समय पर नगर निकाय चुनाव न कराना लोकतंत्र के खिलाफ: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग को लगाई फटकार

Update: 2025-09-22 08:44 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने शहरी निकायों में समय पर चुनाव न कराने पर राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि यह देरी संविधान में निहित लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करती है।

जस्टिस अनुप कुमार धाण्ड की एकल पीठ ने उन याचिकाओं को खारिज करते हुए टिप्पणी की, जो पूर्व सरपंचों द्वारा दायर की गई थीं। इन सरपंचों को उनकी पंचायतों के नगरपालिकाओं में विलय के बाद चेयरपर्सन नियुक्त किया गया था। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग और सरकार ने पांच वर्ष की निर्धारित अवधि समाप्त होने से पहले चुनाव कराने का अपना संवैधानिक कर्तव्य पूरा नहीं किया।

बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 243U और राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 7 का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक नगर पालिका का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। यह अवधि समाप्त होने से पहले या फिर विघटन की स्थिति में छह माह के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य है।

अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा,

“एसडीओ इन नगरपालिकाओं के प्रशासक के रूप में काम कर रहे हैं, जो संवैधानिक प्रावधानों का सीधा उल्लंघन है। संविधान और 2009 के अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो निर्वाचित प्रतिनिधियों के अभाव में नगर पालिकाओं को प्रशासकों से चलाने की अनुमति देता हो। लोकतंत्र को नौकरशाही प्रशासन से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।”

मामले में याचिकाकर्ता 2020 में सरपंच चुने गए। 2021 में उनकी ग्राम पंचायतों का नगर पालिकाओं में विलय हो गया और उन्हें चेयरपर्सन नियुक्त किया गया। जनवरी, 2025 में कार्यकाल समाप्त होने पर सरकार ने 22 जनवरी को अधिसूचना जारी कर एसडीओ को प्रशासक नियुक्त कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने इसे भेदभाव बताते हुए चुनौती दी, क्योंकि 16 जनवरी की एक अन्य अधिसूचना के तहत सरपंचों को पंचायतों के प्रशासक बने रहने दिया गया।

सरकार ने दलील दी कि नगर पालिका अधिनियम 2009 के तहत केवल अधिकारी को प्रशासक बनाया जा सकता है, जबकि पंचायती राज अधिनियम, 1994 में व्यापक अधिकार दिए गए। अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए भेदभाव के आरोप को खारिज कर दिया और कहा कि पंचायतें और नगर पालिकाएं अलग-अलग संवैधानिक संस्थाएं हैं।

हालांकि, याचिकाएं खारिज कर दी गईं लेकिन अदालत ने जोर दिया कि राज्य सरकार और चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में असफल रहे हैं। अदालत ने कहा कि समय पर चुनाव कराना लोकतांत्रिक व्यवस्था की आत्मा है और इसमें कोई भी चूक जनता के विश्वास को चोट पहुंचाती है।

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