यदि पुलिस जांच में आरोपी की कथित अपराध में संलिप्तता नहीं पाई जाती है तो LOC जारी रखना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2024-12-12 06:51 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी लुकआउट सर्कुलर और गिरफ्तारी वारंट को रद्द करने का निर्देश दिया है जिसे पुलिस द्वारा कथित अपराध में संलिप्त नहीं पाया गया। यह निर्णय देते हुए कि जब पुलिस स्वयं उस पर मुकदमा चलाने में रुचि नहीं रखती है तो LOC जारी रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ एक बेटे और एक मां द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके खिलाफ महिलाओं के खिलाफ क्रूरता का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज की गई। इसमें उनके खिलाफ एलओसी वापस लेने के उनके आवेदन को खारिज करने वाले आदेश को चुनौती दी गई।

याचिकाकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज करने के बाद जांच के समय दोनों के खिलाफ LOC के साथ-साथ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किए गए। इसके बाद मां की कोई संलिप्तता साबित नहीं हुई। इसलिए जांच कार्यालय ने सरकारी वकील को एक पत्र लिखा कि गिरफ्तारी वारंट को वापस लेने के लिए एक आवेदन दायर किया जाना चाहिए।

जैसा कि न्यायालय ने रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए उजागर किया कि यह स्पष्ट नहीं था कि ऐसा आवेदन दायर किया गया था या नहीं। यदि दायर किया भी गया तो उक्त आवेदन पर निर्णय लिया गया या नहीं। इन परिस्थितियों में याचिकाकर्ताओं ने एलओसी के साथ-साथ गिरफ्तारी वारंट को वापस लेने के लिए ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन इसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि ऐसा आवेदन आईओ द्वारा दायर किया गया था और इस पर निर्णय लिया जाएगा। हालांकि ट्रायल कोर्ट द्वारा ऐसे किसी आवेदन पर निर्णय नहीं लिया गया।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जांच अधिकारी द्वारा मां की कोई संलिप्तता नहीं पाई गई। इसलिए अभियोजन पक्ष उन पर मुकदमा चलाने के लिए इच्छुक नहीं था। इसलिए उनके खिलाफ LOC के साथ-साथ गिरफ्तारी वारंट भी वापस लेने योग्य थे।

न्यायालय ने आगे कहा कि मां के खिलाफ एलओसी खोलने के लिए कोई भी स्थिति मौजूद नहीं थी न ही उनके खिलाफ कोई जांच लंबित थी।

“कानून का यह स्थापित प्रस्ताव है कि ऐसे आरोपी व्यक्ति के खिलाफ LOC खोला जा सकता है जो जानबूझकर गिरफ्तारी से बच रहा है और गैर-जमानती वारंट और अन्य कठोर उपायों के बावजूद ट्रायल कोर्ट में पेश नहीं हो रहा है। इनमें से किसी भी स्थिति के साथ आरोपी के ट्रायल/गिरफ्तारी से बचने के लिए देश छोड़ने की संभावना होनी चाहिए। याचिकाकर्ता नंबर 2 के मामले में इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद नहीं है न तो उसके खिलाफ कोई जांच लंबित है और न ही उसके खिलाफ कोई आरोप-पत्र पेश किया गया है और जांच अधिकारी ने खुद उसके स्थायी गिरफ्तारी वारंट को वापस लेने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है”

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकारों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और फैसला सुनाया कि मां के खिलाफ एलओसी जारी रखना अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

तदनुसार मां के खिलाफ एलओसी को रद्द करने का निर्देश दिया गया।

टाइटल: सनी जैन और अन्य बनाम राजस्थान राज्य

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