'क्या संसद द्वारा पारित कानून महाराष्ट्र पुलिस पर बाध्यकारी हैं?' बॉम्बे हाईकोर्ट ने घटिया जांच के बाद डीजीपी से पूछा

Shahadat

10 July 2025 10:41 AM IST

  • क्या संसद द्वारा पारित कानून महाराष्ट्र पुलिस पर बाध्यकारी हैं? बॉम्बे हाईकोर्ट ने घटिया जांच के बाद डीजीपी से पूछा

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस महानिदेशक को शपथ पत्र पर यह स्पष्ट करने का आदेश दिया कि क्या संसद द्वारा पारित कानून के प्रावधान राज्य पुलिस बल पर बाध्यकारी हैं या उन्हें केवल कानून की किताबों तक ही सीमित रखा जा सकता है।

    जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस राजेश पाटिल की खंडपीठ ने डीजीपी से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा।

    खंडपीठ ने 7 जुलाई को पारित आदेश में कहा,

    "इसलिए हम पुलिस महानिदेशक को शपथ पर यह स्पष्ट करने का निर्देश देते हैं कि क्या भारत की संसद द्वारा पारित कानून के प्रावधान महाराष्ट्र राज्य के पुलिसकर्मियों पर बाध्यकारी और अनिवार्य हैं या उन्हें केवल कानून की किताबों में ही रखा जाना है। साथ ही क्या महाराष्ट्र राज्य के पुलिस महानिदेशक कार्यालय द्वारा जारी परिपत्र/निर्देश सभी पुलिस बलों पर बाध्यकारी हैं।"

    यदि उक्त प्रश्नों के उत्तर सकारात्मक हैं तो खंडपीठ ने डीजीपी को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों का उल्लंघन करने और डीजीपी कार्यालय द्वारा जारी विभिन्न परिपत्रों का उल्लंघन करने के लिए संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने आदेश दिया कि उक्त उत्तर दो सप्ताह की अवधि के भीतर दाखिल किया जाए।

    खंडपीठ ने आदेश दिया,

    "हम पुलिस महानिदेशक को निर्देश देते हैं कि वे उत्तर दाखिल करते समय अपनी शक्ति किसी अधीनस्थ अधिकारी को न सौंपें। डीजीपी के हलफनामे का अवलोकन करने के बाद, यदि आवश्यक और अपेक्षित समझा जाए तो हम कानून के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने का अपना अधिकार सुरक्षित रखते हैं।"

    यह फैसला खंडपीठ द्वारा एक आर्थिक अपराध की घटिया जांच पाए जाने के बाद आया, जिसमें जांच अधिकारी ने लगभग 13 महीने पहले जून 2024 में दर्ज की गई FIR के बावजूद जांच की बुनियादी बातें भी पूरी नहीं कीं।

    खंडपीठ ने मामले के दस्तावेज़ों से पाया कि केस डायरी CrPC के तहत निर्धारित अनिवार्य मानदंडों के अनुसार नहीं रखी गई। जजों ने बताया कि हाईकोर्ट की विभिन्न खंडपीठों द्वारा बार-बार यही मुद्दा उठाया गया। खंडपीठ ने आगे बताया कि डीजीपी ने भी समय-समय पर पुलिस अधिकारियों को CrPC की धारा 172 का पालन करने और प्रत्येक मामले के लिए उचित केस डायरी बनाए रखने का निर्देश देते हुए परिपत्र जारी किए।

    खंडपीठ ने कहा कि पुलिस महानिदेशक कार्यालय ने 6 दिसंबर, 2018, 16 सितंबर, 2021 और 12 फरवरी, 2024 को परिपत्र जारी किए और महाराष्ट्र राज्य के सभी पुलिसकर्मियों को CrPC की धारा 172 के अनुसार केस डायरी बनाए रखने का बार-बार निर्देश दिया।

    खंडपीठ ने कहा,

    "हमारे अनुसार, निस्संदेह महाराष्ट्र राज्य के सभी पुलिसकर्मियों को CrPC के प्रावधानों के अनुसार कानून के आदेशों का पालन करना चाहिए। साथ ही डीजीपी कार्यालय द्वारा जारी निर्देशों का भी पालन करना चाहिए।"

    खंडपीठ ने टिप्पणी की,

    "अपने पिछले आदेश में हमने पाया कि डीजीपी कार्यालय द्वारा जारी निर्देश निचले स्तर के पुलिसकर्मियों तक नहीं पहुंच रहे हैं और वे पुलिस विभाग के सर्वोच्च प्राधिकारी द्वारा जारी निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं। यह अनुचित और अक्षम्य है। हमें ऐसा प्रतीत होता है कि एक अनुशासित पुलिस बल में पुलिसकर्मी स्वयं अनुशासन का पालन नहीं कर रहे हैं और पुलिस महानिदेशक कार्यालय द्वारा जारी अनिवार्य निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं।"

    इन टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने डीजीपी द्वारा अपना विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई 21 जुलाई तक स्थगित कर दी।

    Case Title: Sorabh Kamal Jain vs State of Maharashtra (Writ Petition 2795 of 2024)

    Next Story