अंतरिम चरण में उपस्थिति दर्ज कराई गई हो तो स्थानांतरित मुकदमे में समन की औपचारिक तामील की आवश्यकता नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

13 Jun 2025 8:44 PM IST

  • अंतरिम चरण में उपस्थिति दर्ज कराई गई हो तो स्थानांतरित मुकदमे में समन की औपचारिक तामील की आवश्यकता नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अंतरिम चरण में उपस्थिति दर्ज कराई गई हो तो स्थानांतरित मुकदमे में समन की औपचारिक तामील की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस अभय आहूजा की पीठ ने कहा,

    “चूंकि कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट और संशोधित सीपीसी की समन की तामील के संबंध में कठोरताएं स्थानांतरित मुकदमों पर लागू नहीं होती हैं और यह देखते हुए कि उक्त वाद कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट के अधिनियमन से पहले दायर किया गया नियमित वाद है, जिस पर वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम लागू होता है और प्रतिवादी नंबर 1 ने पहले ही अंतरिम चरण में उपस्थिति दर्ज करा दी है / वकालतनामा दायर कर दिया, इसलिए वादी को उसके बाद समन की रिट तामील करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि समन की रिट तामील करने का उद्देश्य पूरा हो चुका है।”

    13 जुलाई, 2007 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने तारदेव प्रॉपर्टीज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम बैंक ऑफ़ बड़ौदा के मामले में एक निर्णय पारित किया, जिसमें कहा गया कि अंतरिम चरण में उपस्थिति दर्ज करने/वकालतनामा दाखिल करने से समन की रिट की तामील की आवश्यकता समाप्त नहीं होगी।

    29 सितंबर, 2008 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि यदि प्रतिवादी/प्रतिवादी ने उपस्थिति दर्ज की है और अपना वकालतनामा दाखिल किया है तो “… समन की रिट की तामील या सेवा का हलफनामा दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।”

    21 सितंबर, 2011 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने मीना रमेश लुल्ला और अन्य बनाम ओमप्रकाश ए. अलरेजा और अन्य के मामले में निर्णय पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि यदि प्रतिवादी उपस्थिति दर्ज करता है/वकालतनामा दाखिल करता है तो समन की रिट की औपचारिक तामील पर जोर नहीं दिया जा सकता है और मुकदमा तामील हो गया माना जाएगा।

    19 अगस्त, 2015 को वादीगण द्वारा 24,00,00,000/- रुपए की राशि वसूलने के लिए वाद दायर किया गया। यह देखा गया कि उक्त वाद एक नियमित वाद के रूप में दायर किया गया, अर्थात कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट, 2015 के अधिनियमित होने से पहले। 23 अक्टूबर, 2015 को कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट अधिनियमित हुआ था।

    इसके बाद 21 अक्टूबर, 2016 को प्रोथोनोटरी और सीनियर मास्टर ने नियमित वाद को वाणिज्यिक वाद में परिवर्तित करने और इसे न्यायालय के वाणिज्यिक प्रभाग को हस्तांतरित करने का आदेश पारित किया।

    आवेदक ने प्रस्तुत किया कि जहां वादीगण बॉम्बे हाईकोर्ट (मूल पक्ष) नियम, 1980 के नियम 87 के तहत वाद दायर करने की तारीख से छह महीने के भीतर समन की रिट की तामील करने के लिए कोई कदम नहीं उठाते हैं, तो प्रोथोनोटरी और सीनियर मास्टर वाद को खारिज करने के लिए बोर्ड पर अधिसूचित करेंगे।

    प्रतिवादी ने दलील दी कि चूंकि प्रतिवादी नंबर 1 ने अंतरिम चरण में पेश होकर वकालतनामा दाखिल किया, इसलिए समन की रिट की तामील की जरूरत नहीं है, क्योंकि सीपीसी के संशोधित प्रावधानों की कठोरता हस्तांतरित मुकदमों पर लागू नहीं होती और न ही 120 दिनों की समयावधि लागू होती है। कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट की धारा 15(4) के तहत इस न्यायालय का वाणिज्यिक प्रभाग केस प्रबंधन सुनवाई में समयसीमा तय कर सकता है। इसलिए प्रतिवादी नंबर 1 के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है।

    कुछ निर्णयों का हवाला देने के बाद पीठ ने कहा कि चूंकि यह हस्तांतरित वाद का मामला है, जिसमें प्रतिवादी नंबर 1 ने पहले ही अंतरिम चरण में पेश होकर वकालतनामा दाखिल कर दिया, इसलिए वादी को समन की रिट तामील करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि समन की रिट तामील का उद्देश्य और उद्देश्य ही निरर्थक हो गया और समन की रिट तामील के लिए निर्देश पारित करने में अनावश्यक न्यायिक समय बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में समन की औपचारिक सेवा की कोई आवश्यकता नहीं है।

    पीठ ने आगे कहा,

    “इसलिए प्रतिवादी नंबर 1 वादी के दावे के बारे में अधिसूचित होने के बावजूद, उक्त मुकदमा खारिज करने की मांग नहीं कर सकता। स्थानांतरित मुकदमों के मामले में यदि प्रतिवादी अंतरिम चरण में उपस्थित हुआ और अपना वकालतनामा दाखिल किया तो समन की रिट की सेवा की आवश्यकता नहीं है। सीपीसी के संशोधित प्रावधानों की कठोरता स्थानांतरित मुकदमों पर लागू नहीं होती है और 120 दिनों की समय अवधि भी लागू नहीं होती है। कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट की धारा 15(4) के तहत इस न्यायालय का वाणिज्यिक प्रभाग ही समयसीमा तय कर सकता है। ऐसा होने पर प्रतिवादी नंबर 1 को कोई नुकसान नहीं होगा।”

    उपरोक्त के मद्देनजर, पीठ ने आवेदन खारिज कर दिया।

    Case Title: Anil Dhanraj Jethani and another v. Firoz A. Nadiadwala and others

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