सजा दिलाने की चाह में अभियोजक अदालत की सहायता का कर्तव्य नहीं छोड़ सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-12-02 10:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (1 दिसंबर) को एक हत्या मामले में तीन आरोपियों की सजा को पलटते हुए सार्वजनिक अभियोजकों की भूमिका पर गंभीर टिप्पणी की।

न्यायालय ने कहा कि अभियोजकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्वतंत्र रूप से कार्य करें और केवल किसी भी कीमत पर दोषसिद्धि करवाने के उद्देश्य से अदालत के “स्टेट के वकील” की तरह व्यवहार न करें।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने उस अपील की सुनवाई की जिसमें यह सामने आया कि आरोपियों को धारा 313 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दिए गए बयान के दौरान उनके विरुद्ध सभी अहम आरोपों से ठीक प्रकार से अवगत ही नहीं कराया गया।

अदालत ने माना कि यह चूक एक गंभीर प्रक्रियात्मक खामी है, जिसने मुकदमे की निष्पक्षता को प्रभावित किया।

पीठ ने दोषसिद्धि को रद्द करते हुए मामला पुनः ट्रायल कोर्ट को भेज दिया और निर्देश दिया कि कार्यवाही अब धारा 313 के अंतर्गत आरोपियों के बयान दर्ज करने के चरण से दोबारा की जाए।

साथ ही अदालत ने अभियोजन पक्ष की लापरवाही पर भी कड़ी टिप्पणी की, यह कहते हुए कि उसने ऐसी प्रक्रियात्मक कमियों को ट्रायल कोर्ट के संज्ञान में लाने में विफलता दिखाई।

अदालत ने ध्यान दिलाया कि आरोपियों के बयान अत्यंत सामान्य, यांत्रिक और लगभग एक-समान थे, जिससे स्पष्ट होता है कि उन्हें उनके विरुद्ध मौजूद पूरे आरोपों से रू-बरू नहीं कराया गया।

न्यायालय ने कहा कि मुकदमे के दौरान ऐसी प्रक्रियात्मक त्रुटियों पर नजर रखना और उनका सुधार कराना अभियोजन का भी कर्तव्य है।

पीठ ने कहा,

“यह हमारे लिए भी उतना ही परेशान करने वाला है कि आरोपियों की दोषसिद्धि सुनिश्चित करने की चाह में अभियोजक ने अदालत को धारा 313 के अंतर्गत आरोपियों की परीक्षा कराने में सहायता करने के अपने कर्तव्य को दरकिनार कर दिया। अभियोजक न्यायालय का अधिकारी होता है और न्याय के हित में कार्य करना उसका पवित्र दायित्व है। वह राज्य की ओर से कार्य करते हुए किसी रक्षा-वकील की तरह आचरण नहीं कर सकता, जिसका एकमात्र उद्देश्य आरोपियों पर दंड का प्रहार करवाना हो।”

अदालत ने इस संदर्भ में सोवरन सिंह प्रजापति बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले का हवाला दिया।

साथ ही अशोक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2024 LiveLaw (SC) 941 के फैसले को उद्धृत करते हुए पीठ ने सार्वजनिक अभियोजक की भूमिका को पुनः स्पष्ट किया।

अदालत ने कहा,

“यदि अदालत रिकॉर्ड पर आए किसी महत्वपूर्ण तथ्य या परिस्थिति को आरोपी के समक्ष रखना भूल जाए तो सार्वजनिक अभियोजक का दायित्व है कि वह बयान दर्ज करते समय इस कमी को अदालत के ध्यान में लाए। उसे आरोपी से पूछे जाने वाले प्रश्नों को तैयार करने में अदालत की सहायता करनी चाहिए। यह उसका कर्तव्य है कि दोषी को सजा मिले, लेकिन उतना ही उसका दायित्व यह सुनिश्चित करना भी है कि मुकदमे की प्रक्रिया में ऐसी कोई खामी न हो, जिससे आरोपी को पूर्वाग्रह का सामना करना पड़े।”

इस आदेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि अभियोजन का उद्देश्य केवल दोषसिद्धि हासिल करना नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण और निष्पक्ष मुकदमे को सुनिश्चित करना भी है।

Tags:    

Similar News