मस्जिद के अंदर जय श्रीराम का नारा लगाना कैसे अपराध है? : सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता से पूछा, कर्नाटक पुलिस का पक्ष मांगा

Update: 2024-12-16 10:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (16 दिसंबर) को कर्नाटक राज्य से कर्नाटक हाईकोर्ट के उस विचार को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना पक्ष रखने को कहा, जिसमें कहा गया था कि मस्जिद के अंदर 'जय श्रीराम' का नारा लगाना अपराध नहीं माना जाएगा।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ शिकायतकर्ता द्वारा कर्नाटक हाईकोर्ट के 13 सितंबर के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके तहत हाईकोर्ट ने बदरिया जुमा मस्जिद में घुसने और जय श्रीराम का नारा लगाने के आरोपी दो व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की थी। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि यह समझ से परे है कि अगर कोई जय श्रीराम का नारा लगाता है तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना कैसे आहत होगी।

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने दलील दी कि FIR दर्ज करने के बीस दिनों के भीतर कार्यवाही रोक दी गई, जबकि जांच अभी शुरुआती चरण में थी।

जस्टिस मेहता ने पूछा कि ठीक है, वे एक खास धार्मिक नारा लगा रहे थे। यह कैसे अपराध है?

कामत ने तर्क दिया कि किसी अन्य धार्मिक स्थल पर धार्मिक नारा लगाना भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए के तहत सांप्रदायिक विद्वेष भड़काने का अपराध होगा।

खंडपीठ ने पूछा कि क्या आरोपियों की पहचान कर ली गई। कामत ने जवाब दिया कि सीसीटी विजुअल एकत्र किए गए और पुलिस ने आरोपियों की पहचान की, जैसा कि रिमांड रिपोर्ट में दर्ज है। पीठ ने पूछा कि क्या मस्जिद के पास आरोपियों को देखने मात्र से यह माना जाएगा कि उन्होंने नारे लगाए।

अदालत ने पूछा,

"क्या आप वास्तविक आरोपियों की पहचान कर पाए हैं? आप कौन सी सामग्री लेकर आए हैं?"

कामत ने स्पष्ट किया कि वह केवल शिकायतकर्ता (मस्जिद के कार्यवाहक) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और जांच करना और सबूत एकत्र करना पुलिस का काम है। उन्होंने कहा कि FIR में केवल अपराध के बारे में जानकारी होनी चाहिए और सभी साक्ष्यों को शामिल करने वाला 'विश्वकोश' नहीं होना चाहिए।

खंडपीठ ने यह कहते हुए कि वह औपचारिक नोटिस जारी नहीं कर रही है, याचिकाकर्ता से कर्नाटक राज्य को याचिका की एक प्रति देने को कहा। मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में होगी।

याचिकाकर्ता के कथन

एसएलपी में बताए गए तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता और नौशाद सकाफी नामक व्यक्ति ऐठूर गांव के मर्दाला में बदरिया जुम्मा मस्जिद के कार्यालय क्षेत्र में बैठे थे। रात करीब 10:50 बजे कुछ अज्ञात व्यक्ति मस्जिद के परिसर में घुस आए और धार्मिक नारे जय श्रीराम लगाने लगे।

इसके बाद अज्ञात व्यक्ति ने धमकी दी कि "वे बेयरियों (मुसलमानों) को शांति से रहने नहीं देंगे"।

जब शिकायतकर्ता और नौशाद सकाफी अपने कार्यालय से बाहर आए तो दोनों अजनबी मस्जिद परिसर से बाहर निकल गए और दोपहिया वाहन पर सवार होकर भाग गए। सीसीटीवी फुटेज की जांच करने पर शिकायतकर्ता ने मस्जिद के सामने एक डस्टर कार को संदिग्ध रूप से घूमते हुए देखा और मस्जिद परिसर में घुसे दो व्यक्तियों को भी देखा।

कडाबा पुलिस स्टेशन में लगभग 1:00 बजे उक्त अज्ञात आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई और भारतीय दंड संहिता की धारा 447, 295 (ए), 505, 506 के साथ धारा 34 के तहत FIR दर्ज की गई।

उनकी शिकायत है कि कडाबा पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम बहुत सद्भाव से रह रहे हैं। जय श्रीराम का नारा लगाने वाले ये लोग समुदायों के बीच दरार पैदा कर रहे हैं।

FIR दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच की और 2 आरोपियों की पहचान की। उन्हें 25 सितंबर, 2023 को शाम करीब 6:30 बजे गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद आरोपियों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। हालांकि, इस बीच आरोपियों ने जमानत के लिए अर्जी दी जो उन्हें 29 सितंबर, 2023 को मंजूर कर ली गई।

इसके बाद आरोपियों ने आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए रिट याचिका दायर की। 29 नवंबर, 2023 को हाईकोर्ट ने सिविल जज और जेएमएफसी, पुत्तूर, दक्षिण कन्नड़ के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगा दी। नतीजतन, पूरी आपराधिक कार्यवाही इस आधार पर रद्द कर दी गई कि शिकायत/FIR में लगाए गए आरोपों में कथित अपराधों के तत्वों का खुलासा नहीं किया गया था।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट के जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने कहा,

"धारा 295ए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से संबंधित है, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है। यह समझ से परे है कि अगर कोई 'जय श्रीराम' का नारा लगाता है तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना कैसे आहत होगी। जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के साथ रह रहे हैं, तो इस घटना का किसी भी तरह से कोई मतलब नहीं निकाला जा सकता।"

यह फैसला महेंद्र सिंह धोनी बनाम येरागुंटला श्यामसुंदर (2017) के फैसले पर आधारित है, जिसमें कहा गया कि नागरिकों के किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने का हर कृत्य या प्रयास भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए के तहत दंडनीय नहीं होगा।

जज ने धोनी मामले में फैसले के पैरा 6 का हवाला दिया जिसमें कहा गया,

"उपर्युक्त अनुच्छेदों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि धारा 295ए में दंडनीय हर चीज का प्रावधान नहीं है। कोई भी कार्य नागरिकों के वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने या अपमान करने का प्रयास करने के बराबर होगा। यह केवल उन कृत्यों या नागरिकों के वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करने के प्रयासों को दंडित करता है जो नागरिकों के उस वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से किए गए हों। अनजाने में या लापरवाही से या उस वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे के बिना किए गए धर्म के अपमान इस धारा के अंतर्गत नहीं आते हैं।"

अन्य धाराओं के लिए न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि कथित घटना ने सार्वजनिक उपद्रव या धारा 505 आईपीसी के तहत किसी दरार को जन्म दिया है।

इसके अलावा, न्यायालय ने कहा,

"शिकायत में भारतीय दंड संहिता की धारा 503 या धारा 447 के तत्वों का दूर-दूर तक कोई उल्लेख नहीं है। कथित अपराधों में से किसी भी तत्व का पता न लगने के कारण, इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और न्याय की विफलता होगी।"

एस.एल.पी. को चुनौती देने के आधार

एस.एल.पी. ने सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों के विरुद्ध निर्णय को चुनौती दी, जिसमें उसने जांच पूरी होने से पहले आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की आलोचना की है, जबकि प्रथम दृष्टया FIR में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है।

यह प्रस्तुत किया गया कि हाईकोर्ट का यह अवलोकन कि 'जय श्रीराम' का नारा लगाने से किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होंगी और इस घटना से किसी भी तरह की धार्मिक भावना आहत नहीं होगी, अपने आप में यह दर्शाता है कि घटना के घटित होने से इनकार नहीं किया जा सकता है, कम से कम इस स्तर पर तो नहीं।

एसएलपी ने कहा कि मस्जिद परिसर में ऐसी घटना हुई। साथ ही मुसलमानों की जान को खतरा है, यह दर्शाता है कि जांच में बाधा नहीं डाली जानी चाहिए, जैसा कि वर्तमान मामले में हाईकोर्ट ने किया क्योंकि आरोपों का सार संज्ञेय अपराधों को दर्शाता है, जिनकी जांच की आवश्यकता है जो सभी वैध अभियोजन हैं।"

केस टाइटल: हैदराली सीएम बनाम कीर्तन कुमार और अन्य, विशेष अनुमति याचिका

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