स्पष्ट कानूनी प्रावधान न होने पर भी कलेक्टर अपने प्रशासनिक आदेशों की समीक्षा कर सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

Praveen Mishra

16 July 2025 5:17 PM

  • स्पष्ट कानूनी प्रावधान न होने पर भी कलेक्टर अपने प्रशासनिक आदेशों की समीक्षा कर सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि कलेक्टर के पास प्रशासनिक आदेशों की समीक्षा करने का अंतर्निहित (inherent) अधिकार होता है, भले ही कोई स्पष्ट वैधानिक प्रावधान न हो — बशर्ते वह निर्णय प्रशासनिक हो, न कि अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial)।

    यह टिप्पणी जस्टिस रोहित डब्ल्यू. जोशी (औरंगाबाद खंडपीठ) ने एक मामले में की, जिसमें उन्होंने सरस्वतीबाई गंगागौड़ अनंतवार के कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा दाखिल एक रिट याचिका खारिज कर दी। यह याचिका महाराष्ट्र सरकार के एक निर्णय को चुनौती देती थी जो CL-III देशी शराब अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) से संबंधित था।

    पुरा मामला:

    अनंतवार, जो मूल अनुज्ञप्तिधारक थे, का निधन हो गया। उन्होंने 1994 में प्रतिवादी संख्या 5 और 6 के साथ साझेदारी बनाई थी। 2008 में कलेक्टर ने एक आदेश पारित कर अनुज्ञप्ति केवल सरस्वतीबाई के नाम पर स्थानांतरित कर दी, कथित रूप से अन्य साझेदारों को बिना सूचना दिए। 2013 में कलेक्टर ने उस आदेश की समीक्षा करते हुए प्रतिवादी संख्या 5 और 6 के नाम फिर से अनुज्ञप्ति में शामिल कर दिए। लेकिन आबकारी आयुक्त (Excise Commissioner) ने यह कहते हुए इस 2013 के आदेश को रद्द कर दिया कि कलेक्टर के पास समीक्षा करने का अधिकार नहीं है।

    इसके बाद, 2022 में प्रमुख सचिव (Principal Secretary) ने पुनरीक्षण आवेदन स्वीकार करते हुए 2013 के कलेक्टर के आदेश को बहाल कर दिया। इसी के खिलाफ वर्तमान याचिका दाखिल की गई थी।

    हाईकोर्ट ने 2022 के निर्णय को बरकरार रखा और कहा कि कलेक्टर द्वारा की गई कार्रवाई प्रशासनिक प्रकृति की थी और इसलिए, उसे समीक्षा का अधिकार प्राप्त था। कोर्ट ने कहा, “कलेक्टर, जो कि अनुज्ञप्ति जारी करने वाला प्राधिकरण है, को यह विवेकाधिकार प्राप्त है कि वह स्थानांतरण की अनुमति दे या मृतक अनुज्ञप्तिधारक के कानूनी उत्तराधिकारियों/प्रतिनिधियों को अनुज्ञप्ति का लाभ उठाने की अनुमति दे... Rule 28 और CL-III फार्म की धारा 17 के अंतर्गत कलेक्टर द्वारा जो अधिकार उपयोग किए जाते हैं, वे अर्ध-न्यायिक नहीं बल्कि प्रशासनिक होते हैं... अतः कलेक्टर को अपने निर्णय की समीक्षा करने का अधिकार होता है, भले ही कोई स्पष्ट वैधानिक प्रावधान न हो"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता की यह दलील मानी जाए कि कलेक्टर निषेध अधिनियम (Prohibition Act) के तहत पारित आदेश की समीक्षा नहीं कर सकता, तो प्रतिवादी संख्या 5 और 6 के नामों को हटाने का निर्णय भी समीक्षा के दायरे से बाहर होगा — खासकर तब जब ऐसा कोई नया घटनाक्रम नहीं हुआ जिससे उन्हें अनुज्ञप्ति के लिए अयोग्य ठहराया जा सके।

    केवल किसी एक साझेदार की मृत्यु इस बात का आधार नहीं हो सकती कि अन्य साझेदारों के नाम अनुज्ञप्ति से हटा दिए जाएं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि मान भी लिया जाए कि यह अधिकार अर्ध-न्यायिक है, तब भी जब तक प्रतिवादी संख्या 5 और 6 किसी अयोग्यता के शिकार नहीं होते, तब तक उनके नामों को हटाना उचित नहीं है।

    इस आधार पर याचिका खारिज कर दी गई।

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