निवारक निरोध जमानत रद्द करने का विकल्प नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-06-12 06:36 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केरल समाजविरोधी गतिविधि (निवारण) अधिनियम 2007 (KAAPA) के तहत की गई एक निवारक निरोध की कार्रवाई को रद्द कर दिया।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने कहा कि निवारक निरोध जैसी असाधारण शक्ति का प्रयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक और संविधानिक सुरक्षा उपायों के तहत ही किया जाना चाहिए।

अदालत ने यह दोहराया कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को हल्के में नहीं छीना जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि:

राजेश नामक व्यक्ति 'ऋतिका फाइनेंस' के नाम से पंजीकृत मनीलेंडर (ऋणदाता) है। उसको पलक्कड़ के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 20 जून 2024 को KAAPA की धारा 3 के तहत निरुद्ध किया गया।

उसके खिलाफ कई आपराधिक मामलों का हवाला दिया गया, जिनमें केरल मनी लेंडर्स एक्ट, अत्यधिक ब्याज वसूली पर रोक अधिनियम, भारतीय दंड संहिता (IPC) और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत आरोप शामिल थे।

राजेश की पत्नी धन्या एम ने केरल हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हैबियस कॉर्पस) दायर कर निरोध आदेश को चुनौती दी थी। 4 सितंबर 2024 को हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं।

अदालत की टिप्पणियां:

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निवारक निरोध आपराधिक न्याय प्रणाली का विकल्प नहीं बन सकता और यह केवल असाधारण परिस्थितियों में ही लागू किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य को आरोपी की जमानत पर आपत्ति थी तो वह सक्षम अदालत में जमानत रद्द कराने के लिए जा सकता था, लेकिन केवल उसी आधार पर निरोध आदेश देना उचित नहीं था।

अदालत ने SK नज़नीन बनाम तेलंगाना राज्य 'नेनावत बुज्जी बनाम तेलंगाना राज्य जैसे मामलों का हवाला देते हुए कानून और व्यवस्था तथा 'सार्वजनिक व्यवस्था' में अंतर को रेखांकित किया।

अदालत ने कहा कि यह मामला सार्वजनिक व्यवस्था की श्रेणी में नहीं आता क्योंकि इसमें केवल कुछ व्यक्तियों तक प्रभाव सीमित था समाज के व्यापक वर्ग पर नहीं।

अदालत ने कहा,

"इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम मानते हैं कि यह 'सार्वजनिक व्यवस्था' से जुड़ा मामला नहीं है। निरोध आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि प्रतिवादी की गतिविधियाँ किस प्रकार राज्य की सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ थीं।"

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी आरोपी की जमानत का अस्तित्व निवारक निरोध का आधार नहीं बन सकता।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट ने 20 जून 2024 का निरोध आदेश और केरल हाईकोर्ट का 4 सितंबर 2024 का फैसला रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि राज्य को यदि आपत्ति थी तो वह जमानत रद्द करने की प्रक्रिया अपनाता लेकिन निवारक निरोध कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।

टाइटल: धन्या एम बनाम केरल राज्य

Tags:    

Similar News