LIC को कोई नुकसान नहीं हुआ: राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारी सेवा में एजेंट की रिपोर्ट न करने पर अधिकारी के खिलाफ वसूली आदेश रद्द किया

Update: 2025-01-17 06:10 GMT
LIC को कोई नुकसान नहीं हुआ: राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारी सेवा में एजेंट की रिपोर्ट न करने पर अधिकारी के खिलाफ वसूली आदेश रद्द किया

राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें उसने अपने विकास अधिकारियों के खिलाफ वसूली कार्यवाही शुरू की थी। यह कार्रवाई एक ऐसे एजेंट द्वारा किए गए कारोबार से अर्जित धन के संबंध में की गई, जो LIC के लिए काम करने के लिए अधिकृत नहीं था, क्योंकि वह सरकारी सेवा में था।

जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा,

"जैसा भी हो, न तो LIC को कोई नुकसान हुआ और न ही उसने उक्त बस्ती राम रोज/एजेंट के खिलाफ कोई कदम उठाया। उसके नियोक्ता के समक्ष उचित शिकायत दर्ज करके कि सरकार के लिए काम करते हुए उसने एजेंट के रूप में काम करके अपने सेवा नियमों का उल्लंघन किया। इतना ही नहीं यह पता चलता है कि जहां तक ​​एजेंट के रूप में बस्ती राम की सेवाओं का सवाल है, उसने LIC को व्यवसाय दिलाया। यह कहने में कोई संदेह नहीं है कि एक कमर्शियल संगठन होने के नाते LIC को एजेंट के माध्यम से अधिक व्यवसाय मिला। इसलिए यह काफी पेचीदा है कि LIC तीसरे पक्ष के खिलाफ कार्रवाई करके अपने हित के खिलाफ क्यों काम करेगी, जो यदि बिल्कुल भी अपने नियोक्ता के साथ सेवा कोड का उल्लंघन करने का अपराधी था।”

न्यायालय याचिकाकर्ता के खिलाफ वसूली कार्यवाही शुरू करने के LIC के आदेश को चुनौती देने वाली विकास अधिकारी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ता को LIC से एक पत्र मिला जिसमें पता चला कि उसके अधीन काम करने वाले एजेंटों में से एक सरकारी कर्मचारी था।

याचिकाकर्ता से जवाब मांगा गया कि उसने सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद एजेंट को काम करने की अनुमति क्यों दी। याचिकाकर्ता पर निंदा का जुर्माना लगाने के बाद अनधिकृत एजेंट के माध्यम से किए गए व्यवसाय से उत्पन्न प्रोत्साहन बोनस और अतिरिक्त परिवहन राशि की वसूली के लिए याचिकाकर्ता से एक और आदेश पारित किया गया।

याचिकाकर्ता ने कहा कि जब एजेंट ने काम करना शुरू किया तो वह बेरोजगार था। बाद में ही उसे सरकारी नौकरी मिली, जिसके बारे में याचिकाकर्ता को पता नहीं था। एक बार निंदा का जुर्माना लगाने के बाद आगे की वसूली की कोई आवश्यकता नहीं थी।

LIC के वकील ने प्रस्तुत किया कि निंदा और वसूली अलग-अलग मुद्दे थे, जहां वसूली आदेश अनधिकृत एजेंट द्वारा संचालित एजेंसी के कारण किए गए अनुचित भुगतानों को वापस लेने की मांग करता था। दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सरकारी सेवा में शामिल होने के बाद अनधिकृत एजेंट को उसकी सेवाओं के लिए दिए गए वित्तीय लाभ याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने का एकमात्र आधार थे।

न्यायालय ने आगे कहा कि LIC द्वारा इस तथ्य का कोई सबूत नहीं दिया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा लागू सेवा नियमों का उल्लंघन किया गया या याचिकाकर्ता के कथित अपराध के कारण LIC को कोई नुकसान हुआ। न्यायालय ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना या उसके खिलाफ कोई विभागीय जांच किए बिना या सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना केवल कलम के वार से एकतरफा फैसला पारित कर दिया गया।

तदनुसार, वसूली आदेश रद्द कर दिया गया।

केस टाइटल: पदम चंद प्रजापत बनाम LIC और अन्य

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