महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर स्थापित संस्थान को कर्मचारियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
12 May 2025 2:55 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक शिक्षक की नियुक्ति की पुष्टि करते हुए कहा कि अगर कोई शैक्षणिक संस्थान महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर स्थापित है तो उसे अपने सभी कर्मचारियों के साथ बिना किसी 'शोषण' के 'निष्पक्ष' व्यवहार करना चाहिए। उक्त कर्मचारी को लगभग सात साल तक परिवीक्षा पर काम करने के लिए मजबूर किया गया था।
जस्टिस रवींद्र घुगे और जस्टिस अश्विन भोबे की खंडपीठ ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता रेशु सिंह को 20 जून, 2018 को दो साल की परिवीक्षा अवधि पर भारतीय विद्या भवन के मुंबादेवी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। दो साल की परिवीक्षा पूरी करने के बावजूद, उन्हें स्थायी नहीं किया गया, जिसके कारण उन्हें हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी।
खंडपीठ ने उल्लेख किया कि संस्थान - भारतीय विद्या भवन का आदर्श वाक्य "अमृतम तू वि द्या" है, जिसका अर्थ है "ज्ञान अमृत है।" खंडपीठ ने कॉलेज के लेटरहेड पर आगे टिप्पणी की, जिसमें लिखा है कि "महात्मा गांधी के आशीर्वाद से इसकी स्थापना की गई है।"
इस पर ध्यान देते हुए खंडपीठ ने 6 मई के अपने आदेश में कहा,
"इसमें कोई विवाद नहीं है कि मोहनदास करमचंद गांधी राष्ट्रपिता 'महात्मा गांधी' हैं। यदि इस कॉलेज को 'महात्मा' की शिक्षाओं से प्रेरित होकर काम करना है तो हम उम्मीद करेंगे कि प्रत्येक कर्मचारी के साथ उचित व्यवहार किया जाए और किसी भी तरह का शोषण न हो।"
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता ने जून, 2020 तक अपनी परिवीक्षा अवधि पूरी कर ली थी। फिर भी उसकी नियुक्ति की पुष्टि नहीं की गई और फिर उसने अप्रैल और अक्टूबर, 2021 के बीच कई ईमेल भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने पर उसने आखिरकार एक औपचारिक, हस्ताक्षरित प्रतिनिधित्व भेजा, जिसका फिर से कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद कॉलेज के प्रिंसिपल ने उसका मामला प्रबंध समिति के अध्यक्ष को भेज दिया, जिन्होंने रिकॉर्ड देखने के बाद दिसंबर, 2021 में प्रशासन को उसकी नियुक्ति की पुष्टि करने की सिफारिश की, क्योंकि सभी आवश्यक अनुमोदन प्राप्त हो चुके थे। फिर भी कोई पत्र जारी नहीं किया गया, जिसके कारण उसे हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी।
अपनी याचिका में सिंह ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विनियम, 2018 का हवाला दिया, जो दो साल से अधिक समय तक परिवीक्षा अवधि बढ़ाने पर रोक लगाता है।
मामले के तथ्यों पर विचार करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि कॉलेज के आचरण ने 'न्यायिक विवेक को झकझोर दिया', क्योंकि उसकी नियुक्ति की पुष्टि करने की सिफारिश के बावजूद, उसे परिवीक्षा पर काम करने के लिए मजबूर किया गया।
जजों ने कहा,
"हमें आश्चर्य है कि याचिकाकर्ता, जो एक महिला शिक्षिका है, उसको 6 साल और 10 महीने तक परिवीक्षाधीन के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया। यह हमारी न्यायिक विवेक को भी झकझोरता है। एक शिक्षक के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया जा सकता। जिस तरह से याचिकाकर्ता के साथ व्यवहार किया गया, वह कम से कम शोषण के बराबर है।"
इन टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने याचिका का निपटारा कर दिया।
केस टाइटल: रेशू सिंह बनाम भारत संघ (रिट याचिका 1238/2024)

