बॉम्बे हाईकोर्ट ने लॉ स्टूडेंट्स की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच के लिए जारी सर्कुलर के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया, कहा- छात्रों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की जानी चाहिए

Avanish Pathak

11 Feb 2025 6:45 AM

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने लॉ स्टूडेंट्स की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच के लिए जारी सर्कुलर के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया,  कहा- छात्रों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की जानी चाहिए

    बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष बार काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से जारी परिपत्र, जिसमें लॉ स्टूडेंट्स की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच प्रणाली को अनिवार्य बनाने का निर्देश दिया गया है, को एक जनहित याचिका के जरिए चुनौती दी गई थी, जिस पर सोमवार (10 फरवरी) को सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की कि उसे परिपत्र में कुछ भी अवैध नहीं लगता। इस प्रकार याचिका वापस ली गई याचिका के रूप में खारिज कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने बीसीआई के 24/09/2024 के परिपत्र को चुनौती दी थी, जिसमें लॉ स्टूडेंट्स की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच करने का निर्देश दिया गया था।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि परिपत्र संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह शिक्षा के अधिकार का भी उल्लंघन करता है और इस बात पर जोर दिया कि अपराधियों को भी शिक्षा का अधिकार है।

    याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि परिपत्र संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि नॉन-लॉ स्टूडेंट्स को ऐसी जानकारी का खुलासा नहीं करना पड़ता है। सोमवार को सुनवाई के दरमियान चीफ जस्टिस आलोक आराधे और ज‌स्टिस भारती डांगरे की खंडपीठ ने सवाल किया कि छात्रों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की जानी चाहिए।

    चीफ जस्टिस आराधे ने कहा कि केवल आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए अयोग्य नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "आपराधिक मामला होने का मतलब यह नहीं है कि आप अपने पाठ्यक्रम की पढ़ाई से वंचित हो जाएंगे, केवल आवश्यकता यह है कि आप खुलासा करें..."

    उन्होंने आगे कहा, "हम आपकी शिकायत को समझ सकते थे यदि उन्होंने कहा होता कि यदि आपका आपराधिक इतिहास है तो आप शिक्षा से वंचित हो जाएंगे..."

    यह टिप्पणी करते हुए कि याचिकाकर्ता "पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों का हनन कर रहा है", न्यायालय ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि इससे याचिकाकर्ता पर भारी लागत आएगी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता मांगी।

    इस प्रकार न्यायालय ने याचिका को वापस ले लिया।

    केस टाइटलः अशोक पुत्र रूपराव येंडे बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया (पीआईएल(एल)/38741/2024)

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