अयोध्या के मुकदमे की राम कहानी
LiveLaw News Network
5 Aug 2020 9:00 AM IST
पुस्तक- अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम
लेखक - माला दीक्षित
प्रकाशक-नम्या प्रेस डॉट कॉम
मूल्य-595 (पेपरबैक)
अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनने की तैयारियां जोरों पर हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अयोध्या में राम जन्मस्थान पर भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता खोला। सुप्रीम कोर्ट में इस ऐतिहासिक मुकदमें की 40 दिन चली सुनवाई का आंखो देखा हाल बताती एक पुस्तक आयी है।
कानूनी मामलों की विशेषज्ञ और दो दशक से सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्टिंग कर रही वरिष्ठ पत्रकार माला दीक्षित ने चश्मदीद के तौर पर अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम पुस्तक लिखी है। यह अपनी तरह की खास किताब है, जिसमें अदालती कार्यवाही का सजीव चित्रण है।
इस किताब से पता चलता है कि राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक साबित करने के लिए हिन्दू और मुस्लिम पक्ष ने किस तरह और क्या दलीलें अदालत में रखीं और फिर उन दलीलों पर अदालत की प्रतिक्रिया व सवाल कैसे थे।
पुस्तक में अयोध्या विवाद पर आये सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का भी अति सरल हिन्दी भाषा में वणर्न है। अदालत के फैसले तो कोर्ट रिपोर्ट और स्केल में हमेशा छपते हैं लेकिन उन्हें सिर्फ वकील या कानून का तकनीकी ज्ञान रखने वाले लोग ही समझ पाते हैं।
इस पुस्तक में देश के बड़े वर्ग की जिज्ञासा से जुड़े विषय को सरल भाषा में समझाया गया है। पुस्तक में चालीस दिन सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के सभी आम और खास पहलुओं को समेटा गया है। पुस्तक की खासियत इसमें सुनवाई के दौरान आए रोचक किस्सों का वणर्न है। जैसे झांसी की रानी की सेवा करने वाला धार्मिक संगठन भी इस मुकदमें में अहम पक्षकार था। शाहजहां ने ताजमहल बनवाने के लिए जमीन खरीदी थी।
इसमे बताया गया है कि राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक का मुकदमा कोई साधारण जमीन विवाद नहीं था बल्कि यह दो समुदायों के बीच आस्था का मुकदमा था जिसे अदालत ने रिप्रेजेन्टेटिव सूट घोषित किया था।
पुस्तक में हाइकोर्ट के आदेश पर हुई एएसआई की खुदाई की रिपोर्ट का भी विस्तृत वर्णन है। किताब की भूमिका सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत न्यायाधीश ज्ञानसुधा मिश्रा ने लिखी है जिसमें उन्होंने किताब का सटीक आंकलन किया है। किताब में रोचकता और प्रवाह पाठक को अंत तक बांधे रखती है। किताब एक ऐतिहासिक मुकदमें की सुनवाई पर है लेकिन जब इसे पढ़ो तो ऐसा लगता है कि कोई कहानी पढ़ रहे हैं जिसमें मुकदमे की सजीव पिक्चर साथ चलती नजर आती है। राम जन्मभूमि विवाद के ऐतिहासिक मुकदमें का आंखोदेखा हाल बताने वाली यह किताब जितनी आम जनता के लिए उपयोगी है उतनी ही कानून के विद्यार्थियों के लिए लाभदायक है।
पुस्तक अंश.......
शाहजहां ने ताजमहल के लिए राजा जयसिंह से खरीदी थी जमीन
वकील पी.एन. मिश्रा ने यह साबित करने के लिए कि मस्जिद बनाने के लिए वाकिफ का जमीन का मालिक होना जरूरी है, ताजमहल बनाए जाने का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि जहां ताजमहल बना है वहां आमेर के राजा मानसिंह की हवेली थी। मानसिंह के बाद उनके उत्तराधिकारी मिर्जा राजा जयसिंह राजा बने। (जयसिंह को मिर्जा की उपाधि मिली थी) शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में वहां ताजमहल बनवाने के लिए वह जमीन राजा जयसिंह से एक सौदे के तहत हासिल की थी। शाहजहां ने जयसिंह को उस जमीन से चार गुना ज्यादा जमीन देकर वह जमीन ताजमहल के लिए हासिल की थी। हालांकि, जयसिंह ऐसे ही जमीन देने को तैयार थे लेकिन शाहजहां ने जमीन खरीदी थी और इसका फरमान जारी हुआ था।
राम जन्मस्थान के राजस्व रिकॉर्ड में हुई है छेड़छाड़
बहस के दौरान राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पी.एन. मिश्रा ने कहा, "राम जन्मस्थान के राजस्व रिकॉर्ड में छेड़छाड़ हुई है।" उन्होंने 1861 के राजस्व रिकॉर्ड का हवाला दिया। कोर्ट को बताया गया कि हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान विस्तृत तौर पर यह मुद्दा उठा था और पूरा संदर्भ दर्ज है। 2007 में हाईकोर्ट में एक अर्जी दी गई थी जिसमें राजस्व रिकॉर्ड (बंदोबस्त) में छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया था। इस पर हाईकोर्ट ने जांच का आदेश दिया। जिला मजिस्ट्रेट ने जांच की, जिसमें पाया गया कि छेड़छाड़ हुई थी। जन्मस्थान के साथ मस्जिद और जामा मस्जिद शब्द जोड़ा गया। मामले की फारेंसिक जांच विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ में हुई, जिसकी रिपोर्ट में निदेशक ने कहा कि अलग स्याही, में अलग लिखावट में शब्द 'जामा मस्जिद' और 'मस्जिद' बढ़ाया गया। रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया कि जिस व्यक्ति ने दस्तावेज तैयार किए हैं, उस व्यक्ति ने ये जामा मस्जिद और मस्जिद शब्द नहीं लिखा।