महिला का चरित्र और नैतिकता यौन साझेदारों की संख्या से संबंधित नहीं, उसकी 'ना' का मतलब 'ना' ही होता है: बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
8 May 2025 10:30 AM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि "महिला का चरित्र या नैतिकता उसके यौन साझेदारों की संख्या से संबंधित नहीं है"। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि महिला द्वारा 'ना' का मतलब 'ना' ही होता है। इसके अलावा, महिला की तथाकथित 'अनैतिक गतिविधियों' के आधार पर 'सहमति का अनुमान' नहीं लगाया जा सकता।
जस्टिस नितिन सूर्यवंशी और जस्टिस एमडब्ल्यू चांदवानी की खंडपीठ ने कड़े शब्दों में लिखे आदेश में तीन लोगों - वसीम खान, कादिर शेख और एक किशोर को एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने के मामले में दोषी ठहराए जाने को बरकरार रखा, जिसका पहले एक आरोपी के साथ अंतरंग संबंध था, लेकिन बाद में वह दूसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगी थी। आरोपियों ने सेशन कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376डी (सामूहिक बलात्कार) सहित विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।
खंडपीठ ने कहा कि दोषियों ने पीड़िता की नैतिकता पर सवाल उठाने का प्रयास किया, जो अपने अलग हुए पति को तलाक दिए बिना दिनेश के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी। खंडपीठ ने कहा कि वसीम ने पीड़िता से क्रॉस एक्जामिनेशन करते हुए यह तथ्य दर्ज करने की कोशिश की कि वह उसके साथ रोमांटिक रूप से जुड़ी हुई थी। हालांकि, जब इस रिश्ते ने उसके पारिवारिक जीवन को प्रभावित किया (चूंकि वह शादीशुदा है), तो वह दिनेश के साथ रहने चली गई।
खंडपीठ ने आगे कहा,
"इसमें कोई संदेह नहीं कि पीड़िता एक अलग हुई पत्नी है। अपने पति से तलाक लिए बिना वह दिनेश के साथ रह रही थी। यहां तक कि उसके साक्ष्य से भी यह सामग्री उसके क्रॉस एक्जामिनेशन में लाई गई थी, जिससे यह पता चलता है कि दिनेश के साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने से पहले उसका वसीम के साथ अंतरंग संबंध था, जबकि उसकी पिछली शादी कायम थी। फिर भी कोई व्यक्ति किसी महिला को उसकी सहमति के बिना उसके साथ संभोग करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।"
खंडपीठ ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि "किसी महिला का बलपूर्वक, भय या धोखे से उसकी सहमति के बिना बलात्कार करना।" खंडपीठ ने आगे कहा कि यौन हिंसा कानून को कमजोर करती है। इस तरह गैरकानूनी तरीके से महिला की निजता का अतिक्रमण करती है। बलात्कार को केवल यौन अपराध नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे आक्रामकता से जुड़े अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए, जो पीड़िता के वर्चस्व की ओर ले जाता है। जजों ने कहा कि यह उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
खंडपीठ ने रेखांकित किया,
"बलात्कार समाज में सबसे नैतिक और शारीरिक रूप से निंदनीय अपराध है, क्योंकि यह पीड़ित के शरीर, विवेक और निजता पर हमला है। बलात्कार एक महिला को वस्तु बनाता है। इस तरह उसके जीवन की जड़ को हिला देता है। एक तरफ यौन संभोग एक महिला सहित प्रतिभागियों को आनंद देता है, लेकिन अगर यह महिला की सहमति के बिना किया जाता है तो यह उसके शरीर, दिमाग और निजता पर हमला है।"
जजों ने आगे कहा,
"एक महिला जो 'ना' कहती है, उसका मतलब 'ना' ही होता है। इसमें कोई और अस्पष्टता नहीं है। किसी महिला की तथाकथित 'अनैतिक गतिविधियों' के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।"
जजों ने स्पष्ट किया,
इसलिए भले ही पीड़िता और वसीम के बीच पहले भी संबंध रहे हों, लेकिन अगर वह उसके और उसके साथी कादिर तथा कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर के साथ यौन संबंध बनाने के लिए तैयार नहीं थी, तो उसकी सहमति के बिना कोई भी कार्य IPC की धारा 375 के तहत अपराध माना जाएगा।
जजों ने कहा,
"एक महिला जो किसी विशेष अवसर पर किसी पुरुष के साथ यौन गतिविधियों के लिए सहमति देती है, वह स्वतः ही अन्य सभी अवसरों पर उसी पुरुष के साथ यौन गतिविधि के लिए सहमति नहीं देती। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 53ए के मद्देनजर एक महिला का चरित्र या नैतिकता उसके यौन साझेदारों की संख्या से संबंधित नहीं है। अंतरंगता, यदि कोई हो, वसीम को दोषमुक्त नहीं करेगी, अधिक से अधिक, यह सजा पर विचार करते समय प्रासंगिक होगी।"
इन टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने सामूहिक बलात्कार के आरोपों के तहत तीनों की सजा बरकरार रखी। हालांकि, सजा के बिंदु पर, पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने उन्हें उनके शेष जीवन के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
खंडंपीठ ने कहा,
"हम इस तथ्य से अवगत हैं कि बलात्कार जघन्य अपराध है, सामूहिक बलात्कार से भी कम और यह समाज के कमजोर वर्ग यानी महिला के खिलाफ अपराध है। इसलिए ऐसे अपराध के अपराधी से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। बलात्कार के मामले में सजा का निर्धारण अपराध की क्रूरता, अपराधी के आचरण और पीड़िता की असहाय और असुरक्षित स्थिति पर निर्भर करता है।"
जजों ने कहा कि वसीम को दिनेश के साथ रह रही पीड़िता से 'ईर्ष्या' थी और वह केवल यह सुनिश्चित करना चाहता था कि वह केवल दिनेश के साथ ही शारीरिक रूप से जुड़ी रहे और किसी और के साथ नहीं।
जजों ने आदेश दिया,
"यह भी रिकॉर्ड में है कि वसीम और कादिर ने घटना के दौरान पीड़िता को कोई गंभीर चोट नहीं पहुंचाई। उपरोक्त तथ्यों और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वसीम की एक बेटी है, जिसे अपने पिता की जरूरत है; और यह कि जेल प्राधिकरण द्वारा दुर्व्यवहार या क्रूरता की कोई घटना दर्ज नहीं की गई, हम वसीम और कादिर की कैद को उनके शेष प्राकृतिक जीवन के कारावास से घटाकर 20 साल के कठोर कारावास में बदलने का प्रस्ताव करते हैं।"
अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता अपने पति से अलग शब्बीर शेख नामक व्यक्ति के किराये के कमरे में रह रही थी। 5 नवंबर, 2014 को वसीम, कादिर और एक किशोर तथा मकसूद शेख (शब्बीर का भाई) किराये के घर में घुस आए और पीड़िता को उनके साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया तथा दिनेश के साथ उसके संबंधों पर भी आपत्ति जताई। जब दिनेश और पीड़िता ने इसका विरोध किया तो उन्होंने उन दोनों के साथ मारपीट की। उसी समय पीड़िता और दिनेश के सामान्य मित्रों में से एक राकेश मौके पर पहुंचा, उसके साथ भी मारपीट की गई।
इसके बाद सभी आरोपियों ने दिनेश, राकेश और पीड़िता को शराब पिलाई और सिगरेट पी और फिर राकेश और पीड़िता को अपने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया। इसके बाद उन्होंने पीड़िता और राकेश की 'आपत्तिजनक' स्थिति में तस्वीरें और वीडियो खींचे। इसके तुरंत बाद राकेश मौके से भाग गया। इसके बाद आरोपियों ने दिनेश के सिर पर लोहे की रॉड जैसी कुंद वस्तुओं से हमला किया और दोनों (दिनेश और पीड़ित) को पास के रेलवे स्टेशन पर ले गए और दिनेश को पटरियों पर धकेलने की कोशिश की ताकि उसे ट्रेन से कुचल दिया जाए।
हालांकि, नशे की हालत में होने के बावजूद दिनेश मौके से भागने में कामयाब रहा। इसके बाद आरोपी पीड़िता को, जो शराब के नशे में थी, पास के जंगल (छोटा शेगांव और ताड़ोबा के बीच) में ले गए, जहां उनमें से तीन - वसीम, कादिर और किशोर अपराधी ने एक-एक करके पीड़िता के साथ बलात्कार किया। अगली सुबह तक उन्हें पता चला कि पुलिस उन्हें खोज रही है। इसलिए उन्होंने पीड़िता को जंगल में छोड़ दिया और मौके से भाग गए।
अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने बिना किसी उचित संदेह के पूरी कहानी साबित कर दी। वसीम और कादिर की IPC की धारा 376 डी (सामूहिक बलात्कार) के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी। हालांकि, इसने उनकी सजा को उनके शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कठोर कारावास से घटाकर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए जुर्माने के साथ 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।
इसने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत अपराध के लिए वसीम और कादिर पर लगाए गए 20 साल के कठोर कारावास को भी घटाकर 10 साल जेल कर दिया।
केस टाइटल: मकसूद शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक अपील 336/2016) और बैच

