'फादर स्टेन स्वामी की स्वाभाविक मृत्यु हुई, उन्हें शीघ्र मेडिकल ट्रीटमेंट दिया गया': राज्य ने बॉम्बे हाईकोर्ट में बताया

Shahadat

7 Oct 2025 10:30 AM IST

  • फादर स्टेन स्वामी की स्वाभाविक मृत्यु हुई, उन्हें शीघ्र मेडिकल ट्रीटमेंट दिया गया: राज्य ने बॉम्बे हाईकोर्ट में बताया

    बॉम्बे हाईकोर्ट को सोमवार को सूचित किया गया कि फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु पर अनिवार्य मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट मई की शुरुआत में महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग (MSHRC) के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि उनकी मृत्यु 'स्वाभाविक' है।

    जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस रंजीतसिंह भोंसले की खंडपीठ को राज्य द्वारा सूचित किया गया कि MSHRC के अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर) अनंत बदर और सदस्य संजय कुमार की पीठ ने 2 मई, 2025 को मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट स्वीकार की थी, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि स्वामी की मृत्यु में कुछ भी 'अप्राकृतिक' नहीं है और कोई चिकित्सीय लापरवाही भी नहीं है।

    जस्टिस गडकरी ने आदेश में कहा,

    "हमें सूचित किया गया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 176 के तहत अनिवार्य रिपोर्ट MSHRC के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिसे स्वीकार कर लिया गया। याचिकाकर्ता के वकील ने उक्त रिपोर्ट और MSHRC द्वारा 2 मई, 2025 को पारित आदेश का अध्ययन करने के लिए समय मांगा है। तदनुसार, मामले की सुनवाई (दिवाली) की छुट्टियों के बाद स्थगित की जाती है।"

    यह रिपोर्ट अतिरिक्त लोक अभियोजक एम.एम. म्हात्रे ने अदालत में प्रस्तुत की।

    MSHRC के आदेश और जांच रिपोर्ट के अनुसार, स्वामी को पार्किंसंस और MDD सहित कई बीमारियां थीं और उनकी बीमारियों के लिए उन्हें 'शीघ्र' मेडिकल ट्रीटमेंट दिया गया था।

    जांच ​​रिपोर्ट में कहा गया,

    "...यह स्पष्ट है कि किसी भी दुर्घटना या ऐसी किसी भी बात का कोई आरोप नहीं है, जिससे यह पता चले कि मृतक की वृद्धावस्था और बीमारी के अलावा कुछ अन्य तथ्यों के कारण उसकी मृत्यु अप्राकृतिक है। उसकी मृत्यु लोबार निमोनिया के कारण सेप्टीसीमिया के कारण हुई, जो कि एक प्राकृतिक मृत्यु है।"

    इसे स्वीकार करते हुए MSHRC ने अपने आदेश में दर्ज किया,

    "मृत्यु का कारण अप्राकृतिक या हत्या नहीं पाया गया। इस मामले में कोई गड़बड़ी या मेडिकल लापरवाही नहीं पाई गई। आयोग को मानवाधिकारों के उल्लंघन या मानवाधिकारों के संरक्षण में लापरवाही का संकेत देने वाली कोई भी सामग्री नहीं मिली है।"

    गौरतलब है कि फादर स्टेन स्वामी के निकट संबंधी द्वारा दिसंबर, 2021 में दायर की गई यह याचिका, जिसमें अब दिवंगत (स्वामी) का नाम एल्गर परिषद - भीमा कोरेगांव मामले से हटाने की मांग की गई। यह याचिका मुंबई के जेवियर्स कॉलेज के पूर्व प्राचार्य फादर फ्रेजर मस्कारेन्हास ने सीनियर एडवोकेट मिहिर देसाई के माध्यम से दायर की।

    याचिका में कहा गया कि मार्च, 2021 में स्वामी को ज़मानत देने से इनकार करने वाले स्पेशल कोर्ट के आदेश उनकी प्रतिष्ठा और आदिवासी एवं मानवाधिकारों के क्षेत्र में उनके कार्यों को "धूमिल" करते हैं। ये निष्कर्ष संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रतिष्ठा के उनके मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन करते हैं।

    तदनुसार, याचिका में उक्त आदेश को रद्द करने की मांग की गई।

    जुलाई, 2021 में ज़मानत पर सुनवाई से पहले प्राइवेट हॉस्पिटल में हृदय गति रुकने से स्वामी का निधन हो गया। 8 अक्टूबर, 2020 को आतंकवाद-रोधी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत इस मामले में गिरफ्तार होने वाले वे 16वें और सबसे उम्रदराज़ नागरिक अधिकार कार्यकर्ता है।

    इस बीच NIA ने याचिका के जवाब में अपने हलफनामे में दलील दी कि स्वामी के खिलाफ मुकदमा समाप्त हो गया है, लेकिन आरोप अभी भी कायम हैं।

    NIA द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया,

    "यह कहना कि स्टेन स्वामी पर लगे आरोपों की बदनामी उनकी कब्र तक उनका पीछा करती रही, बेहद निंदनीय है। विनम्रतापूर्वक यह कहा जाता है कि याचिकाकर्ता को इस तरह का बयान देते समय बहुत ज़िम्मेदार होना चाहिए। याचिकाकर्ता ज़मीनी हक़ीक़त जाने बिना स्टेन स्वामी के बारे में जो कुछ जानता है या देखना चाहता है, उसके अनुसार ऐसे बयान दे रहा है। अभियुक्त स्टेन स्वामी को क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करने के बाद गिरफ़्तार किया गया, उनके पास पर्याप्त सबूत हैं, जो गैरकानूनी सीपीआई (माओवादी) गतिविधियों को आगे बढ़ाने में उनकी संलिप्तता को साबित करते हैं और इसे ऐसा कहना अशोभनीय होगा।"

    फादर मस्कारेनहास द्वारा दायर याचिका में इस तर्क पर कि स्वामी को लगातार आरोपी दिखाना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, NIA ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 21 कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

    हलफनामे में कहा गया,

    "इसलिए उक्त अधिकार का इस्तेमाल उन आरोपों को हटाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जा रहा है, जो प्रथम दृष्टया निर्दिष्ट अदालत द्वारा स्थापित हैं। स्वयं अवैध और असंवैधानिक हैं। याचिकाकर्ता मामले के वास्तविक तथ्यों को जाने बिना बयान दे रहा है। उसने इसे इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया कि यह मान लेना कि आरोपी द्वारा किए गए अपराध के बावजूद, कानून की प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया जाएगा। राज्य का कर्तव्य है कि वह अपराधी को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए दंडित करने के उद्देश्य से उसे सजा दिलाए। ऐसा न करने पर स्थिति अराजक हो जाएगी और न्याय के पहिये अवरुद्ध हो जाएंगे।"

    यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि दिसंबर, 2021 में दायर की गई यह याचिका आज तक हाईकोर्ट की पांच अलग-अलग खंडपीठों के समक्ष लगभग 8 बार सूचीबद्ध की जा चुकी है, जिनमें से जस्टिस प्रसन्ना वराले (अब सुप्रीम कोर्ट के जज), साधना जाधव (अब रिटायर) और रेवती मोहिते-डेरे (बॉम्बे हाईकोर्ट की सीनियर जज) की अध्यक्षता वाली तीन पीठों ने उक्त मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

    Case Title: Frazer Mascarenhas vs National Investigation Agency and Anr. (Criminal Writ Petition 6427 of 2021)

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