मुकदमा दायर होने से पहले बेची गई संपत्ति पर कुर्की नहीं लगाई जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी संपत्ति का रजिस्टर्ड सेल डीड के माध्यम से मुकदमा दायर होने से पहले ही हस्तांतरण हो चुका है तो उस संपत्ति को सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 38 नियम 5 के तहत निर्णय से पहले कुर्क नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि इस प्रावधान के तहत कुर्की केवल उसी संपत्ति पर लगाई जा सकती है, जो मुकदमा दायर होने की तारीख पर प्रतिवादी की स्वामित्व वाली हो।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना एवं जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को पलटते हुए यह व्यवस्था दी, जिनमें पहले से बिक चुकी संपत्ति पर भी कुर्की को वैध माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश 38 नियम 5 एक असाधारण और सुरक्षात्मक उपाय है लेकिन इसका दायरा उस संपत्ति तक सीमित है, जो मुकदमे की तारीख पर प्रतिवादी की हो। जो संपत्ति पहले ही असली खरीदार को हस्तांतरित हो चुकी हो उस पर इस प्रावधान के तहत कुर्की नहीं हो सकती।
मामले के अनुसार अपीलकर्ता और ऋणी के बीच वर्ष 2002 में संपत्ति बिक्री का समझौता हुआ था और जून 2004 में रजिस्टर्ड सेल डीड निष्पादित कर संपत्ति का कानूनी हस्तांतरण कर दिया गया था। इसके बाद खरीदार ने संपत्ति पर कब्जा लेकर गेस्टहाउस चलाना शुरू किया। कई महीनों बाद दिसंबर, 2004 में लेनदार ने ऋणी के खिलाफ धन वसूली का मुकदमा दायर किया और फरवरी, 2005 में उसी संपत्ति पर निर्णय से पहले कुर्की का आदेश प्राप्त कर लिया।
इस कुर्की को चुनौती देते हुए खरीदार ने अदालत में दावा याचिका दायर की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने यह कहकर खारिज किया कि बिक्री धोखाधड़ीपूर्ण थी और यह लेनदारों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से की गई। हाईकोर्ट ने भी इस रुख को बड़े पैमाने पर कायम रखा। हालांकि विचारार्थ सीमित प्रश्न पर मामला वापस भेज दिया। इससे असंतुष्ट होकर खरीदार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब रजिस्टर्ड सेल डीड 28 जून 2004 को निष्पादित हो चुका था और मुकदमा बाद में दायर हुआ तो मुकदमे की तारीख पर वह संपत्ति प्रतिवादी की नहीं रह गई। ऐसी स्थिति में आदेश 38 नियम 5 के लिए आवश्यक शर्त पूरी नहीं होती। अदालत ने कहा कि यदि किसी पक्ष को यह आरोप लगाना है कि बिक्री लेनदारों को धोखा देने के उद्देश्य से की गई तो उसका उचित उपाय संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 53 के तहत है न कि कुर्की का आदेश दिलवाना।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व निर्णय हमदा अम्मल बनाम अवाडियप्पा पाथर का हवाला देते हुए दोहराया कि मुकदमा दायर होने से पहले निष्पादित सेल डीड की स्थिति में आदेश 38 नियम 5 लागू ही नहीं होता।
अंततः कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कहा कि खरीदार द्वारा दायर दावा याचिका पूरी तरह से सुनवाई योग्य है और कुर्की का आदेश टिकाऊ नहीं है।