'स्थायी पदों का सृजन न कर पाना, अस्थायी कर्मचारियों को अनुचित रूप से लंबे समय तक नियोजित करने का कोई आधार नहीं': बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
13 Oct 2025 8:30 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि स्थायी पदों का सृजन न कर पाना या वित्तीय सीमाएं, स्थायी और आवश्यक कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले कर्मचारियों को वर्षों तक अस्थायी आधार पर नियोजित करने का औचित्य नहीं सिद्ध कर सकतीं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कर्मचारियों को अल्पकालिक या संविदा नियुक्तियों पर बनाए रखना अनुचित श्रम व्यवहार है और रोजगार में समानता एवं सम्मान के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
जस्टिस मिलिंद एन. जाधव मालेगांव नगर निगम के ड्राइवरों और दमकलकर्मियों द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें औद्योगिक न्यायालय के आदेशों को चुनौती दी गई, जिसने अनुचित श्रम व्यवहार की उनकी शिकायतों को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता 2017 से निगम में बिना किसी रुकावट के कार्यरत थे। जुलाई 2025 में उनकी सेवाएँ अचानक समाप्त कर दी गईं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी द्वारा अपने जवाबी हलफनामे में दिया गया कारण, कि निगम का प्रशासनिक व्यय कुल स्थापना व्यय का 45% से अधिक हो गया है, याचिकाकर्ताओं को स्थायीकरण प्रदान करने के विरुद्ध तर्क नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि यदि निगम का तर्क स्वीकार कर लिया जाता है तो यह याचिकाकर्ताओं को बंधुआ मजदूरों की तरह गुलाम बनाने के समान होगा। कोकर्ट ऐसी स्थिति में मूकदर्शक नहीं रह सकता।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“याचिकाकर्ताओं को अस्थायी आधार पर उनकी सेवा समाप्ति तक बनाए रखना प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ताओं का शोषण है, जबकि उनके कर्तव्य की प्रकृति ऐसी है कि वे निगम के स्थायी/नियमित कर्मचारियों के साथ-साथ कार्य करने के लिए नियुक्त हैं। एक बार यह पहलू सिद्ध हो जाने पर याचिकाकर्ता स्थायीकरण के हकदार हैं।”
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता नगर निगम के अभिन्न और नियमित कार्य कर रहे थे, जैसे अग्निशमन सेवाओं का संचालन और आवश्यक वाहन चलाना। इसने माना कि स्वीकृत पदों की अनुपलब्धता के आधार पर निगम का मामला स्वीकार नहीं किया जा सकता।
निगम के इस तर्क पर कि सरकारी प्रस्ताव द्वारा निर्धारित व्यय सीमा के कारण वह शक्तिहीन है, कोर्ट ने कहा:
“सरकारी प्रस्ताव में निहित शर्त को कर्मचारियों को स्थायी दर्जा के लाभ से वंचित करने का पैमाना नहीं माना जा सकता, जबकि निगम को सफाई कामगारों की नियुक्ति करने और राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से अनुशंसित और स्वीकृत सभी नियुक्तियों का अधिकार है। इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं के मूल अधिकार से वंचित करना मनमाना और अत्याचारपूर्ण होगा।”
कोर्ट ने दोहराया कि समान पद पर कार्यरत कर्मचारियों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 के अनुरूप नहीं है।
तदनुसार, कोर्ट ने औद्योगिक न्यायालय के आदेशों और निगम द्वारा 2 जुलाई, 2025 को जारी किए गए समाप्ति आदेशों को रद्द कर दिया। इसने मालेगांव नगर निगम को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं को एक सप्ताह के भीतर सेवा की निरंतरता, पूर्ण बकाया वेतन के साथ बहाल करे और उन्हें निर्णय की तिथि से स्थायी कर्मचारियों का दर्जा प्रदान करे।
Case Title: Pradip Ramesh Shinde & Ors. v. Malegaon Municipal Corporation, Malegaon [Writ Petition No. 7949 of 2025]

