केवल तीन तलाक प्रतिबंधित, तलाक-ए-अहसन नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

24 April 2025 10:45 AM

  • केवल तीन तलाक प्रतिबंधित, तलाक-ए-अहसन नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (23 अप्रैल) को कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 केवल तत्काल और अपरिवर्तनीय "तीन तलाक" को प्रतिबंधित करता है। इसे "तलाक-ए-बिद्दत" भी कहा जाता है, लेकिन इस्लाम के तहत तलाक के पारंपरिक तरीके को प्रतिबंधित नहीं करता है, जिसे "तलाक-ए-अहसन" कहा जाता है।

    जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संजय देशमुख की खंडपीठ ने एक व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज FIR खारिज की। उन पर शिकायतकर्ता पत्नी को कथित तौर पर तलाक-ए-बिद्दत कहने का आरोप लगाया गया था।

    जजों ने कहा कि आवेदक पति ने एक गवाह की मौजूदगी में तलाक-ए-आसन सुनाया था। बाद में 28 दिसंबर, 2023 को नोटिस जारी किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि उसने तलाक-ए-बिद्दत नहीं बल्कि तलाक-ए-आसन सुनाया था। इसे अक्सर शरीयत कानूनों के अनुसार "एक घोषणा" कहा जाता है।

    खंडपीठ ने आगे कहा कि बाद में 24 मार्च, 2024 को तलाकनामा पर हस्ताक्षर किए गए, यानी पत्नी को नोटिस देने के 90 दिनों के भीतर। वह भी तब जब वह उसके साथ सहवास फिर से शुरू करने या शारीरिक संबंध बनाने में विफल रही।

    जजों ने कहा,

    "तलाक-ए-अहसन का कानूनी प्रभाव सामने आ गया। जब तथ्यों को स्वीकार किया जाता है और कानून को ध्यान में रखते हुए तलाक-ए-बिद्दत निषिद्ध था न कि तलाक-ए-अहसन, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, अगर आवेदकों को मुकदमे का सामना करने के लिए कहा जाता है। इसलिए FIR और कार्यवाही रद्द करने का मामला बनता है।"

    याचिका के अनुसार, दंपति ने अक्टूबर 2021 में जलगांव जिले के भुसावल में शादी की थी। हालांकि, दंपति के बीच उतार-चढ़ाव और वैवाहिक मतभेद रहे और आखिरकार दिसंबर, 2023 में पति ने तलाक-ए-अहसन कहा और बाद में सुलह के लिए 90 दिनों की प्रतीक्षा अवधि के बाद दंपति ने 24 मार्च, 2024 को तलाकनामा पर हस्ताक्षर किए।

    हालांकि, पत्नी ने 15 अप्रैल, 2024 को पति और उसके माता-पिता के खिलाफ 'अपरिवर्तनीय' तलाक देने के लिए FIR दर्ज कराई, जो मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत दंडनीय है। उसने तर्क दिया कि उसके पति द्वारा सुनाया गया तलाक अपरिवर्तनीय था। इसलिए इसे अधिनियम के तहत अवैध माना जाना चाहिए।

    दूसरी ओर, पति ने तर्क दिया कि उसने तलाक-ए-अहसन पद्धति का पालन करते हुए तलाक सुनाया, जिसके तहत एक बार तलाक कहा जाता है। तलाक के प्रभावी होने के लिए 90 दिनों की प्रतीक्षा अवधि होती है। पति ने तर्क दिया कि इस्लामी कानून के तहत तलाक के लिए यह अभी भी एक कानूनी साधन है।

    पक्षकारों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि 2019 अधिनियम इस्लाम के तहत तलाक के केवल उन तरीकों/विधियों को प्रतिबंधित करता है, जिनका 'तत्काल और अपरिवर्तनीय' प्रभाव होता है।

    खंडपीठ ने अधिनियम 2019 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा,

    "तलाक का मतलब तलाक-ए-बिद्दत या तलाक का कोई अन्य रूप है, जिसका उच्चारण का तात्कालिक प्रभाव या अपरिवर्तनीय प्रभाव होता है। तलाक के अन्य सभी रूपों पर प्रतिबंध या रोक नहीं है।"

    जजों ने आगे अधिनियम 2019 की धारा 4 का हवाला दिया, जो ज्यादातर पति तक ही सीमित है। ससुराल वालों के खिलाफ निर्देशित नहीं है।

    जजों ने कहा,

    "वास्तव में, यदि इस FIR को उक्त अधिनियम की धारा 4 के तहत समझा जाए तो यह केवल पति के खिलाफ ही सीमित है। ससुर और सास को ऐसे अपराध में शामिल नहीं किया जा सकता। ऐसी FIR में भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के शामिल होने का कोई सवाल ही नहीं है। तलाक की घोषणा का एक समान इरादा नहीं हो सकता। इसलिए इस स्तर पर भी हम कह सकते हैं कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा यदि मामले को ससुर और सास के खिलाफ उक्त अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आगे बढ़ाने के लिए कहा जाता है।"

    इन टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने FIR रद्द कर दी।

    केस टाइटल: तनवीर अहमद पटेल बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक आवेदन 2559/2024)

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