POCSO मामलों में देरी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: केंद्र और राज्यों को विशेष कोर्ट बनाने का निर्देश, समयसीमा का पालन अनिवार्य

Update: 2025-05-16 10:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में बच्चों से यौन अपराधों के बढ़ते मामलों पर स्वतः संज्ञान लेकर शुरू की गई कार्यवाही को बंद करते हुए केंद्र और सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे POCSO कानून के तहत मामलों की सुनवाई के लिए शीर्ष प्राथमिकता पर विशेष कोर्ट (स्पेशल POCSO कोर्ट) बनाएं।

जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने यह निर्देश जारी करते हुए कहा कि सभी जांच अधिकारियों को POCSO मामलों की गंभीरता के प्रति संवेदनशील बनाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि जांच से लेकर ट्रायल तक सभी चरण कानून में तय समयसीमा के भीतर पूरे हों।

कोर्ट ने कहा,

"POCSO कानून में जांच से लेकर ट्रायल तक सभी प्रक्रियाओं के लिए समयसीमा तय है, लेकिन विशेष कोर्ट की कमी के कारण इसका पालन नहीं हो पा रहा। अब केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि चार्जशीट तय समय में दाखिल हो और ट्रायल भी समयबद्ध तरीके से पूरे किए जाएं।"

कोर्ट को दी गई रिपोर्ट में बताया गया कि केंद्र सरकार की फंडिंग से अधिकांश राज्यों ने विशेष कोर्ट बनाए हैं लेकिन तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्य अब भी पीछे हैं। उन्हें और कोर्ट बनाने की ज़रूरत है, क्योंकि इन राज्यों में POCSO मामलों की लंबित संख्या बहुत अधिक है।

मामला

जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि हर जिले में अगर 100 से अधिक POCSO मामले लंबित हैं तो वहां केंद्र सरकार की मदद से एक विशेष कोर्ट की स्थापना की जाए।

साथ ही विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति और जांच अधिकारियों की ट्रेनिंग का भी आदेश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने भविष्य में POCSO पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक राष्ट्रीय योजना बनाने की इच्छा भी जताई थी।

टाइटल: IN RE ALARMING RISE IN THE NUMBER OF REPORTED CHILD RAPE INCIDENTS | SMW(Crl) No. 1/2019

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