सुप्रीम कोर्ट ने BJP सांसद राहुल लोधी की चुनाव याचिका खारिज करने से हाईकोर्ट के इनकार के खिलाफ Congress MLA की याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस विधायक (Congress MLA) चंदा सिंह गौर की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा BJP सांसद राहुल सिंह लोधी द्वारा दायर चुनाव याचिका को खारिज करने के लिए सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत उनकी याचिका को खारिज करने को चुनौती दी गई।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सीनियर एडवोकेट एएनएस नादकर्णी (लोधी की ओर से) की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। साथ ही निर्देश दिया कि इस बीच चुनाव याचिका पर कार्यवाही स्थगित कर दी जाए। सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत (गौर की ओर से) ने कहा कि भले ही चुनाव याचिका में दिए गए कथनों को सही माना जाए, लेकिन "भ्रष्ट आचरण" का कोई मामला नहीं बनता है।
उन्होंने आग्रह किया,
"सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत अदालत को यह जांचना होगा कि क्या केवल पढ़ने पर ही विषयवस्तु स्पष्ट होती है या नहीं।"
उनकी बात सुनने के बाद जस्टिस कांत ने नादकर्णी को बताया कि लोधी केवल इसलिए अपमानित महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें एक महिला (गौर) ने भारी बहुमत से हराया है। जज ने सुझाव दिया कि लोधी को अपनी हार से समझौता कर लेना चाहिए, क्योंकि 9000 वोटों का बड़ा अंतर था। इस पर सीनियर वकील ने जवाब देते हुए कहा कि चुनाव याचिका एक अलग मुद्दे पर है यानी गौर द्वारा उचित हलफनामा दाखिल न करने से संबंधित है। अंतत: पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया।
मामले की पृष्ठभूमि
मध्य प्रदेश में 3 दिसंबर, 2023 को 2023 के विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद राहुल सिंह लोधी ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष चुनाव याचिका दायर की, जिसमें निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक 47, खड़गपुर, जिला टीकमगढ़ से चंदा सिंह गौर के चुनाव को इस आधार पर चुनौती दी गई कि उन्होंने गलत जानकारी/हलफनामा दिया। जवाब में चंदा सिंह गौर ने चुनाव याचिका खारिज करने की मांग करते हुए आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया।
खारिज करने के समर्थन में यह दलील दी गई कि यद्यपि राहुल सिंह लोधी ने चुनाव याचिका के साथ भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाते हुए हलफनामा दाखिल किया , लेकिन वह निर्धारित प्रारूप में नहीं था (संदर्भ: चुनाव संचालन नियम, 1961 के फॉर्म नंबर 25 और नियम 94ए)।
राहुल सिंह लोधी ने खारिज करने की याचिका का इस आधार पर विरोध किया कि भले ही हलफनामा निर्धारित प्रारूप में न हो, लेकिन यह एक सुधार योग्य दोष है। इस आधार पर चुनाव याचिका खारिज करने योग्य नहीं है। चुनाव याचिका के साथ दाखिल हलफनामे पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि यह फॉर्म 25 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 83 के अनुसार था और 1961 के नियम 94ए के गैर-पूर्ति का कोई मामला नहीं था।
हलफनामे के निम्नलिखित अंश पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इसमें 'भ्रष्ट आचरण' के आरोप को निर्दिष्ट किया गया:
"अधिनियम, 1951 की धारा 123(1)(ए)(ए), (3), (3ए) और (4) में परिभाषित भ्रष्ट आचरण के बारे में संलग्न चुनाव याचिका के पैराग्राफ 8 से 27 में दिए गए कथन और उक्त याचिका के पैराग्राफ 8 से 27 और उसके अनुलग्नक पी/2 से पी/6 में दिए गए ऐसे भ्रष्ट आचरण के विवरण मेरी जानकारी के अनुसार सत्य हैं।"
इस पृष्ठभूमि में O7R11 याचिका खारिज कर दी गई। चंदा सिंह गौर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जब दिसंबर, 2024 में मामले को उठाया गया तो न्यायालय ने कहा कि केवल यह देखना आवश्यक है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 83(1) के तहत हलफनामे के लिए निर्धारित प्रारूप क्या है। इस मामले में किस तरह का हलफनामा दायर किया गया।
जस्टिस कांत ने पीठ की "अस्थायी समझ" का सारांश दिया इस प्रकार:
"ऐसे मामले में जहां भ्रष्ट आचरण का कोई आरोप नहीं है, दोषपूर्ण हलफनामा दाखिल करना एक सुधार योग्य दोष है। लेकिन ऐसे मामले में जहां भ्रष्ट आचरण का आरोप है, संभवतः, निर्धारित प्रपत्र में हलफनामा दाखिल करना अभी भी एक अनिवार्य शर्त है।"
केस टाइटल: चंदा सिंह गौर बनाम राहुल सिंह लोधी, एसएलपी (सी) नंबर 29490/2024