7/11 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में आरोपियों को बरी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा- अधिकारी हताश थे, खिसियानी बिल्ली बन, उन्होंने निर्दोष लोगों को नोंचा

Shahadat

22 July 2025 11:11 AM IST

  • 7/11 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में आरोपियों को बरी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा- अधिकारी हताश थे, खिसियानी बिल्ली बन, उन्होंने निर्दोष लोगों को नोंचा

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कुख्यात 7/11 मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में सभी 12 दोषियों को बरी करते हुए कहा कि मामले की जांच कर रहे महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने आरोपियों को बेहद 'अमानवीय और बर्बर' तरीके से प्रताड़ित किया, क्योंकि अधिकारी उस समय 'हताश' थे। इसलिए पुलिस द्वारा प्राप्त आरोपियों के 'स्वीकारोक्ति बयान' अस्वीकार्य है।

    जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक की स्पेशल बेंच ने रिकॉर्ड में मौजूद सबूतों पर गौर करने के बाद कहा कि आरोपी 76 दिनों तक 'लंबी' पुलिस हिरासत में थे। न्यायिक हिरासत के लिए अदालत में पेश किए जाने के ठीक बाद वे रिमांड के दौरान दर्ज किए गए अपने इकबालिया बयानों से मुकर गए।

    बेंच ने कहा कि सभी 12 लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, बेरहमी से पीटा गया और उनसे जबरन यह कबूल करवाया गया कि उन्होंने ही सिलसिलेवार बम धमाकों की साजिश रची और उन्हें अंजाम दिया।

    जजों ने कहा,

    "यह सर्वविदित है कि अधिकांश मामलों में पुलिस अवैध और अनुचित तरीकों से, जिसमें यातना देना भी शामिल है, जबरन कबूलनामा लेने की आदी होती है। यह एक स्थापित कानून है कि इस तरह से प्राप्त कबूलनामे को साक्ष्य से अलग रखा जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी भय या पक्षपात के प्रभाव में आकर दिए गए अभियुक्त के बयान को स्वीकार करना सुरक्षित नहीं है। तर्क का मुख्य बिंदु यह है कि अभियुक्त 24 दिनों से 76 दिनों तक की लंबी पुलिस हिरासत में थे। इस अवधि के दौरान, अभियुक्तों के इकबालिया बयान दर्ज करने से ठीक पहले अभियुक्तों की रिमांड मांगते समय अभियोजन पक्ष का लगातार यह तर्क रहा कि अभियुक्त सहयोग नहीं कर रहे हैं।"

    बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MACOCA) के तहत इकबालिया बयान 4 अक्टूबर, 2006 से 25 अक्टूबर, 2006 के बीच दर्ज किए गए। बेंच ने दोषियों के इस तर्क पर भी गौर किया कि ये इकबालिया बयान 'स्वैच्छिक' नहीं थे, बल्कि पुलिस हिरासत में लगातार यातना का नतीजा थे।

    जजों ने कहा,

    "यह सर्वविदित है कि थर्ड डिग्री विधि नामक विधि होती है, जिसका इस्तेमाल पुलिस जांच के दौरान करती है। लेकिन इस तरह की थर्ड डिग्री विधि के दौरान पुलिस द्वारा दी जाने वाली यातना की सटीक प्रकृति के बारे में कोई भी इतने विस्तृत विवरण के साथ नहीं बता सकता, सिवाय उस व्यक्ति के जिसने इसे झेला हो। इसलिए शिकायत की विषयवस्तु और अभियुक्तों द्वारा अपनी शिकायत में दिए गए सूक्ष्म विवरणों को देखते हुए, इसे शुरू में ही बाद में लिखा या झूठा मानकर खारिज नहीं किया जा सकता।"

    अभियुक्तों के मेडिकल रिकॉर्ड और न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों की गवाही पर गौर करने के बाद बेंच ने कहा कि यह सामग्री अभियोजन पक्ष के इस दावे को झूठा साबित करती है कि कोई यातना नहीं दी गई, क्योंकि अभियुक्तों ने अदालत में ऐसी यातना की कभी शिकायत नहीं की थी।

    जजों ने टिप्पणी की,

    "यातना बर्बर और अमानवीय थी। यह उस हताशा को उजागर करती है, जो अधिकारियों को उस समय स्पष्ट कारणों से हो सकती थी। आरोपी नंबर 1 के शब्दों में "बजाज ने कहा, मैं मानता हूं कि तुम कुछ नहीं जानते और तुम बेकसूर हो पर तूने एक कहावत नहीं सुनी खिसियानी बील्ली खंबा नोचे और तू खंबा है और मैं बिल्ली। मुझे कुछ नहीं मिला तो मैं तुझे नोच रहा हूं।"

    इसके अलावा, बेंच ने कहा कि अपराध के वास्तविक अपराधी को दंडित करना आवश्यक है, न कि आरोपी के रूप में नामित लोगों को अनिवार्य रूप से दोषी ठहराकर मामले को सुलझाने का झूठा दिखावा करना।

    बेंच ने आगे कहा,

    "अपराध के वास्तविक अपराधी को दंडित करना आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने, कानून के शासन को बनाए रखने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस और आवश्यक कदम है। लेकिन यह दिखावा करके कि अभियुक्तों को न्याय के कटघरे में लाया गया, मामले के सुलझने का झूठा दिखावा समाधान का भ्रामक आभास देता है। यह भ्रामक समापन जनता के विश्वास को कमज़ोर करता है और समाज को झूठा आश्वासन देता है, जबकि वास्तव में, असली ख़तरा अभी भी बना हुआ है।"

    अपने 667 पृष्ठों के फैसले में बेंच ने अभियोजन पक्ष की इस दलील को भी मानने से इनकार कर दिया कि कुल सात आरोपियों ने ईरान के रास्ते पाकिस्तान में ट्रेनिंग ली थी। बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपनी बात साबित करने के लिए पासपोर्ट और अन्य सबूतों का सहारा लिया।

    जजों ने कहा,

    "हालांकि, अगर उक्त सबूत आरोपियों की पाकिस्तान यात्रा को साबित करने के लिए पर्याप्त भी माने जाते हैं तो भी वे अपने आप में इन आरोपियों द्वारा बम विस्फोट किए जाने के तथ्य को इंगित करने, सुझाव देने या स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। चूंकि अभियोजन पक्ष सभी आधारों पर अपराध साबित करने में विफल रहा, इसलिए यह तथ्य अप्रासंगिक हो जाता है कि आरोपी प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए पाकिस्तान गए थे या नहीं।"

    बेंच ने ATS अधिकारियों की ईमानदारी पर संदेह जताया, यह देखते हुए कि उन्होंने कॉल डेटा रिकॉर्ड (CDR) नष्ट कर दिए।

    बेंच ने कहा,

    "अभियोजन पक्ष CDR के माध्यम से संबंधित स्थानों और समय पर अभियुक्तों की स्थिति और आवाजाही का आसानी से पता लगा सकता था। इसके बजाय, CDR को नष्ट कर दिया गया। यह कृत्य जांच एजेंसी द्वारा की गई जांच की सत्यनिष्ठा पर गंभीर संदेह पैदा करता है और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।"

    इसलिए बेंच ने माना कि अभियोजन पक्ष प्रत्येक मामले में अभियुक्तों के विरुद्ध उचित संदेह से परे अपराध स्थापित करने में "पूरी तरह विफल" रहा। आगे कहा कि यह निष्कर्ष निकालना असुरक्षित है कि 12 अभियुक्तों ने वे अपराध किए हैं, जिनके लिए उन्हें दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई।

    जजों ने निष्कर्ष निकाला,

    "इसलिए दोषसिद्धि और सजा का विवादित निर्णय और आदेश रद्द और निरस्त किए जाने योग्य है। परिणामस्वरूप, उपरोक्त पुष्टिकरण मामले का उत्तर नकारात्मक में दिया जाना योग्य है और सभी अपीलें स्वीकार किए जाने योग्य हैं।"

    Case Title: State of Maharashtra vs Kamal Ahmed Mohd. Vakil Ansari (Confirmation Case 2 of 2015)

    Next Story