विधवा या तलाकशुदा होने के "मानदंड" पर खरी नहीं उतरने वाली अविवाहित महिला के टर्मिनेशन का विरोध करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की आलोचना की

Shahadat

8 Oct 2024 10:25 AM IST

  • विधवा या तलाकशुदा होने के मानदंड पर खरी नहीं उतरने वाली अविवाहित महिला के टर्मिनेशन का विरोध करने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की आलोचना की

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार की इस बात पर खिंचाई की कि उसने 'अविवाहित' महिला के 20 सप्ताह के गर्भ को इस आधार पर टर्मिनेट करने का विरोध किया कि वह टर्मिनेशन कराने के मानदंडों पर 'खरी नहीं उतरती'।

    जस्टिस सारंग कोटवाल और डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा दिए गए तर्क के 'तर्क' पर सवाल उठाया कि याचिकाकर्ता 23 वर्षीय अविवाहित महिला को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP Act)से लाभ उठाने के लिए मानदंडों पर खरी उतरना चाहिए, यानी या तो वह विधवा होनी चाहिए या तलाकशुदा।

    पीठ ने एडिशनल सरकारी वकील मोनाली ठाकुर से पूछा,

    "अविवाहित महिला विधवा या तलाकशुदा कैसे हो सकती है? यह किस तरह का तर्क है?"

    खंडपीठ ने एक्स बनाम प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विवाहित और अविवाहित महिला के बीच का अंतर उस मूल उद्देश्य और लक्ष्य से संबंधित नहीं है, जिसे संसद MTP Act लाकर प्राप्त करना चाहती है।

    जजों ने आदेश दिया,

    "इस प्रकार, यह व्याख्या कि चूंकि याचिकाकर्ता अविवाहित है, इसलिए उसे टर्मिनेशन की अनुमति नहीं दी जा सकती, एक्ट के प्रावधानों की सही व्याख्या नहीं होगी। परिणामस्वरूप, चूंकि अन्य सभी शर्तें पूरी हो चुकी हैं, इसलिए याचिकाकर्ता को प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के लिए अधिनियम का लाभ मिलना चाहिए।"

    इसलिए खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार MTP Act से गुजरने की अनुमति दी।

    इसके अलावा, पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को 'अविवाहित' होने के कारण सरकारी जेजे अस्पताल द्वारा एमटीपी नियम, 2021 के तहत अनिवार्य फॉर्म ई भरने की अनुमति नहीं दी गई।

    उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता 20 सप्ताह और 6 दिन की गर्भवती थी और जब वह इसे समाप्त करने के लिए जेजे अस्पताल गई तो उसे बताया गया कि चूंकि उसकी गर्भावस्था 20 सप्ताह से 24 सप्ताह के बीच है, इसलिए उसे एमटीपी नियम, 2021 के तहत फॉर्म ई भरना होगा।

    फॉर्म ई मूल रूप से दो मेडिकल डॉक्टर द्वारा प्रमाणीकरण है, जो उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करेंगे जिनके तहत 20 सप्ताह से 24 सप्ताह के बीच की गर्भावस्था वाली महिला को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी से गुजरने की अनुमति दी जा सकती है।

    एमटीपी नियम, 2021 के तहत चौबीस सप्ताह तक की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के लिए पात्र महिलाओं की निम्नलिखित श्रेणियां हैं:

    (1) यौन उत्पीड़न या बलात्कार या अनाचार की उत्तरजीवी।

    (2) नाबालिग।

    (3) चल रही गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन (विधवा और तलाक)।

    (4) शारीरिक दिव्यांगता वाली महिलाएं [दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (2016 का 49) के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रमुख दिव्यांगता]।

    (5) मानसिक रूप से बीमार महिलाएं जिनमें मानसिक मंदता भी शामिल है।

    (6) भ्रूण की विकृति जिसके जीवन के साथ असंगत होने का पर्याप्त जोखिम है या यदि बच्चा पैदा होता है तो वह ऐसी शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से ग्रस्त हो सकता है, जिससे वह गंभीर रूप से दिव्यांग हो सकता है।

    (7) मानवीय परिस्थितियों या आपदा या आपातकालीन स्थितियों में गर्भवती महिलाएं, जिन्हें सरकार द्वारा घोषित किया जा सकता है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट मीनाज काकलिया ने बताया कि उनके मुवक्किल को शुरू में फॉर्म भरने का सुझाव दिया गया, लेकिन बाद में इस आधार पर इनकार कर दिया गया कि वह इनमें से किसी भी श्रेणी में फिट नहीं बैठती।

    इस पर ध्यान देते हुए पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को फॉर्म ई के प्रारूप को बदलने पर विचार करने का आदेश दिया, जिससे अविवाहित महिला को उक्त अधिनियम से लाभ उठाने से वंचित न किया जा सके।

    खंडपीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा,

    "जहां तक ​​प्रार्थना बी का सवाल है, केंद्र और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों के अनुरूप ऐसे मामलों में अपनाए जाने वाले फॉर्म प्रारूप और प्रक्रिया में बदलाव करने पर विचार करेगी।"

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