परिवारों की सहमति से हुई शादी, राज्य को आपत्ति का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह मामले में युवक को दी जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक युवक को जमानत दी, जिसे उत्तराखंड पुलिस ने अंतरधार्मिक विवाह के बाद राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार किया था। युवक छह महीने से अधिक समय से हिरासत में था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस एस.सी. शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि जब विवाह आपसी सहमति से और दोनों परिवारों की मंजूरी से हुआ है तो राज्य द्वारा जमानत का विरोध करना उचित नहीं है।
याचिकाकर्ता अमन सिद्दीकी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। उनके अंतरधार्मिक विवाह के तुरंत बाद कुछ व्यक्तियों और संगठनों द्वारा आरोप लगाए गए कि अमन ने गैरकानूनी रूप से धर्म परिवर्तन करवाया है।
इसके बाद उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 की धारा 3 और 5 तथा भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 318(4) और 319 के तहत FIR दर्ज की गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
धारा 3 के तहत गलत तरीके से धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध है, जबकि धारा 5 में इसकी सजा एक से पांच साल तक है। धारा 318(4) और 319 के तहत धोखाधड़ी और पहचान छुपाकर धोखा देने पर क्रमशः सात और पांच साल तक की सजा का प्रावधान है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा नियमित जमानत अर्जी खारिज किए जाने के बाद अमन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"जब याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी अपने-अपने परिवारों की सहमति से विवाह कर शांतिपूर्वक साथ रह रहे हैं तो विवाह के बाद बाहरी दबावों के आधार पर राज्य को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।"
अदालत ने अपील स्वीकार करते हुए अमन सिद्दीकी को जमानत दे दी।
टाइटल: अमन सिद्दीकी उर्फ अमन चौधरी उर्फ राजा बनाम उत्तराखंड राज्य