दिल्ली हाईकोर्ट ने श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की, डीपफेक और मॉर्फ्ड सामग्री पर रोक लगाई

Shahadat

2 Oct 2025 4:14 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की, डीपफेक और मॉर्फ्ड सामग्री पर रोक लगाई

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में "द आर्ट ऑफ़ लिविंग" फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा हेतु जॉन डो आदेश पारित किया।

    जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने जॉन डो (अज्ञात संस्थाओं) को श्री श्री रविशंकर के व्यक्तित्व और उनके नाम, आवाज़, इमेज, समानता, भाषण और प्रस्तुति की अनूठी शैली या उनकी पहचान से जुड़ी किसी भी अन्य विशेषता का उनकी सहमति के बिना किसी भी व्यावसायिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग करने से रोक दिया।

    यह निर्देश सभी प्रारूपों और सभी माध्यमों पर लागू होता है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) द्वारा निर्मित सामग्री, डीपफेक वीडियो, वॉयस-क्लोन ऑडियो, मेटावर्स वातावरण या भविष्य के किसी भी प्रारूप शामिल हैं।

    अदालत ने कहा,

    “प्रथम दृष्टया मामला वादी के पक्ष में और प्रतिवादी नंबर 1 के विरुद्ध बनता है। सुविधा का संतुलन भी वादी के पक्ष में है। यदि प्रतिवादी नंबर 1 (जॉन डो) को डीपफेक सामग्री प्रकाशित/प्रसारित करने से नहीं रोका गया, तो वादी को अपूरणीय क्षति होगी।”

    जस्टिस अरोड़ा ने शंकर के व्यक्तित्व अधिकारों की सुरक्षा की मांग करने वाले उनके मुकदमे में उनके पक्ष में अंतरिम एकपक्षीय निषेधाज्ञा पारित की।

    उनका कहना था कि विभिन्न अज्ञात संस्थाएं AI तकनीकों और डीपफेक उपकरणों का उपयोग करके फेसबुक और अन्य स्वतंत्र वेबसाइटों पर उनके फर्जी और मनगढ़ंत वीडियो प्रसारित कर रही थीं।

    यह तर्क दिया गया कि ये संस्थाएं उनकी आवाज़, चेहरे के भाव, व्यक्तित्व और समानता की नकल करने के लिए ऐसे उपकरणों का उपयोग कर रही थीं, जिससे दुनिया भर में यह गलत धारणा बन रही थी कि वह व्यक्तिगत रूप से बोल रहे हैं, सामग्री का समर्थन या प्रचार कर रहे हैं।

    शंकर का कहना था कि अलग-अलग यूज़रनेम और पेजों से प्रकाशित ऐसे 'डीपफेक' वीडियो में उन्हें गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के लिए कथित आयुर्वेदिक या प्राकृतिक उपचारों का प्रचार करते हुए दिखाया गया। साथ ही गंभीर बीमारियों के तुरंत और तात्कालिक इलाज के अतिरंजित और निराधार दावों का भी।

    उन्होंने कहा कि वीडियो में झूठा दावा किया गया कि उन्होंने वर्षों तक शोध किया है या उपचारों का परीक्षण किया है या उन्होंने ध्यान के दौरान ऐसे उपचारों की खोज की।

    अपने आदेश में अदालत ने मेटा प्लेटफ़ॉर्म्स को निर्देश दिया कि वह अपने प्लेटफ़ॉर्म से शंकर से संबंधित विशिष्ट पेजों, URL, प्रोफ़ाइलों, खातों, वीडियो, फ़ोटो, किसी भी रूपांतरित और उल्लंघनकारी सामग्री, टेक्स्ट, सोशल मीडिया समूहों और चैनलों तक पहुंच को हटा दे या अक्षम कर दे।

    अदालत ने कहा,

    "यदि वादी को इस मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, कोई और झूठी, मनगढ़ंत और/या छेड़छाड़ की गई उल्लंघनकारी सामग्री मिलती है, जो वादी से उत्पन्न या उससे संबद्ध नहीं है तो वादी प्रतिवादी नंबर 4 से संपर्क करके उनसे 36 घंटों के भीतर ऐसी किसी भी पोस्ट/छवि/वीडियो/पाठ/या किसी अन्य छेड़छाड़ की गई उल्लंघनकारी सामग्री को ब्लॉक/हटाने का अनुरोध करने के लिए स्वतंत्र होगा, जो उसके प्लेटफार्मों पर प्रकाशित की गई या उसके प्लेटफार्मों का उपयोग कर रही है।"

    इसमें आगे कहा गया कि यदि मुकदमे के लंबित रहने के दौरान शंकर को ऐसी कोई और वेबसाइट मिलती है, जो उसके व्यक्तित्व और प्रचार अधिकारों का उल्लंघन करती है और/या नकली वीडियो हैं तो वह उन्हें पक्षकार बनाने के लिए संयुक्त रजिस्ट्रार से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र होगा।

    Title: RAVI SHANKAR v. JOHN DOE(S) / ASHOK KUMAR(S) & ORS

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