ठेके पर काम करनेवाले कर्मचारियों की सेवा को पेंशन और सेवा नियमित किए जाने के लिए गिना जा सकता है : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
30 Dec 2019 2:52 PM IST
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि ठेके पर काम कर रहे अस्थाई कर्मचारियों को उनकी सेवा के आधार पर नियमित किया जा सकता है और इसके बाद इस सेवा के आधार पर उन्हें पेंशन दिया जा सकता है।
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि सरकार ने उनके मृत पति को वेतन देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उनकी सेवा के बदले उनको सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के तहत पेंशन नहीं दी जा सकती।
सरकार का कहना था कि पेंशन सिर्फ़ नियमित सेवा वाले उन्हीं कर्मचारियों को दी जा सकती है जिनकी नियुक्ति 14.05.2003 को या उससे पहले हुई। यह भी कहा गया कि पेंशन नियम 2g के तहत ठेके पर रखे गए कर्मचारी पर लागू नहीं होता, बशर्ते कि क़रार में ऐसा लिखा गया हो।
याचिकाकर्ता के पति को अस्थाई आधार पर ठेके पर आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में 1999 में नियुक्ति दी गई थी पर 2009 में उनकी सेवा नियमित कर दी गई पर इसके बाद जनवरी 2011 में उनकी मौत हो गई।
न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति चंदर भूषण बरोवलिया की बेंच ने कहा,
"इसके बावजूद कि अपीलकर्ता की नियुक्ति ठेके पर हुई थी पर नियमित कर्मचारियों की तुलना में यह नियुक्ति में यह अंतर गुणवत्तात्मक नहीं थी और जब राज्य में डॉक्टरों की ज़रूरत हुई तो उनकी नियुक्ति को नियमित कर दी गई। इसके बाद सरकार का यह कहना कि अपीलकर्ता के पति ठेके पर अपनी सेवाएं दे रहे थे, अनुचित है।"
इस बारे में हाईकोर्ट की एक एकल पीठ के उस फ़ैसले का हवाला दिया गया जो पारस राम बनाम हिमाचल राज्य एवं अन्य में आया। फिर HLJ 2009 (HP) 887 में कहा गया कि अगर तदर्थ नियुक्ति के बाद सेवा नियमित की जाती है तो इस सेवा को इंक्रीमेंट के लिए ध्यान में रखा जा सकता है। हाईकोर्ट ने बाद में अन्य मामलों में निर्णय दिए उसमें भी इस फ़ैसले की पुष्टि की गई।
हिमाचल प्रदेश एवं अन्य बनाम मातवर सिंह एवं अन्य, 2018 मामले में भी पीठ ने यह कहा कि अगर तदर्थ नियुक्ति के बाद सेवा नियमित की जाती है तो रिटायरमेंट के बाद उसे पेशन और अन्य लाभ दिए जाने हैं।
अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के राय सिंह एवं अन्य बनाम कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, C.W.P. No.2246, 2008 मामले में आए फ़ैसले का भी हवाला दिया गया। इस फ़ैसले में कहा गया था कि एक बार जब कर्मचारी की सेवा नियमित कर दी जाती है और उसकी तदर्थ नियुक्ति के दौरान दी गई सेवा को पेंशन आदि के लिए गिना जाता है तो फिर उसे सेवा से 'ठेके के आधार पर' बाहर रखना विभेदकारी है।
यह भी कहा गया कि ठेके पर नियुक्ति एक तरह की तदर्थ सेवा है। सिर्फ़ इसलिए कि उनकी सेवा में नाम मात्र का ब्रेक दिया जाता है और काम वेतन दिया जाता है या इंक्रीमेंट नहीं दिया जाता है, उनकी सेवाओं को अलग नहीं माना जा सकता।
इस आधार पर अपने फ़ैसले में पीठ ने कहा -
"राज्य को अपीलकर्ता के मृत पति की सेवा से लाभ मिला है जब वह जीवित था और उसको इस तदर्थ सेवा के बदले काम वेतन मिलता था। इसलिए उसको नियमित किए जाने से पहले उसकी तदर्थकालीन सेवा को नहीं जोड़ने का कोई कारण नहीं हो सकता। अगर इससे इंकार किया जाता है तो यह अनुचित और योग्य सेवा के लिए कर्मचारी को लाभ से वंचित करना होगा।"