पुलिस अधिकारियों को अभियुक्त को गिरफ्तारी के आधार लिखित में बताने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

22 July 2024 5:43 AM GMT

  • पुलिस अधिकारियों को अभियुक्त को गिरफ्तारी के आधार लिखित में बताने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि प्रत्येक पुलिस अधिकारी को प्रत्येक मामले में गिरफ्तारी करने से पहले गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को लिखित में उसकी गिरफ्तारी के आधार बताने चाहिए। उसके बाद ही गिरफ्तारी करनी चाहिए, क्योंकि यही देश का कानून है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया है।

    जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने पांडुरंग नाइक नामक व्यक्ति को जमानत दी, जिसे 22 फरवरी, 2024 को धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

    खंडपीठ ने उल्लेख किया कि नाइक को 22 फरवरी को शाम 6:00 बजे गिरफ्तार किया गया और उसकी गिरफ्तारी के बारे में केवल उसकी मां को सूचित किया गया। उसे अगले दिन रिमांड के लिए अदालत में पेश किया गया। उसके बाद उसके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया। हालांकि, नाइक ने खंडपीठ से इस सीमित आधार पर जमानत की मांग की कि मुंबई के उपनगरीय मलाड पुलिस स्टेशन द्वारा उसकी गिरफ्तारी के आधार लिखित में देकर उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

    खंडपीठ ने पंकज बंसल बनाम भारत संघ और प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गिरफ्तारी के आधार को गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाले प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दिया जाना चाहिए।

    खंडपीठ ने 18 जुलाई के फैसले में कहा,

    "पंकज बंसल और प्रबीर पुरकायस्थ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, जो अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के मद्देनजर भारत के क्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों को बाध्य करते हैं। इसी तरह, अनुच्छेद 144 के अनुसार, चूंकि भारत के क्षेत्र में सभी प्राधिकारी, सिविल और न्यायिक, सुप्रीम कोर्ट की सहायता में कार्य करेंगे। इसलिए कानून का पालन सभी संबंधितों द्वारा किया जाएगा, जिसमें न्यायालयों के साथ-साथ गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग करने वाले प्राधिकारी भी शामिल हैं।"

    वर्तमान मामले में खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में नहीं बताए गए और यहां तक ​​कि गिरफ्तारी फॉर्म में वह कॉलम भी नहीं भरा गया, जिसमें गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को यह विवरण भरना होता है कि क्या गिरफ्तार व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने से पहले उसकी गिरफ्तारी के आधार और कानूनी अधिकारों के बारे में सूचित किया गया।

    खंडपीठ ने आगे कहा कि गिरफ्तारी के बारे में केवल याचिकाकर्ता की मां को ही सूचित किया गया।

    खंडपीठ ने कहा,

    "प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के उप-खंड (1) का उल्लंघन है। चूंकि यह प्रावधान अब पंकज बंसल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्यायित है, इसलिए उसके बाद की गई किसी भी गिरफ्तारी में 'गिरफ्तारी के आधार' को लिखित रूप में शीघ्रता से इंगित करके अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अनुपात को देश के कानून के रूप में घोषित किया गया, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के आधार पर देश की सभी अदालतों पर बाध्यकारी है, यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि किसी भी मामले में, जहां उसकी गिरफ्तारी आवश्यक समझी जाती है, किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी करने से पहले किसी भी अधिकारी/व्यक्ति/मजिस्ट्रेट सहित प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इसका पालन किया जाना चाहिए। इस आधार में जांच अधिकारी के हाथ में ऐसे सभी विवरण शामिल होने चाहिए, जिसके कारण आरोपी की गिरफ्तारी आवश्यक हो।"

    इसलिए खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को अमान्य घोषित करने के बाद उसे रिहा करने का आदेश दिया। इसके अलावा, जजों ने सरकारी वकील हितेन वेनेगावकर को वर्तमान निर्णय की कॉपी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को प्रस्तुत करने के लिए कहा।

    खंडपीठ ने आदेश दिया,

    "डीजीपी निर्णय की कॉपी सभी एडिशनल पुलिस महानिदेशकों और (एडीजीपी) तथा पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) को प्रसारित करेंगे, जिससे इसे पुलिस आयुक्त/पुलिस अधीक्षक के माध्यम से अपने अधिकार क्षेत्र में गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग करने वाले सभी अधिकारियों को प्रसारित किया जा सके। यदि उचित समझा जाए तो निर्णय की प्रति महाराष्ट्र राज्य के पुलिस विभाग की वेबसाइट पर भी अपलोड की जाएगी।"

    केस टाइटल: महेश नाइक बनाम महाराष्ट्र राज्य (डब्ल्यूपीएसटी/13835/2024)

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