जलती पत्नी को बंद करने वाले व्यक्ति की हत्या की सजा घटाने से बॉम्बे हाईकोर्ट का इनकार

Praveen Mishra

18 Jun 2025 9:47 AM IST

  • जलती पत्नी को बंद करने वाले व्यक्ति की हत्या की सजा घटाने से बॉम्बे हाईकोर्ट का इनकार

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की हत्या की सज़ा को घटाकर गैर इरादतन हत्या में बदलने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दोषी ने अपनी पत्नी को जला कर मारने जैसा 'क्रूर' व्यवहार किया और किसी को उसकी मदद नहीं करने दी।

    जस्टिस सारंग कोटवाल और जस्टिस श्याम चंदक की खंडपीठ ने कहा कि दोषी अंबदास आरेट्टा ने बेहद क्रूरता से व्यवहार किया और अपनी पत्नी और बच्चों की 'कमजोरी' का गलत फायदा उठाया।

    कोर्ट ने कहा, "अगर किसी को धारा 300 की अपवाद संख्या 4 के अंतर्गत लाभ मिलना है, तो यह ज़रूरी है कि उसने क्रूर या असामान्य तरीका न अपनाया हो। लेकिन इस मामले में, अरेट्टा ने अपनी पत्नी पुष्पा को आग लगाई, बच्चों को बाहर ले जाकर दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया और किसी को भी उसकी मदद नहीं करने दी। यह व्यवहार न केवल क्रूर है, बल्कि उसने अपनी पत्नी और बच्चों की लाचारी का अनुचित फायदा उठाया है। इसलिए, दोषी इस कानूनी अपवाद का लाभ नहीं ले सकता।”

    खंडपीठ ने यह फैसला 12 जून को सुनाया और अरेट्टा की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने सोलापुर सत्र न्यायालय के 3 दिसंबर 2014 के फैसले को चुनौती दी थी। सत्र न्यायालय ने उसे पत्नी की हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

    प्रकरण के अनुसार, अंबदास अरेट्टा पेशे से दर्जी था, लेकिन कोई काम नहीं करता था और शराब व जुए का आदी था। वह अक्सर अपनी पत्नी पुष्पा से झगड़ता रहता था। पुष्पा बीड़ी बनाने के कारखाने में काम करती थी और तीन बच्चों की परवरिश करती थी।

    10 फरवरी 2014 की रात, अरेट्टा ने पत्नी से झगड़ा किया, उसे पीटा, उस पर केरोसीन डालकर आग लगा दी। जब वह मदद के लिए चिल्लाई तो उसने बच्चों को घर से बाहर निकाला और दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया। उसने अपनी बेटी को भी मां की मदद करने से रोका।

    पुष्पा के भाई के आने पर दरवाज़ा खोला गया और उसे सिविल अस्पताल ले जाया गया। वह कुछ दिन जीवित रही, लेकिन फिर जलने की चोटों के कारण उसकी मौत हो गई। मरने से पहले दिए गए अपने बयान (dying declaration) में पुष्पा ने साफ तौर पर अरेट्टा का नाम लिया।

    सत्र न्यायालय ने अरेट्टा को दोषी ठहराने में बच्चों की गवाही, मृतका के अंतिम बयान और मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा किया।

    हाईकोर्ट ने कहा,"हम सत्र न्यायालय के फैसले में कोई खामी नहीं पाते। न्यायाधीश ने पूरी तरह सही आधारों पर दोष सिद्ध किया है। इसलिए अपील असफल रहती है और खारिज की जाती है।”


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