Badlapur Encounter: मृतक के माता-पिता ने पुलिस के खिलाफ मामला वापस लेने की मांग की, हाईकोर्ट ने राज्य से पूछा- अभी तक FIR क्यों दर्ज नहीं की गई?
Shahadat
6 Feb 2025 12:40 PM

बदनाम बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में अब मृतक आरोपी के माता-पिता ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा कि वे अपने बेटे की "हिरासत में मौत" की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली अपनी याचिका को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं।
अगस्त, 2024 में गिरफ्तार किए गए आरोपी की सितंबर में कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में हत्या कर दी गई थी। वैन में मौजूद पांच पुलिसकर्मियों ने तर्क दिया कि मृतक ने एक कांस्टेबल से राइफल छीन ली और गोली चला दी, जिससे उनमें से एक घायल हो गया। इसलिए आत्मरक्षा में दूसरे अधिकारी ने उस पर गोली चलाई।
हालांकि, पिछली सुनवाई में जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस डॉ नीला गोखले की बेंच के समक्ष मजिस्ट्रेट द्वारा जांच रिपोर्ट पेश की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि मृतक के साथ विवाद में पांच पुलिसकर्मियों द्वारा इस्तेमाल किया गया बल 'अनुचित' था और ये पुलिसकर्मी मृतक की मौत के लिए जिम्मेदार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, बंदूक पर मृतक के अंगुलियों के निशान नहीं हैं। इसमें कहा गया कि पुलिस का यह कहना कि उन्होंने निजी बचाव में गोली चलाई, अनुचित है और संदेह के घेरे में है।
इसके अनुसार, जजों ने राज्य से कानून के अनुसार कार्य करने को कहा था।
गुरुवार को मृतक आरोपी के माता-पिता ने हाथ जोड़कर अदालत से कहा कि वे मामले को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए अब और इधर-उधर नहीं भाग सकते।
माता-पिता ने जजों से कहा,
"कृपया हमें यह मामला वापस लेने दें। हम और इधर-उधर नहीं दौड़ सकते।"
इस पर खंडपीठ ने जानना चाहा कि क्या माता-पिता पर मामला वापस लेने के लिए कोई दबाव था, जिस पर माता-पिता ने नकारात्मक जवाब दिया।
हालांकि, जजों ने यह स्पष्ट किया,
"मामला इस तरह से बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें अब बहुत कुछ हो चुका है।"
इस बीच मुख्य लोक अभियोजक हितेन वेनेगावकर और अतिरिक्त लोक अभियोजक प्राजक्ता शिंदे की सहायता से सीनियर वकील अमित देसाई ने पीठ को बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस दिलीप भोसले की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद ही यह तय किया जाएगा कि FIR दर्ज की जाए या नहीं।
पूछे जाने पर देसाई ने कहा कि राज्य केवल मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के आधार पर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि राज्य की CID द्वारा स्वतंत्र जांच की जा रही है। सीनियर वकील ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट जांच का दायरा मौत के कारण का पता लगाने और जिम्मेदारी सौंपने तक सीमित है, जिससे यह राज्य के लिए बाध्यकारी नहीं है।
देसाई ने तर्क दिया,
"मजिस्ट्रियल जांच मौत के कारण के लिए होती है। यह एक सीमित जांच है। उसे यह नहीं देखना चाहिए कि कौन जिम्मेदार है। मामले के हर पहलू को देखने के लिए आपको जांच की शक्तियों की आवश्यकता होती है। मजिस्ट्रेट के पास जांच की शक्तियां नहीं होती हैं।"
सीनियर एडवोकेट ने आगे तर्क दिया कि चूंकि मामला हिरासत में मौत का है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मिसालों के अनुसार "अविश्वसनीय सबूत" होने पर ही FIR दर्ज की जानी चाहिए।
हालांकि, जजों ने बताया कि एक बार दुर्घटनावश मृत्यु रिपोर्ट (ADR) दर्ज हो जाने के बाद राज्य को FIR दर्ज करके इसे तार्किक निष्कर्ष पर ले जाना चाहिए।
जजों ने पूछा,
"मिस्टर देसाई, जांच आयोग एक समानांतर चीज है, लेकिन जहां तक ADR का सवाल है, इसे तार्किक निष्कर्ष पर ले जाना होगा। इसके अलावा, अदालत की रिपोर्ट बिना कार्रवाई के कागज पर नहीं हो सकती। यह बयानों के साथ एक पूरी रिपोर्ट है। क्या राज्य FIR दर्ज करने के लिए बाध्य नहीं है?"
हालांकि, देसाई ने जवाब दिया कि FIR दर्ज करने के लिए एक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए और इसे ADR के आधार पर दर्ज नहीं किया जा सकता।
देसाई की दलील का विरोध करते हुए मृतक के माता-पिता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि यदि मृतक के खिलाफ केवल सूचना के आधार पर FIR दर्ज की गई तो न्यायिक अधिकारी की पूरी रिपोर्ट होने पर पुलिस के खिलाफ FIR क्यों नहीं दर्ज की जा सकती है।
अदालत ने संकेत दिया कि वह इस पहलू के संबंध में एक अंतरिम आदेश पारित करेगी।
खंडपीठ शुक्रवार को मामले की सुनवाई जारी रखेगी।