लंबे समय तक नौकरी जारी रखने से नियमितीकरण का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं बनता: ​​बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

10 Jun 2024 5:10 AM GMT

  • लंबे समय तक नौकरी जारी रखने से नियमितीकरण का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं बनता: ​​बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस संदीप वी. मार्ने की एकल पीठ ने मुख्य अधिकारी, पेन नगर परिषद एवं अन्य बनाम शेखर बी. अभंग एवं अन्य के मामले में रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि केवल लंबे समय तक नौकरी जारी रखने के आधार पर सेवाओं के नियमितीकरण का दावा नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे नियमितीकरण का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं बनता।

    मामले की पृष्ठभूमि

    महाराष्ट्र नगर परिषदों, नगर पंचायतों और औद्योगिक टाउनशिप अधिनियम, 1965 के तहत स्थापित पेन नगर परिषद (याचिकाकर्ता) ने सेवा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 04.12.1997 को शेखर बी. अभंग (प्रतिवादी) को क्लर्क के रूप में नियुक्त किया। 1998 में प्रतिवादी ने तीन अन्य क्लर्कों के साथ मिलकर नौकरी से निकाले जाने के डर से ठाणे के औद्योगिक न्यायालय में शिकायत दर्ज कराई।

    न्यायालय ने 06.09.2001 को उनके पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे उनकी सेवा समाप्ति रुक ​​गई, जिससे प्रत्यर्थी को क्लर्क के रूप में काम जारी रखने की अनुमति मिल गई। फिर 30.07.2003 को प्रत्यर्थी को अस्थायी आधार पर कर निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया, जो 01.08.2003 से प्रभावी था। हालांकि, नगर परिषद ने तर्क दिया कि यह नियुक्ति अवैध थी, क्योंकि प्रत्यर्थी योग्य नहीं था, नियमित प्रक्रिया के माध्यम से नहीं चुना गया और सीनियर क्लर्कों को नजरअंदाज किया गया था।

    परिणामस्वरूप, उसकी सेवा 01.31.2004 को समाप्त कर दी गई। इसके चलते प्रत्यर्थी ने अनुचित श्रम प्रथाओं का आरोप लगाते हुए औद्योगिक न्यायालय में शिकायत दर्ज कराई और कर निरीक्षक के रूप में नियमित नियुक्ति के लिए निरंतर रोजगार और वरीयता की मांग की। औद्योगिक न्यायालय ने काम उपलब्ध होने की स्थिति में कर निरीक्षक के पद पर नई एडहॉक नियुक्तियों पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश जारी किया। फिर, 07.03.2009 को औद्योगिक न्यायालय ने नगर परिषद को प्रतिवादी को कर निरीक्षक के रूप में नियमित करने तथा उसे सभी परिणामी लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया। इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी की कर निरीक्षक के रूप में सेवाओं को नियमित करने का निर्देश देने में औद्योगिक न्यायालय का आदेश त्रुटिपूर्ण था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी इस पद के लिए योग्य नहीं था, क्योंकि पदोन्नति के लिए फीडर पद सीनियर लिपिक का था, जबकि प्रतिवादी अस्थायी रूप से नियुक्त सबसे जूनियर लिपिक था। उसकी छह महीने की नियुक्ति में नियमित चयन प्रक्रिया का अभाव था, जिससे उसे नियमितीकरण की मांग करने का कोई अधिकार नहीं मिला।

    इसके अलावा, नगर परिषद के लिए स्वीकृत कर निरीक्षक का पद 31.06.1999 से रिक्त था तथा 10.04.2003 को नगर प्रशासन निदेशालय द्वारा उचित चयन प्रक्रियाओं का पालन करने के निर्देश के साथ पुनर्जीवित होने तक समाप्त हो गया। प्रतिवादी की छह महीने की नियुक्ति में इंटरव्यू सहित इन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया, जिससे उसे नियमितीकरण के लिए कोई अधिकार नहीं मिला। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता ने औद्योगिक न्यायालय का आदेश रद्द करने का तर्क दिया।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि वह बैक डोर से प्रवेश करने वाला व्यक्ति नहीं था, क्योंकि उसका नाम रोजगार कार्यालय द्वारा प्रायोजित था, जो कि जिला रोजगार और स्वरोजगार मार्गदर्शन केंद्र, अलीबाग द्वारा दिनांक 14.07.2003 को लिखे गए पत्र से स्पष्ट है। प्रतिवादी ने कहा कि उसकी नियुक्ति उचित प्रक्रिया के अनुसार की गई, जिसे नगर परिषद की आम सभा द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव द्वारा समर्थित किया गया।

    प्रतिवादी ने दिनांक 10.04.2003 के आदेश का भी संदर्भ दिया, जिसने कर निरीक्षक के पद को पुनर्जीवित किया और दिनांक 30.08.2015 के आदेश का भी संदर्भ दिया, जिसमें पेन नगर परिषद के लिए संशोधित स्टाफिंग पैटर्न को मंजूरी दी गई, जिसमें कर निरीक्षक पद के अस्तित्व की पुष्टि की गई। प्रतिवादी ने आगे तर्क दिया कि औद्योगिक न्यायालय ने प्रतिवादी को नियमित करने का निर्देश देकर कोई गलती नहीं की, जो काफी समय से कर निरीक्षक के रूप में काम कर रहा था, जिससे अब उसकी नियुक्ति में बाधा डालना अन्यायपूर्ण है।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने सचिव, कर्नाटक राज्य एवं अन्य बनाम उमादेवी एवं अन्य के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें स्थापित किया गया कि सार्वजनिक रोजगार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में निहित समानता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और नियमितीकरण पर केवल विधिवत स्वीकृत पदों के विरुद्ध अनियमित (अवैध नहीं) नियुक्तियों के मामलों में विचार किया जा सकता है, जहां कर्मचारियों ने न्यायालय के आदेश के बिना दस वर्ष या उससे अधिक समय तक काम किया हो।

    न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी की नियुक्ति वास्तव में स्वीकृत रिक्त पद के विरुद्ध की गई, वह उस पद पर नियुक्त होने के योग्य था। रोजगार कार्यालय द्वारा उसका नाम प्रायोजित किए जाने के बाद चयन प्रक्रिया से गुजरा था। इसलिए उसकी नियुक्ति को बैक डोर से प्रवेश नहीं माना जा सकता। इसके अलावा, छह महीने की सेवा के अलावा, प्रतिवादी वर्ष 2012 से कर निरीक्षक के पद पर काम कर रहा था, जिसका अर्थ है कि उसने 10 वर्ष से अधिक की सेवा की थी।

    इसलिए प्रतिवादी ने सेवाओं के नियमितीकरण के लिए स्पष्ट मामला बनाया। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि केवल रोजगार की दीर्घकालिक निरंतरता के आधार पर सेवाओं के नियमितीकरण का दावा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इससे नियमितीकरण का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं बनता है।

    उपर्युक्त टिप्पणियों के आधार पर न्यायालय ने रिट याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: मुख्य अधिकारी, पेन नगर परिषद एवं अन्य बनाम शेखर बी. अभंग एवं अन्य।

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