महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाकों में गर्भवती महिलाओं की दुर्दशा पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया
Praveen Mishra
16 Dec 2025 10:40 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र के पहाड़ी और आदिवासी इलाकों में गर्भवती महिलाओं की दयनीय स्थिति को लेकर स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) लिया, जहां महिलाओं को घर पर ही प्रसव कराने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और नवजात शिशु की नाल काटने के लिए 'शेविंग ब्लेड' का इस्तेमाल किया जा रहा है।
जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस हितेन वेणेगावकर की खंडपीठ ने एक मराठी दैनिक में प्रकाशित समाचार रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए यह टिप्पणी की। रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने पिछले डेढ़ वर्ष में गर्भवती महिलाओं, भ्रूण और बच्चों की मृत्यु रोकने के लिए 771 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं।
8 दिसंबर को पारित आदेश में न्यायालय ने कहा,
“यदि सरकार योजनाओं पर इतनी बड़ी राशि खर्च कर रही है और फिर भी ये योजनाएं राज्य के हर कोने और हर नागरिक तक नहीं पहुंच पा रही हैं, तो इसे उन योजनाओं की सफलता नहीं कहा जा सकता।”
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ये सुविधाएं प्रत्येक नागरिक तक पहुंचें। न्यायालय ने कहा,
“महिलाओं और बच्चों के संबंध में विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। गर्भवती महिलाओं के लिए आशा कार्यकर्ता कार्यरत हैं और कई योजनाओं के तहत ऐसे लोग नियुक्त किए गए हैं जो गर्भवती महिलाओं को सावधानियां, नियमित जांच और आहार के बारे में जानकारी देते हैं। लेकिन यदि आदिवासी और दुर्गम क्षेत्रों में ऐसे कर्मी उपलब्ध नहीं हैं, तो यह योजना और सरकार—दोनों की विफलता मानी जाएगी।”
इसके बाद, खंडपीठ ने उक्त समाचार को स्वतः संज्ञान लेते हुए सुओ मोटो जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया और सरकारी वकील को निर्देश दिया कि संबंधित सरकारी अधिकारियों के शपथपत्रों के साथ आवश्यक आंकड़े 19 दिसंबर 2025 तक रिकॉर्ड पर प्रस्तुत किए जाएं।
उल्लेखनीय है कि समाचार रिपोर्ट में पहाड़ी इलाकों में गर्भवती महिलाओं की गंभीर स्थिति को उजागर किया गया था। रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार द्वारा भारी खर्च के बावजूद वहां स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं और प्रसव आज भी बांस या शेविंग ब्लेड के सहारे किए जा रहे हैं।
आदेश में कहा गया है कि समाचार में दो ऐसे व्यक्तियों के साक्षात्कार प्रकाशित हुए हैं, जो इस प्रकार के प्रसव कराते हैं और उन्होंने स्वीकार किया है कि वे नाल काटने के लिए ब्लेड का उपयोग करते हैं। यहां तक कि गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु होने की स्थिति में भी ब्लेड की सहायता से भ्रूण के टुकड़े कर उसे बाहर निकाला जाता है। दोनों ने दावा किया कि उन्होंने सैकड़ों महिलाओं का प्रसव कराया है और अब उनमें से एक का बेटा भी यही कार्य कर रहा है।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि यदि प्रसव पीड़ा कम नहीं होती, तो महिलाओं को महुआ की शराब पिलाई जाती है। रिपोर्ट में 40 वर्षीय एक महिला का साक्षात्कार भी शामिल है, जिसने आठवीं बार गर्भधारण किया था और जिसने स्वयं ब्लेड से अपने बच्चे की नाल काटी थी।
अदालत ने एडवोकेट गीता देशपांडे को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है और मामले की अगली सुनवाई 19 दिसंबर को तय की है।

