प्रेग्नेंसी जारी रखने से प्रेग्नेंट महिला को गंभीर मानसिक क्षति होने का खतरा होने पर ही अबॉर्शन की अनुमति दी जा सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

13 Jun 2024 5:51 AM GMT

  • प्रेग्नेंसी जारी रखने से प्रेग्नेंट महिला को गंभीर मानसिक क्षति होने का खतरा होने पर ही अबॉर्शन की अनुमति दी जा सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि अबॉर्शन की अनुमति तब दी जा सकती है, जब प्रेग्नेंसी जारी रखने से प्रेग्नेंट महिला को गंभीर मानसिक क्षति हो सकती है।

    जस्टिस एन.आर. बोरकर और जस्टिस सोमशेखर सुदारेसन की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की अनुमति यौन उत्पीड़न से उत्पन्न प्रेग्नेंसी तक सीमित नहीं हो सकती।

    19 वर्षीय याचिकाकर्ता ने सहमति से संबंध बनाने के कारण 25 सप्ताह की अपनी प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति मांगने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट दी कि भ्रूण में कोई जन्मजात असामान्यता नहीं है, लेकिन याचिकाकर्ता की सामाजिक-सांस्कृतिक और कमजोर आर्थिक स्थितियों को देखते हुए प्रेग्नेंसी जारी रखने से गंभीर मनोवैज्ञानिक क्षति हो सकती है। इसने यह भी प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ है और अबॉर्शन की सिफारिश की।

    हाईकोर्ट ने एमटीपी अधिनियम की धारा 3(2)(बी)(आई) का अवलोकन किया, जो रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा अबॉर्शन की अनुमति देता है, यदि प्रेग्नेंसी जारी रखने से महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति हो सकती है। धारा 3(2) के स्पष्टीकरण 2 में प्रेग्नेंट महिला के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति होने की वैधानिक धारणा प्रदान की गई, यदि प्रेग्नेंसी बलात्कार के परिणामस्वरूप हुई हो। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि गंभीर मानसिक क्षति का निदान यौन उत्पीड़न के मामलों तक सीमित नहीं है।

    न्यायालय ने एमटीपी अधिनियम की धारा 3(4)(बी) पर भी विचार किया, जिसमें कहा गया कि प्रेग्नेंट महिला की सहमति के बिना कोई भी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट नहीं की जाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि याचिकाकर्ता की सहमति से अवगत कराया गया, हाईकोर्ट ने उसके साथ बैठक बुलाई। याचिकाकर्ता ने टर्मिनेशन प्रक्रिया की समझ की पुष्टि की और प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अपनी इच्छा व्यक्त की।

    इसके बाद हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता के अपने शरीर के बारे में स्वायत्त विकल्प बनाने के अधिकार को बरकरार रखा जाना चाहिए।

    इसने (एक्स की मां) बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य का संदर्भ दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसे मामलों में प्रेग्नेंट महिला का स्वास्थ्य और सहमति सर्वोपरि है। यह भी रेखांकित किया गया कि प्रेग्नेंटी टर्मिनेट करने का निर्णय बहुत ही व्यक्तिगत है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा, स्वायत्तता और प्रजनन विकल्प से जुड़ा हुआ है।

    परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को यथाशीघ्र समाप्ति प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति दे दी।

    केस टाइटल: X.Y.Z. बनाम बी.जे., सरकारी मेडिकल कॉलेज के डीन और अन्य

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