रोजगार स्थिति निर्धारण का मामला इंडस्ट्रीयल ट्रिब्यूनल के अधीन: कलकत्ता हाईकोर्ट
Praveen Mishra
14 March 2025 10:02 AM

कलकत्ता के जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) की एकल पीठ ने भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता (IIMC) द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने माना कि यह निर्धारित करने के लिए कि क्या IIMC मुख्य नियोक्ता था, औद्योगिक न्यायाधिकरण ही सही मंच है। अदालत ने यह भी कहा कि केवल IIMC द्वारा नकार देना ही औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत संदर्भ को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि नियोक्ता-कर्मचारी संबंध कानून और तथ्य दोनों का मिश्रित प्रश्न है, जिसे न्यायाधिकरण द्वारा तय किया जाना चाहिए।
मामलो की पृष्ठभूमि:
IIMC भारतीय प्रबंधन संस्थान अधिनियम, 2017 के तहत एक सांविधिक निकाय है। इसने क्षेत्रीय श्रम आयुक्त द्वारा औद्योगिक न्यायाधिकरण को किए गए संदर्भ के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की थी।
विवाद वर्ष 2022 में तब उत्पन्न हुआ जब IIMC के छात्रों ने आरोप लगाया कि मेस ठेकेदार बासी और दूषित भोजन परोस रहा था। इसके कारण विरोध प्रदर्शन हुए, और ठेकेदार को एक नए विक्रेता से बदल दिया गया। हालांकि, मेस के श्रमिकों ने दावा किया कि उन्हें उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ही हटा दिया गया। इससे आहत होकर उन्होंने संबंधित प्राधिकरणों से संपर्क किया, जिसके परिणामस्वरूप औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत एक संदर्भ बना।
IIMC ने तर्क दिया कि मेस ठेकेदार एक स्वतंत्र इकाई थी, जिसे छात्रों की परिषद द्वारा नियुक्त किया गया था, और IIMC का उन श्रमिकों से कोई प्रत्यक्ष रोजगार संबंध नहीं था। इसलिए, संदर्भ का मुद्दा यह था कि क्या IIMC और पूर्व मेस श्रमिकों के बीच कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध था, और यदि हां, तो उन्हें उनकी कथित सेवा समाप्ति के लिए क्या राहत दी जानी चाहिए।
IIMC के तर्क:
IIMC की ओर से सिनियर एडवोकेट सौम्या मजूमदार ने तर्क दिया कि यह संदर्भ टिकाऊ नहीं है क्योंकि IIMC मुख्य नियोक्ता नहीं था। उन्होंने सुलह कार्यवाही के मिनट्स पर भरोसा किया, जिसमें दर्ज था कि IIMC और श्रमिकों के बीच कोई रोजगार संबंध नहीं था।
उन्होंने यह भी दलील दी कि केवल एक वास्तविक औद्योगिक विवाद को ही न्यायाधिकरण को संदर्भित किया जा सकता है। उन्होंने National Engineering Industries Ltd. बनाम राजस्थान राज्य (Civil Appeal No. 16832 of 1996) और Cipla Ltd. बनाम महाराष्ट्र जनरल कामगार यूनियन (2001 INSC 100) मामलों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि संदर्भ तभी किया जा सकता है जब कोई प्राथमिक दृष्टि से औद्योगिक विवाद मौजूद हो।
भारत संघ के तर्क:
भारत संघ की ओर से अधिवक्ता कुमारेश दालाल ने तर्क दिया कि यह विवाद रोजगार संबंध की प्रकृति से संबंधित प्रश्न उठाता है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि इन प्रश्नों का निर्धारण केवल औद्योगिक न्यायाधिकरण है। उन्होंने Balwant Rai Saluja बनाम Air India Ltd. (2014 INSC 561) मामले पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि यह निर्धारित करना कि रोजगार संबंध मौजूद है या नहीं, न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आता है।
कोर्ट का निर्णय:
औद्योगिक न्यायाधिकरण ही उचित मंच:
अदालत ने सबसे पहले यह निर्णय दिया कि यह निर्धारित करने के लिए कि क्या IIMC मुख्य नियोक्ता था, औद्योगिक न्यायाधिकरण उपयुक्त मंच है। न्यायालय ने यह भी कहा कि केवल IIMC द्वारा इस दावे को नकार देना ही औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत संदर्भ को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। Cipla Ltd. (2001 INSC 100) मामले का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि नियोक्ता-कर्मचारी संबंध कानून और तथ्य दोनों का मिश्रित प्रश्न है, जिसे एक विशेष मंच द्वारा तय किया जाना चाहिए।
IIMC का दावा असफल रहा:
अदालत ने यह भी निर्णय दिया कि IIMC यह साबित करने में विफल रहा कि संदर्भ पूरी तरह निराधार था। न्यायालय ने उल्लेख किया कि भले ही मेस ठेकेदार को छात्रों की परिषद ने नियुक्त किया था, लेकिन श्रमिक IIMC परिसर में सेवाएं प्रदान कर रहे थे। इससे अप्रत्यक्ष रोजगार का एक वैध प्रश्न उत्पन्न हुआ। अदालत ने Vividh Kamgar Sabha बनाम Kalyani Steels Ltd. (2001 INSC 12) मामले का हवाला देते हुए कहा कि रोजगार की स्थिति से संबंधित विवादों का निपटारा न्यायाधिकरण द्वारा किया जाना चाहिए।
IIMC की क्षेत्राधिकार संबंधी आपत्ति खारिज:
अदालत ने IIMC की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि यह संदर्भ औद्योगिक न्यायाधिकरण के क्षेत्राधिकार से बाहर था। अदालत ने यह उल्लेख किया कि Balwant Rai Saluja मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह पुष्टि की थी कि जब रोजगार संबंध कई संस्थाओं को शामिल करता है, तो न्यायाधिकरण के पास "कॉर्पोरेट परदा भेदने" की शक्ति होती है। इसलिए, अदालत ने माना कि न्यायाधिकरण को जटिल कॉर्पोरेट व्यवस्थाओं से जुड़े मामलों पर भी अधिकार क्षेत्र प्राप्त है।
कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा:
अदालत ने अंत में यह भी कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम को कर्मचारियों को अनुचित रोजगार प्रथाओं से बचाने के लिए तैयार किया गया है। इस प्रकार, बिना किसी तथ्यात्मक जांच के दावों को त्वरित रूप से खारिज करना इसके उद्देश्य के विपरीत होगा।
नतीजन, कोर्ट ने IIMC की रिट याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि संदर्भ वैध था और इसमें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।