10% मराठा कोटा प्राप्त करने वाले NEET आवेदन मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं में हाईकोर्ट के आदेशों के अधीन: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

9 March 2024 4:35 AM GMT

  • 10% मराठा कोटा प्राप्त करने वाले NEET आवेदन मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं में हाईकोर्ट के आदेशों के अधीन: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि NEET परीक्षा के एड या मराठा कोटा का लाभ उठाने वाले इसी तरह के एड के तहत प्राप्त कोई भी आवेदन आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हाईकोर्ट के अगले आदेशों के अधीन होगा।

    अदालत ने निर्देश दिया कि उम्मीदवारों को महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024 के खिलाफ याचिकाओं में उसके द्वारा पारित आदेशों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए, जो नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय को 10% आरक्षण देता है।

    जस्टिस जीएस कुलकर्णी और जस्टिस फिरदोश पी पूनीवाला की खंडपीठ ने अंतरिम राहत के लिए अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बैच की सुनवाई 12 मार्च, 2024 तक के लिए टाल दी।

    अदालत ने कहा,

    "इस बीच, यह न्याय के हित में होगा कि यदि 9 फरवरी 2024 के विज्ञापन या किसी अन्य समान विज्ञापन के तहत विवादित अधिनियम का लाभ लेने के लिए कोई आवेदन प्राप्त होता है तो वह आगे पारित किए जाने वाले आदेशों के अधीन होगा।"

    यह अधिनियम 20 फरवरी, 2024 को विधायिका में पारित किया गया, और जस्टिस (रिटायर्ड) सुनील बी शुक्रे के नेतृत्व वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार द्वारा 26 फरवरी, 2024 को अधिसूचित किया गया। रिपोर्ट में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के औचित्य के रूप में "असाधारण परिस्थितियों और असाधारण स्थितियों" का हवाला दिया गया, जो राज्य में कुल आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से अधिक है।

    एडवोकेट जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल और अन्य द्वारा दायर रिट याचिकाएं MSBCC अध्यक्ष के रूप में बॉम्बे एचसी के पूर्व जज जस्टिस शुक्रे की नियुक्ति की वैधता को चुनौती देती हैं और दावा करती हैं कि यह कानून का उल्लंघन है। इसे रद्द किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने याचिकाओं का निपटारा होने तक कानून के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। उन्होंने यह भी मांग की कि मामला सुलझने तक नौकरियों और शैक्षिक पाठ्यक्रमों के लिए SEBC कैटेगरी के आरक्षण के लिए कोई विज्ञापन जारी न किया जाए।

    सुनवाई के दौरान, एडवोकेट जनरल डॉ. बीरेंद्र सराफ ने उसी अधिनियम को चुनौती देने वाली जनहित याचिका के संबंध में मौखिक प्रस्तुति दी, जिसे हाल ही में चीफ जस्टिस देवेंद्र उपाध्याय की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच के समक्ष पेश किया गया। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि राज्य ने याचिकाओं के वर्तमान बैच को जनहित याचिका के साथ जोड़ने का अनुरोध प्रस्तुत किया। इस घटनाक्रम के आलोक में सराफ ने मामलों को क्लब करने के संबंध में प्रशासनिक पक्ष पर चीफ जस्टिस उपाध्याय द्वारा उचित आदेश पारित किए जाने तक स्थगन की मांग की।

    हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) 2024 से संबंधित 9 फरवरी, 2024 के विज्ञापन के तहत आवेदन की आसन्न समय सीमा पर प्रकाश डालते हुए अंतरिम राहत की तात्कालिकता का हवाला दिया। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि अंतरिम आदेशों में देरी से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

    मामलों को समेकित करने के प्रशासनिक अनुरोध और याचिकाकर्ताओं द्वारा व्यक्त की गई तात्कालिकता को देखते हुए अदालत ने चीफ जस्टिस के आदेशों के अधीन अंतरिम राहत के लिए सुनवाई 12 मार्च, 2024 तक के लिए टाल दी।

    याचिकाकर्ताओं ने MSBCC रिपोर्ट की कॉपी भी मांगी। सराफ ने कहा कि वह राज्य से निर्देश लेने के बाद इस प्रार्थना का जवाब देंगे।

    कार्यवाही के दौरान हस्तक्षेप आवेदन भी दायर किए गए। याचिकाकर्ताओं ने इन हस्तक्षेपों पर कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की और सभी हस्तक्षेप आवेदनों को अनुमति दी गई। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को हस्तक्षेपकर्ताओं के साथ-साथ कैविएटर्स का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को याचिकाओं की प्रतियां देने का निर्देश दिया।

    चीफ जस्टिस के आदेश लंबित रहने तक मामले को 12 मार्च, 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

    एडवोकेट जयश्री पाटिल ने पहले 2018 की देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अधिनियमित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) अधिनियम, 2018 के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस कानून ने मराठों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण दिया।

    जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 में 2018 के कानून को बरकरार रखा, उसने 16 प्रतिशत कोटा को अनुचित माना और इसे घटाकर शिक्षा में 12 प्रतिशत और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया। पाटिल और अन्य ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

    सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मई, 2021 में SEBC एक्ट, 2018 को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि किसी भी असाधारण परिस्थिति ने मराठों के लिए अलग आरक्षण को उचित नहीं ठहराया, जो 1992 के इंद्रा साहनी (मंडल) फैसले द्वारा अनिवार्य 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है। सुप्रीम कोर्ट ने मराठों के सामाजिक पिछड़ेपन को स्थापित करने के लिए प्रस्तुत अनुभवजन्य आंकड़ों पर भी सवाल उठाया।

    महाराष्ट्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे अप्रैल, 2023 में खारिज किया गया। इसके बाद, सुधारात्मक याचिका दायर की गई, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।

    केस टाइटल- डॉ. जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल और अन्य बनाम मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र राज्य और अन्य

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