बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'भारत छोड़ने' के नोटिस का सामना कर रहे शरणार्थी परिवार को 3 सप्ताह की अंतरिम सुरक्षा प्रदान की, बच्चों की पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी
LiveLaw News Network
13 Aug 2024 5:09 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले दिनों यमन के एक 'शरणार्थी' परिवार को भारत के 'उदारवादी रवैये' का अनुचित लाभ उठाने के लिए फटकार लगाई थी। हाईकोर्ट ने हाल ही में उसी परिवार को परिवार को तीन सप्ताह की सुरक्षा प्रदान की। परिवार पर वीज़ा अवधि से लगभग एक दशक से अधिक समय तक भारत में रहने का आरोप है, जिसके कारण उसे 'भारत छोड़ने का नोटिस' दिया गया था।
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने खालिद गोमेई मोहम्मद हसन, उनकी पत्नी, बेटे और बेटी को उनके मूल देश यमन में ' बलपूर्वक निर्वासित' किए जाने के मामले में सुरक्षा प्रदान की। न्यायाधीशों ने कहा, "हम उन्हें तीन सप्ताह का समय देते हैं। तब तक बच्चों को यहां अपनी पढ़ाई जारी रखने दें।"
कोर्ट ने यह फैसला तब दिया, जब उन्हें बताया गया कि 'शरणार्थी' परिवार ने ऑस्ट्रेलियाई वीज़ा के लिए आवेदन किया है और बायोमेट्रिक्स के लिए पंजीकरण, चिकित्सा परीक्षण आदि की अपनी प्रक्रिया पूरी कर ली है। परिवार ने ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों की ओर से प्रतिक्रिया लंबित होने के मद्देनजर 15 दिनों की सुरक्षा मांगी। हालांकि, पीठ ने उन्हें तीन सप्ताह का समय दिया।
गौरतलब है कि परिवार पिछले एक दशक से अपने वीजा की अवधि से अधिक समय से देश में रह रहा है और 'भारत छोड़ने का नोटिस' मिलने के बाद कोर्ट से निवेदन किया था कि उन्हें जबरन निर्वासन से सुरक्षा प्रदान की जाए क्योंकि वे केवल ऑस्ट्रेलिया जाना चाहते थे।
याचिकाकर्ता हसन एक 'शरणार्थी' कार्ड धारक है, जिसे पुणे पुलिस द्वारा 'भारत छोड़ो नोटिस' दिया गया था। उन्होंने 'जबरन' निर्वासन से सुरक्षा की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। शरणार्थी कार्ड उन्हें संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) की ओर से जारी किया गया था।
याचिका में हसन ने कहा कि वह पिछले 10 वर्षों से भारत में रह रहा है, क्योंकि उसका गृह देश यमन दुनिया के सबसे खराब मानवीय संकट का सामना कर रहा है और आंतरिक गृहयुद्ध के कारण, 4.5 मिलियन नागरिक विस्थापित हो गए हैं और देश की दो-तिहाई आबादी मानवीय संकट में है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि "यमन में जबरन निर्वासन उत्पीड़न को बढ़ावा देगा, क्योंकि याचिकाकर्ता और उसके परिवार - पत्नी और बच्चों के जीवन और अंगों को खतरा है। प्रस्तावित निर्वासन अंतर्राष्ट्रीय प्रथागत कानूनों और भारत के संविधान के विपरीत है, क्योंकि यह बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।"
जहां हसन मार्च 2014 में छात्र वीजा पर भारत आया था, वहीं उसकी पत्नी मई 2015 में मेडिकल वीजा पर आई थी। दंपति के वीजा क्रमशः फरवरी 2017 और सितंबर 2015 में समाप्त हो गए थे। पुणे पुलिस ने इस साल फरवरी में पहली बार परिवार को भारत छोड़ने का नोटिस जारी किया और उसके बाद अप्रैल में एक और नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें नोटिस मिलने के 14 दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया।
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने कम से कम ऑस्ट्रेलिया के लिए वीजा मिलने तक निर्वासन से सुरक्षा मांगी। हालांकि, पीठ पुणे पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेष वकील संदेश पाटिल से सहमत थी कि याचिकाकर्ता 129 अन्य देशों में जा सकता है जो शरणार्थी कार्ड धारकों को अनुमति देते हैं। फिर भी याचिकाकर्ता ने सुरक्षा पर जोर दिया।
न्यायाधीशों ने तब मौखिक रूप से टिप्पणी की थी, "आप पाकिस्तान जा सकते हैं, जो पड़ोस में है। या आप किसी भी खाड़ी देश में जा सकते हैं। भारत के उदारवादी रवैये का अनुचित लाभ न उठाएं।" पीठ ने मामले की सुनवाई तीन सप्ताह के लिए स्थगित कर दी है।