वैधानिक समर्थन के अभाव में दिशा-निर्देश जारी नहीं किए जा सकते: गलत तरीके से कैद किए गए लोगों के लिए कोष बनाने की मांग करने वाली याचिका पर हाईकोर्ट

Shahadat

24 April 2025 4:13 AM

  • वैधानिक समर्थन के अभाव में दिशा-निर्देश जारी नहीं किए जा सकते: गलत तरीके से कैद किए गए लोगों के लिए कोष बनाने की मांग करने वाली याचिका पर हाईकोर्ट

    गलत तरीके से कैद किए गए लोगों को मुआवजा देने के लिए धन की मांग करने वाली जनहित याचिका को वापस लेने की अनुमति देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (23 अप्रैल) को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वैधानिक समर्थन के अभाव में वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत केंद्र या राज्य सरकार को दिशा-निर्देश जारी नहीं कर सकता।

    90 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका में दुर्भावनापूर्ण और गलत अभियोजन के लिए अधिकतम सजा से अधिक अवधि तक जेल में रहने वाले विचाराधीन कैदियों को मुआवजा देने के लिए एक कोष बनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि उन्होंने अधिकारियों को कई पत्र भेजे थे, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।

    चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने मामले में डॉ. मिलिंद साठे को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया था।

    सुनवाई के दौरान एमिक्स क्यूरी ने कहा कि किसी वैधानिक समर्थन के अभाव में हाईकोर्ट सरकार को ऐसे कोष बनाने का निर्देश नहीं दे सकता। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट सरकार को केवल ऐसी मशीनरी बनाने की सिफारिश कर सकता है, जो वांछनीय हो।

    एमिक्स क्यूरी ने गलत अभियोजन पर 2018 विधि आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए राज्य पर एक वैधानिक दायित्व बनाने और पीड़ितों के लिए मुआवजे का एक संगत वैधानिक अधिकार बनाने की सिफारिश की गई थी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने विधि आयोग की सिफारिशों पर विचार नहीं किया।

    उन्होंने कहा कि केंद्र ने हाल ही में अधिनियमित बीएनएसएस में गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कोई तंत्र प्रदान नहीं किया। एमिक्स क्यूरी ने विशाखा मामले का भी हवाला दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए, क्योंकि कानून में शून्यता थी। फिर भी संबंधित अधिकारों की गारंटी संविधान के तहत दी गई थी। उन्होंने कहा कि वर्तमान मामला ऐसा मामला नहीं है, जहां वैधानिक दायित्वों की कमी के कारण परमादेश की रिट जारी की जा सके। उन्होंने कहा कि दिशा-निर्देश जारी करना कानून बनाने के लिए आदेश जारी करने के समान होगा।

    उनकी दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने एमिक्स क्यूरी से सहमति जताई कि वैधानिक समर्थन के अभाव में वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दिशा-निर्देश जारी नहीं कर सकता या आदेश नहीं दे सकता। इसने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि जबकि सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करने की शक्ति है, हाईकोर्ट के पास अनुच्छेद 226 के तहत ऐसी शक्ति नहीं है।

    न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि वह इस मुद्दे पर याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व पर विचार करने के लिए केवल केंद्र और राज्य सरकारों को सिफारिशें जारी कर सकता है।

    न्यायालय की टिप्पणियों के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता मांगी।

    न्यायालय ने ऐसी स्वतंत्रता प्रदान की और याचिका को वापस ले लिया गया मानते हुए खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: जवाहरलाल शर्मा बनाम भारत संघ (पीआईएल/18/2025)

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