बॉम्बे हाईकोर्ट ने हिजाब प्रतिबंध को चुनौती देने वाली स्टूडेंट की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

Shahadat

20 Jun 2024 6:12 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने हिजाब प्रतिबंध को चुनौती देने वाली स्टूडेंट की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

    मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज ने बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी आदि पर प्रतिबंध लगाने का उद्देश्य धार्मिक प्रतीकों के प्रदर्शन से बचना है, जब तक कि यह धर्म के मौलिक अधिकार का हिस्सा न हो जैसे कि सिखों के लिए पगड़ी।

    कॉलेज प्रबंधन के लिए सीनियर एडवोकेट अनिल अंतुरकर ने कहा,

    “और यह केवल मुसलमानों के मामले में ही नहीं है जैसा कि उनके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सुझाया गया। यह सभी के लिए है। कॉलेज का कहना है कि आपको धार्मिक प्रतीकों का खुलासा नहीं करना चाहिए। क्या वे कोई ऐसा निर्णय दिखा सकते हैं, जो प्रथम दृष्टया कहता हो कि हिजाब आवश्यक है... विचार यह नहीं है कि आपको इसे नहीं पहनना चाहिए। विचार यह है कि आपको इसे खुले तौर पर नहीं दिखाना चाहिए, जब तक कि यह धर्म के मौलिक अधिकार का हिस्सा न हो।”

    जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और जस्टिस राजेश पाटिल की खंडपीठ ने नौ स्टूडेंट द्वारा कॉलेज प्रशासन द्वारा परिसर में स्टूडेंट को हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी आदि पहनने से रोकने वाले ड्रेस कोड को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।

    कोर्टरूम एक्सचेंज

    याचिकाकर्ताओं के वकील अल्ताफ खान ने इस मामले को कर्नाटक हाईकोर्ट के जूनियर कॉलेजों पर हिजाब प्रतिबंध के फैसले से अलग करते हुए कहा कि जबकि बाद वाला स्कूल यूनिफॉर्म से संबंधित था, यह मामला सीनियर कॉलेज की स्टूडेंट से संबंधित है, जिनके पास ड्रेस कोड है, लेकिन यूनिफॉर्म नहीं है।

    खान ने बताया कि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले में विशेष रूप से हिजाब के मुद्दे को शामिल किया गया, जबकि इस मामले में नकाब भी शामिल है। उन्होंने तर्क दिया कि बिना किसी कानूनी अधिकार के व्हाट्सएप के माध्यम से ड्रेस कोड लागू किया गया, जो कि कर्नाटक मामले से अलग है, जहां पहले से मौजूद यूनिफॉर्म नीति लागू की गई। खान ने तर्क दिया कि ड्रेस कोड याचिकाकर्ताओं के पसंद, शारीरिक अखंडता और स्वायत्तता के अधिकार का उल्लंघन है।

    कॉलेज के सीनियर एडवोकेट अनिल अंतुरकर ने कहा कि ड्रेस कोड सभी स्टूडेंट पर लागू होता है, न कि केवल मुसलमानों पर। उन्होंने याचिकाकर्ताओं को चुनौती दी कि वे यह दिखाएं कि प्रथम दृष्टया हिजाब पहनना इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथा है।

    आगे कहा गया,

    “यदि आप कॉलेज आते हैं, तो सबकुछ छोड़कर पढ़ाई करें। यदि मैं (कॉलेज) इसे केवल मुसलमानों के लिए लागू करता हूं तो यह गलत होगा। प्राथमिकता पढ़ाई होनी चाहिए। यह किसी का मामला नहीं है कि मैं इसे केवल मुसलमानों के लिए लागू कर रहा हूं।”

    अंतुरकर ने तर्क दिया कि भविष्य में यदि कोई गदा पहनकर आता है या भगवा वस्त्र पहनता है तो कॉलेज इस पर आपत्ति जताएगा।

    अंतुरकर ने तर्क दिया,

    “मुद्दा यह है कि क्या आप भारत जैसे संवेदनशील समाज में खुले तौर पर यह बताने और रेखांकित करने की अनुमति देंगे कि मैं इस समुदाय से हूं।”

    अंतुरकर ने बताया कि याचिकाकर्ता कह रहे हैं कि यह उनकी पसंद है; उन्होंने धर्म की स्वतंत्रता के बारे में नहीं कहा। उन्होंने कहा कि निजता पर पुट्टस्वामी के फैसले के बाद हर कोई सोचता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं।

    अंतुरकर ने तर्क दिया,

    “कोई व्यक्ति जो नग्नता की वकालत करता है, वह कहेगा कि मुझे अदालत में नग्न आने का अधिकार है। यह कहना आसान है कि यह मेरी पसंद है।”

    अंतुरकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि याचिकाकर्ताओं को प्रवेश के समय ड्रेस कोड के बारे में पता था।

    यूनिवर्सिटी के वकील ने रिट याचिका की स्थिरता को चुनौती देते हुए कहा कि कर्नाटक में हिजाब प्रतिबंध के सरकारी आदेश को चुनौती दी गई, जबकि इस मामले में राज्य सरकार शामिल नहीं है।

    अपने खंडन में खान ने कहा कि याचिकाकर्ता दो साल से हिजाब पहन रहे हैं और इससे कोई अशांति नहीं हुई है।

    उन्होंने कहा,

    "मेरे मित्र का दावा है कि हिजाब पहनने से अशांति होगी। यह रातों-रात अशांति कहां से आ रही है? याचिकाकर्ता दो साल से कॉलेज में हिजाब पहन रहे हैं। यह अनुच्छेद 19, 21 और निजता के अधिकार के बारे में पुट्टस्वामी फैसले का उल्लंघन है।"

    खान ने इस बात पर जोर दिया कि यह मामला किसी बड़े जनहित के बारे में नहीं है, बल्कि याचिकाकर्ताओं की शिकायतों को दूर करने के लिए है।

    आगे कहा गया,

    "यह प्रचार के लिए नहीं है, बल्कि कॉलेज की स्टूडेंट के बारे में है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह किसी बड़े जनहित के बारे में नहीं है। यह विशेष रूप से इस रिट याचिका में याचिकाकर्ताओं के अधिकारों के बारे में है।"

    खान ने कहा कि व्हाट्सएप मैसेज में भारतीय या पश्चिमी गैर-प्रकटीकरण पोशाक का उल्लेख किया गया। तर्क दिया कि हिजाब भी भारतीय है। उन्होंने तर्क दिया कि ड्रेस कोड में तर्क की कमी है।

    संविधान के बाद राज्य की ओर से यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि हिजाब भारतीय नहीं है। यह भी भारतीय है। यहां स्टूडेंट के साथ पक्षपात हो रहा है...निर्देशों में कहा गया कि लड़कियों के लिए यह भारतीय या पश्चिमी गैर-प्रकटीकरण पोशाक है। हिजाब और नकाब बिल्कुल गैर-प्रकटीकरण पोशाक हैं। मुझे निर्देशों में कोई विषय नहीं मिला। यह कहना बेतुका है कि भारतीय पोशाक की अनुमति नहीं है, लेकिन पश्चिमी पोशाक की अनुमति है, संक्षेप में।”

    खान ने एससी, एसटी, ओबीसी और मुस्लिम समुदायों की स्टूडेंट की शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने के बारे में विभिन्न दिशा-निर्देशों और नीतियों का हवाला दिया।

    खाने आगे कहा,

    “ये वे समुदाय हैं, जिनकी उच्च शिक्षा तक पहुंच नहीं है। दिशा-निर्देश उनकी शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने के लिए है। मेरा तर्क है कि यह निर्देश शिक्षा तक पहुंच में बाधा डाल रहा है।”

    उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिबंध अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 के साथ-साथ गोपनीयता के अधिकार पर पुट्टस्वामी फैसले का उल्लंघन करता है।

    केस टाइटल- ज़ैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी और अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज और अन्य।

    Next Story