2018 Firing At Anti-Sterlite Protests | सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और सरकारी अधिकारियों की संपत्ति की जांच के मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें तमिलनाडु सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (DVAC) को 2018 में स्टरलाइट विरोधी प्रदर्शनों में थूथुकुडी पुलिस फायरिंग के आरोपी पुलिस और सरकारी अधिकारियों की संपत्ति की नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया गया था।
हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा मामले की स्वत: संज्ञान जांच बंद करने को चुनौती देने वाली याचिका पर यह निर्देश दिया।
गोलीबारी में आरोपी पुलिस अधिकारियों की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि NHRC की रिपोर्ट वास्तव में उनके पक्ष में थी। उन्होंने कहा कि जब विरोध प्रदर्शन 99 दिनों से चल रहा था, तब 100वें दिन ही पुलिस ने CrPc की धारा 144 लागू होने पर गोलीबारी की। उन्होंने कहा कि NHRC की रिपोर्ट में ही उल्लेख किया गया कि पुलिस अधिकारियों पर प्रदर्शनकारियों ने हमला किया जो संख्या में अधिक थे और उन्होंने अधिकारियों पर काबू पा लिया।
गौरतलब है कि 2018 में तूतीकोरिन के आंदोलनकारियों ने वेंदांता समूह द्वारा स्टरलाइट कंपनी के कॉपर स्मेल्टर प्लांट के प्रस्तावित विस्तार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।
आंदोलनकारियों ने स्मेल्टर से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसने क्षेत्रीय जल निकायों को दूषित कर दिया था और निवासियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बना। 22 मई, 2018 को कथित पुलिस गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ थे उन्होंने मामले पर विचार करने पर सहमति जताई और निर्देश दिया कि अगली सुनवाई की तारीख तक विवादित आदेश पर रोक रहेगी।
हाईकोर्ट के समक्ष पीपुल्स वॉच के कार्यकारी निदेशक हेनरी टिफाग्ने ने याचिका दायर की थी, जिसमें निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या के मामले को फिर से खोलने के लिए NHRC को निर्देश देने की मांग की गई थी। टिफाग्ने ने मामले में NHRC द्वारा स्वत: संज्ञान जांच बंद करने को चुनौती दी थी।
15 जुलाई को हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (DVAC) को गोलीबारी के सिलसिले में आरोपी बनाए गए सभी पुलिस और सरकारी अधिकारियों की संपत्ति की जांच करने का निर्देश दिया।
29 जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट ने स्टरलाइट विरोधी प्रदर्शनों के दौरान 2018 में थूथुकुडी पुलिस गोलीबारी में मूल दोषियों को सामने लाने में सीबीआई की विफलता पर असंतोष व्यक्त किया। DVAC के निदेशक को नई जांच पूरी करने और अपनी रिपोर्ट पीठ को सौंपने के लिए तीन महीने का समय दिया गया।
सीबीआई की रिपोर्ट मदुरै के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) को सौंपी गई। दिसंबर 2023 में सीजेएम ने सीबीआई की चार्जशीट खारिज की और नई जांच का आदेश दिया। इसने उल्लेख किया कि अर्जुनन द्वारा दायर मूल शिकायत में उल्लिखित कई नामों के विपरीत CBI ने केवल निरीक्षक आर थिरुमलाई के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट दायर की थी।
मद्रास हाईकोर्ट द्वारा अवलोकन जस्टिस एसएस सुंदर और जस्टिस एन सेंथिलकुमार की खंडपीठ ने कहा कि सीबीआई बुरी तरह विफल रही है। यह तथ्य कि एजेंसी ने अपने आरोप पत्र में केवल निरीक्षक का नाम लिया है, केवल इस निष्कर्ष पर ले जाएगा कि एजेंसी स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर रही थी।
खंडपीठ ने कहा कि गोलीबारी एक एजेंडे के तहत की गई थी। पुलिस अधिकारी उद्योगपतियों के लिए काम कर रहे थे। सुनवाई के दौरान अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उसका इरादा भविष्य में ऐसी घटना को रोकना था।
अदालत ने कहा कि वह इस तथ्य को पचने में असमर्थ है कि पुलिस ने एक व्यक्ति के लिए निहत्थे प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाया और उनका पीछा किया, जो ऐसी व्यवस्था चला रहा है, जो लोगों और समाज के लिए खराब है। अदालत ने कहा कि अधिकारियों ने गोलीबारी में 13 लोगों की मौत को बहुत ही लापरवाही से लिया, जो दर्दनाक था।
हाईकोर्ट ने कहा कि एजेंसी द्वारा की गई जांच में गंभीर खामियां थीं, क्योंकि इसने महत्वपूर्ण घटनाओं पर विचार नहीं किया। यहां तक कि जस्टिस अरुणा जगदीशन समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों पर भी विचार करने में विफल रही थी। न्यायालय ने कहा कि जांच एजेंसी की रिपोर्ट अविश्वसनीय और अवास्तविक थी।
जस्टिस जगदीशन समिति की रिपोर्ट को तमिलनाडु सरकार ने 2018 में विधानसभा में पेश किया। रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि गोलीबारी में 13 लोग मारे गए और कुप्रबंधन के लिए तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों पर जिम्मेदारी बताई गई। इसके बाद संबंधित अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गई।
केस टाइटल- एस. चंद्रन बनाम हेनरी टिफगने एसएलपी (सी) संख्या 016543 - / 202