भजन, अज़ान और क्लब इवेंट्स के दौरान पूरी तरह से उल्लंघन: नागपुर में बार-बार होने वाले नॉइज़ पॉल्यूशन पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर PIL दर्ज की
Shahadat
6 Dec 2025 10:29 AM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) ने हाल ही में नागपुर शहर में नॉइज़ पॉल्यूशन के 'बार-बार होने' वाले मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया और खास क्लबों, मंदिरों और दरगाहों का नाम लिया। साथ ही कहा कि 'भजन', 'अज़ान' और अलग-अलग सेलिब्रेशन और इवेंट्स जैसी एक्टिविटीज़ कानून का उल्लंघन करके की जाती हैं।
जस्टिस अनिल एल पानसरे और जस्टिस राज डी वाकोडे की बेंच ने कहा कि जब तक कोई असरदार तरीका नहीं बनाया जाता, नॉइज़ कंट्रोल पर राज्य के आदेश "आँखों में धूल झोंकने" जैसे ही रहेंगे।
इन बातों के साथ बेंच ने एक मस्जिद में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल फिर से शुरू करने की मांग वाली याचिका भी यह कहते हुए खारिज कर दी कि ऐसे डिवाइस लगाना धर्म का पालन करने के लिए ज़रूरी नहीं है।
गोंडिया में याचिकाकर्ता (मस्जिद ए. गौसिया) ने मस्जिद में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल फिर से शुरू करने के लिए राज्य को निर्देश देने की मांग की थी।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील कोई ऐसा लीगल डॉक्यूमेंट रिकॉर्ड पर नहीं रख सके, जिससे यह पता चले कि लाउडस्पीकर इस्लाम की प्रैक्टिस के लिए ज़रूरी हैं।
इसलिए कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता लाउडस्पीकर लगाने की राहत "एक अधिकार के तौर पर" नहीं मांग सकता।
इस बारे में बेंच ने गॉड (फुल गॉस्पेल) इन इंडिया बनाम के.के.आर. मैजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन और अन्य 200 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज़िक्र किया ताकि यह दोहराया जा सके कि कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि दूसरों की शांति भंग करके प्रार्थना की जानी चाहिए और न ही यह सिखाता है कि उन्हें वॉयस एम्पलीफायर या ढोल बजाकर किया जाना चाहिए।
बेंच ने इन री नॉइज़ पॉल्यूशन – इम्प्लीमेंटेशन ऑफ़ द लॉज़ फॉर रिस्ट्रिक्टिंग यूज़ ऑफ़ लाउडस्पीकर्स एंड हाई-वॉल्यूम प्रोड्यूसिंग साउंड सिस्टम्स में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी ज़िक्र किया, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि किसी को भी सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि उसे अपनी आवाज़ दूसरों के कानों या दिमाग में घुसाने का अधिकार है। हालांकि याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज कर दी गई, लेकिन बेंच ने एनवायरनमेंट (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1986 और नॉइज़ पॉल्यूशन (रेगुलेशन एंड कंट्रोल) रूल्स, 2000 को ठीक से लागू न करने पर गहरी चिंता जताई। हाईकोर्ट ने कहा कि साफ कानूनों के बावजूद, नॉइज़ पॉल्यूशन पब्लिक हेल्थ के लिए एक गंभीर खतरा बना हुआ।
कोर्ट ने कहा,
"इससे “फाइट टू फ्लाइट” सिंड्रोम होता है, जिससे कोर्टिसोल और दूसरे नुकसानदायक केमिकल बाढ़ की धारा में निकल जाते हैं। समय के साथ ये केमिकल शरीर में जमा हो जाते हैं, जिससे कई हेल्थ प्रॉब्लम होती हैं, जैसे दिल की बीमारी, गुस्सा, क्रोनिक थकान, सिरदर्द, हाई ब्लड प्रेशर, मेंटल बीमारी और एंग्जायटी। 80 से 110 डेसिबल (dB) के लेवल के बीच होने वाला नॉइज़ पॉल्यूशन सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है। 120 dB से ज़्यादा का नॉइज़ पॉल्यूशन इंसान के दर्द की सीमा को पार कर सकता है और 140 से 160 dB के बीच का नॉइज़ पॉल्यूशन कान के पर्दे के फटने का कारण बन सकता है।"
कोर्ट ने अपनी बातों का दायरा और बढ़ाया और नागपुर में पॉल्यूशन के बार-बार होने वाले मुद्दे पर ध्यान दिया। इसमें खास तौर पर जिले के जाने-माने वेन्यू/क्लब/मैरिज हॉल के नाम लिए गए और कहा गया कि वे 1986 के एक्ट के साथ-साथ 2000 के रूल्स का भी उल्लंघन करते हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि साउंड सिस्टम "मंज़ूर डेसिबल वॉल्यूम से कहीं ज़्यादा" लगाए जाते हैं और रात 10:00 बजे की डेडलाइन के बाद भी बजते रहते हैं, और अक्सर आधी रात को पटाखे भी फोड़े जाते हैं।
कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि अलग-अलग सेलिब्रेशन की इजाज़त देते समय इन जगहों को 1986 के एक्ट और 2000 के नियमों के नियमों का पालन पक्का करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।
कोर्ट ने अलग-अलग धर्मों की धार्मिक जगहों पर होने वाली एक्टिविटीज़ को भी ध्यान में रखा। नागपुर के कुछ खास मंदिरों और दरगाहों का नाम लेते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि भजन और अज़ान जैसी एक्टिविटीज़ कानून का "पूरी तरह उल्लंघन" करते हुए लाउडस्पीकर पर की जाती हैं।
इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी देखा कि ज़िले का सिविल लाइंस इलाका साइलेंसर फटने की आवाज़ वाली बाइक और मोटर गाड़ियों का भी हब है।
कोर्ट ने कहा कि मौजूदा सिस्टम पुलिस के साथ काम करता है, जो शिकायत मिलने के बाद ही एक्शन लेती है। हालांकि, बेंच ने कहा कि पुलिस और दूसरी ज़िम्मेदार अथॉरिटीज़ को साउंड पॉल्यूशन का खुद से संज्ञान लेना चाहिए।
दिलचस्प बात यह है कि बेंच ने इस अजीब बात पर ध्यान दिलाया कि ये नियम तोड़ने की घटनाएं उन इलाकों में होती हैं, जहां पुलिस कमिश्नर और दूसरे बड़े अधिकारी रहते हैं।
कोर्ट ने आगे कहा कि जब तक 2000 के नियमों को लागू करने और अलग-अलग कोर्ट के दिए गए निर्देशों के लिए कोई असरदार तरीका नहीं बनाया जाता, तब तक राज्य सरकार का 21-7-2025 का आदेश दिखावा ही रहेगा।
कोर्ट ने दुख जताया कि पटाखों, लाउडस्पीकर और गाड़ियों के शोर के बारे में सुप्रीम कोर्ट के 2005 में दिए गए पूरे निर्देश "कागज़ों पर ही रह गए हैं"।
हाईकोर्ट ने राज्य को सलाह दी कि आदेश को लागू न करने पर नतीजों के साथ एक नया आदेश जारी करने पर विचार करे।
हालांकि, इस मुद्दे पर असरदार तरीके से नज़र रखने के लिए हाईकोर्ट ने नॉइज़ पॉल्यूशन के मुद्दे (नागपुर शहर से जुड़ा) पर खुद से संज्ञान लिया और रजिस्ट्री को इसे खुद से पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के तौर पर रजिस्टर करने का निर्देश दिया।

