चयनित उम्मीदवारों के पद ग्रहण करने पर प्रतीक्षा सूची के उम्मीदवारों का अधिकार समाप्त: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-10-16 06:20 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (15 अक्टूबर) को यह टिप्पणी करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया कि उम्मीदवारों की प्रतीक्षा सूची अनिश्चित काल तक संचालित नहीं हो सकती और एक बार जब भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से सभी पद भर जाते हैं तो यह समाप्त हो जाती है।

जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदूरकर की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए पाया कि उम्मीदवार का प्रतीक्षा सूची में उम्मीदवार के रूप में दावा तब समाप्त हो गया, जब सभी चयनित उम्मीदवारों ने अपने संबंधित पदों पर कार्यभार ग्रहण कर लिया।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि प्रतीक्षा सूची को भर्ती का स्थायी स्रोत नहीं माना जा सकता। साथ ही एक बार समाप्त होने पर इसे बाद के वर्षों में रिक्तियों को भरने के लिए पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 1997 में ऑल इंडिया रेडियो द्वारा अनुसूचित जाति (SC) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित तीन तकनीशियन पदों की भर्ती से संबंधित था। प्रतिवादी आरक्षित पैनल (प्रतीक्षा सूची) में पहले स्थान पर था लेकिन सभी चयनित उम्मीदवारों ने अपने पद ग्रहण कर लिए जिससे पैनल निष्क्रिय हो गया।

1999 में ट्रिब्यूनल की कार्यवाही के दौरान सरकारी वकील ने आश्वासन दिया कि जैसे ही कोई रिक्ति उत्पन्न होगी, प्रतिवादी को समायोजित कर लिया जाएगा। यह आश्वासन अगले लगभग 25 वर्षों तक उसके मुकदमेबाजी का आधार बना रहा।

केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट ने शुरू में यह नोट किया कि प्रतीक्षा सूची के उम्मीदवारों को नियुक्ति का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। प्रतिवादी का दावा बाद की भर्तियों के दौरान फिर से सामने आया।

2024 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने वैध अपेक्षा के सिद्धांत का हवाला देते हुए और टूटे हुए आश्वासन के आधार पर निर्देश दिया कि उसे 2013 से वर्चुअल रूप से समायोजित किया जाए।

जस्टिस चंदूरकर द्वारा लिखे गए फैसले ने हाईकोर्ट के निर्णय को त्रुटिपूर्ण बताया। कोर्ट ने नोट किया कि यद्यपि कोर्ट के समक्ष संघ सरकार द्वारा दी गई रियायत का अपना महत्व होता है लेकिन यदि वह रियायत किसी वैधानिक नियम या विनियमन का उल्लंघन करती है तो उसे प्रभावी नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा,

"यह देखना होगा कि क्या रियायत के रूप में दिए गए ऐसे बयान को प्रभावी करने से किसी वैधानिक नियम या विनियमन का उल्लंघन होगा। यदि ऐसे परिणाम की संभावना है तो प्रभावित पक्ष के लिए यह खुला होगा कि वह कानून की सही स्थिति कोर्ट के सामने रखे और आग्रह करे कि उसे कानून पर दी गई त्रुटिपूर्ण रियायत को लागू करने के लिए मजबूर न किया जाए।"

कोर्ट ने आगे कहा कि प्रतीक्षा सूची का उम्मीदवार बाद में सेवा में समायोजित होने का स्थायी अधिकार नहीं मांग सकता है, क्योंकि यह नई भर्ती प्रक्रिया में आने वाले उम्मीदवारों के अधिकारों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।

कोर्ट ने कहा,

"इसका मतलब यह होगा कि पिछली भर्ती प्रक्रिया के आधार पर बाद की भर्ती में एक पद को भरा जाए। इससे निश्चित रूप से बाद की प्रक्रिया में भर्ती चाहने वाले उम्मीदवारों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि रिक्तियों की संख्या कम हो जाएगी। इसके अलावा, इससे प्रतीक्षा सूची का जीवनकाल भी बढ़ जाएगा, भले ही सभी रिक्तियाँ भर चुकी हों, जो अस्वीकार्य होगा।"

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला,

"1997 में उपलब्ध रिक्तियों को भर दिए जाने के परिणामस्वरूप प्रतीक्षा सूची समाप्त हो गई थी और भर्ती की उक्त प्रक्रिया समाप्त हो गई। इसलिए हाईकोर्ट ने प्रतिवादी के समायोजन का निर्देश देकर त्रुटि की।"

तदनुसार अपील स्वीकार कर ली गई।

Tags:    

Similar News