 जून, 1995 को एक प्रस्ताव के माध्यम से अनुकंपा के आधार पर नियुक्त किया गया था।

    प्रस्तुत किए गए स्थानांतरण प्रमाण पत्र में उनकी आयु 10 दिसंबर, 1968 दर्शाई गई। हालांकि, प्रमाण पत्र में जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सत्यापन नहीं था, जिसके कारण मेडिकल बोर्ड ने मूल्यांकन किया, जिसमें उनकी आयु 30 वर्ष (यानी, जन्म तिथि: 13 जून, 1965) निर्धारित की गई। इसके आधार पर उनकी नियुक्ति को अंतिम रूप दिया गया।

    6 सितंबर, 1999 को स्थानांतरण प्रमाण पत्र को ठीक से सत्यापित करवाने के बाद याचिकाकर्ता ने अपनी जन्म तिथि में सुधार के लिए आवेदन किया। हालांकि, 7 अगस्त, 2019 को जारी किए गए पहचान पत्र में उनकी जन्म तिथि 10 दिसंबर, 1968 दर्शाई गई, लेकिन कोई औपचारिक सुधार नहीं किया गया। उन्होंने आधिकारिक पहचान पत्रों और हलफनामे के साथ 15 मार्च, 2023 को अपना अनुरोध नवीनीकृत किया। जून, 2024 में RTI आवेदन दाखिल करने और नवंबर, 2024 में भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुपालन का निर्देश देने वाला जवाब मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने 4 अप्रैल, 2025 को अंतिम अभ्यावेदन दिया।

    प्रतिवादी ने जन्म तिथि के अपने प्रस्तुत प्रमाण के आधार पर 9 अप्रैल, 2025 को रिटायरमेंट नोटिस जारी किया, जिसमें रिटायरमेंट की तिथि 30 जून, 2025 बताई गई। रिटायरमेंट लाभों के निपटान के लिए एक नोटिस भी दिया गया। याचिकाकर्ता द्वारा 25 अप्रैल, 2025 को जन्म तिथि सुधार के लिए एक और आवेदन प्रस्तुत करने के बावजूद, DVC ने 30 अप्रैल, 2025 को एक संचार के माध्यम से अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि जन्म तिथि निर्धारित करने के लिए प्राथमिक शर्त स्कूल द्वारा जारी स्थानांतरण प्रमाण पत्र होना चाहिए, जिसे जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा विधिवत प्रमाणित किया गया हो। केवल ऐसे प्रमाणित प्रमाण के अभाव में ही उम्मीदवार को आयु निर्धारण के लिए मेडिकल बोर्ड के पास भेजा जा सकता है।

    आगे यह भी कहा गया कि चूंकि याचिकाकर्ता ने नियुक्ति के पांच साल के भीतर विधिवत सत्यापित स्थानांतरण प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया और अपनी जन्मतिथि में सुधार के लिए आवेदन किया। इसलिए उसकी जन्मतिथि 13 जून, 1965 के स्थान पर 10 दिसंबर, 1968 कर दी जानी चाहिए थी। इसके समर्थन में वकील ने दो परिपत्रों का हवाला दिया: भारत सरकार का सर्कुलर दिनांक 16 दिसंबर, 2014 और DVC का परिपत्र दिनांक 19 जनवरी, 1985, दोनों ही निर्धारित शर्तों के तहत इस तरह के सुधार की अनुमति देते हैं।

    इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि DVC ने याचिकाकर्ता की जन्मतिथि के रूप में लगातार 10 दिसंबर, 1968 को मान्यता दी, जैसा कि उसके द्वारा जारी किए गए पहचान पत्र में दर्शाया गया। इसे सही मानने के बाद DVC अब विपरीत स्थिति नहीं ले सकता है और याचिकाकर्ता के जन्मतिथि में सुधार के अनुरोध को अस्वीकार करने में उचित नहीं था।

    उत्तर में प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि सेवा पुस्तिका में याचिकाकर्ता की जन्मतिथि दर्ज करने में कोई लिपिकीय त्रुटि नहीं थी। चूंकि प्रस्तुत स्थानांतरण प्रमाण-पत्र में उचित सत्यापन का अभाव था, इसलिए याचिकाकर्ता की आयु 29 जनवरी, 1985 को जारी इंटरव्यू पत्र के खंड 2 के अनुसार मेडिकल एक्सपर्ट विशेषज्ञ द्वारा निर्धारित की गई, इसलिए उसकी आयु वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार निर्धारित की गई।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को 19 जून, 1995 को नियुक्ति पत्र जारी किया गया। हालांकि, उन्होंने 6 सितंबर, 1999 को आवेदन प्रस्तुत करने से पहले लगभग चार साल इंतजार किया, जिसमें उनकी नियुक्ति के बाद जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सत्यापित स्थानांतरण प्रमाण-पत्र के आधार पर उनकी जन्मतिथि में सुधार की मांग की गई। यह देरी एक विलंबित और बाद में सोचे-समझे दृष्टिकोण को इंगित करती है, जो अनुरोध की विश्वसनीयता को कम करती है।

    अवलोकन:

    अदालत ने शुरू में ही नोट किया कि DVC अपने स्वयं के क़ानून और DVC Act के तहत बनाए गए सेवा विनियमों द्वारा शासित है। DVC याचिकाकर्ता की नियुक्ति 1995 में हुई तथा 29 जनवरी, 1985 का सर्कुलर इस पर लागू होता है। इसलिए उनका मामला उक्त परिपत्र में उल्लिखित "भविष्य के मामलों" की श्रेणी में आता है।

    प्रासंगिक धाराओं के सार्थक और सामंजस्यपूर्ण अध्ययन पर न्यायालय ने दो अलग और स्वतंत्र प्रावधान पाए: (i) यदि कोई उम्मीदवार मैट्रिक पास नहीं है तो आयु प्रमाण स्कूल एडमिशन रजिस्टर अर्क या नगरपालिका जन्म रजिस्टर जैसे विधिवत प्रतिहस्ताक्षरित दस्तावेजों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना चाहिए; और (ii) यदि ऐसा प्रमाण उपलब्ध या वैध नहीं है तो उम्मीदवार को मेडिकल मूल्यांकन से गुजरना होगा। ये प्रावधान परस्पर विरोधी नहीं हैं, बल्कि अनुक्रमिक विकल्प हैं। इन्हें संयुक्त रूप से नहीं बल्कि स्वतंत्र रूप से लागू किया जाना चाहिए।

    उपर्युक्त के आधार पर न्यायालय ने माना कि इस मामले में 1995 में प्रस्तुत स्थानांतरण प्रमाण पत्र जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सत्यापित नहीं किया गया, जैसा कि इंटरव्यू लेटर के खंड-2 के तहत आवश्यक है। परिणामस्वरूप, DVC के पास वैध आयु प्रमाण नहीं है और याचिकाकर्ता को एक मेडिकल बोर्ड के पास भेजा गया।

    इसने आगे देखा कि 12 जून, 1995 की मेडिकल रिपोर्ट में याचिकाकर्ता की आयु 30 वर्ष आंकी गई और उसकी जन्म तिथि तदनुसार सेवा पुस्तिका में 13 जून, 1965 दर्ज की गई। यह न तो लिपिकीय त्रुटि थी और न ही वास्तविक गलती, बल्कि DVC के सेवा विनियमों और खंड-2 के तहत एक वैध वैकल्पिक प्रक्रिया के अनुसार की गई एक उचित प्रविष्टि थी।

    इसने आगे कहा कि DVC सेवा विनियमों के विनियमन 21 के अनुसार किसी कर्मचारी की जन्मतिथि में केवल तभी परिवर्तन किया जा सकता है, जब वास्तविक लिपिकीय गलती स्थापित हो। हालांकि, इस मामले में ऐसी कोई गलती नहीं हुई। सेवा पुस्तिका में दर्ज जन्मतिथि इंटरव्यू पत्र के खंड-2 और DVC की मान्यता प्राप्त प्रक्रिया के अनुसार आयोजित मेडिकल बोर्ड के मूल्यांकन पर आधारित थी। इसलिए प्रविष्टि उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए की गई और विनियमन 21 के तहत इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने कहा,

    “न्यायालय विशेषज्ञों के निर्णय और राय पर अपील नहीं कर सकता और न ही न्यायालय किसी विशेषज्ञ की राय को प्रतिस्थापित कर सकता है। मेडिकल एक्सपर्ट ने अपनी उक्त मेडिकल रिपोर्ट में राय दी थी और याचिकाकर्ता की आयु का आकलन किया था।”

    इसने निष्कर्ष निकाला कि जब अभिलेखों से पता चलता है कि वैधानिक प्रक्रियाओं का विधिवत पालन किया गया तो कोई भी कथित प्रक्रियात्मक त्रुटि या कानून का गलत इस्तेमाल वास्तविक या लिपिकीय गलती नहीं है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने उचित प्रक्रिया के अनुसार बोर्ड के समक्ष मेडिकल जांच कराई और परिणामी रिपोर्ट - जिसे कभी चुनौती नहीं दी गई - उसकी दर्ज जन्म तिथि का आधार बनी। इसलिए लिपिकीय त्रुटि का सवाल ही नहीं उठता। इसे देखते हुए याचिकाकर्ता के आवेदन के समय और तरीके सहित अन्य विवादों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।

    तदनुसार, वर्तमान याचिका खारिज कर दी गई।

    Case Title: Gangadhar Mondal Vs. Union of India & Ors

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