धारा 145 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट की भूमिका सार्वजनिक शांति सुनिश्चित करना है, न कि सिविल कोर्ट की तरह संपत्ति विवादों का निपटारा करना: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि धारा 145 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट की भूमिका संपत्ति के कब्जे को लेकर विवाद होने पर सार्वजनिक शांति सुनिश्चित करना है और संपत्ति विवादों को निपटाने का आदेश नहीं देना है, जो सिविल न्यायालयों के दायरे में आते हैं।
अदालत ने यह टिप्पणी इस बात पर गौर करने के बाद की कि वर्तमान मामले में विवादित भूमि को लेकर संबंधित न्यायालय के समक्ष पक्षों के बीच पहले से ही दीवानी कार्यवाही चल रही थी और इसलिए मजिस्ट्रेट की भूमिका सीमित थी।
संदर्भ के लिए धारा 145 CrPC में यह प्रावधान है कि जब एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट का मानना है कि भूमि/जल को लेकर कोई संघर्ष है, जो शांति भंग होने की संभावना है तो लिखित आदेश में इस तरह के विश्वास के कारणों को बताने के बाद मजिस्ट्रेट संबंधित पक्षों को अदालत में आने और लिखित बयान प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है कि वर्तमान में विवादित संपत्ति किसके पास है। भूमि या जल में इमारतें, बाजार, मत्स्य पालन, फसलें या भूमि की अन्य उपज और ऐसी किसी भी संपत्ति का किराया या लाभ शामिल हैं।
जस्टिस अरुण मोंगा की सिंगल जज पीठ ने अपने आदेश में रेखांकित किया,
"जब संपत्ति के संबंध में दीवानी मुकदमे पहले से ही लंबित हैं तो धारा 145 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट को संपत्ति के संबंध में पक्षों के नागरिक/कब्जे/स्वामित्व अधिकारों पर निष्कर्ष निकालने में देरी नहीं करनी चाहिए। धारा 145 का उद्देश्य संपत्ति के कब्जे को लेकर विवाद होने पर सार्वजनिक शांति और व्यवस्था बनाए रखना है, न कि सही मालिक का निर्धारण करना।”
अदालत भूमि विवाद से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एडिशनल सेशन जज के आदेश को चुनौती दी गई, जिसने प्रतिवादी की पुनर्विचार याचिका स्वीकार करते हुए संबंधित उप मंडल मजिस्ट्रेट (SDM) के विवादित भूमि को अस्थायी रूप से कुर्क करने और अंतरिम उपाय के रूप में रिसीवर नियुक्त करने का आदेश रद्द कर दिया।
कृषि भूमि को लेकर याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाद उत्पन्न हुआ, जिसकी जांच संबंधित एसएचओ ने की, जिन्होंने एसडीएम के समक्ष धारा 145 CrPC के तहत शिकायत दर्ज की थी। अंतरिम उपाय के रूप में SDM ने भूमि की अस्थायी कुर्की और रिसीवर की नियुक्ति का आदेश दिया। प्रतिवादी की पुनर्विचार याचिका में एडिशनल सेशन जज ने आदेश रद्द कर दिया, इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।
कोर्ट ने कहा कि यह पता चला है कि सिविल कार्यवाही न्यायालय में विचाराधीन है/थी, क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा राजस्व न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया। याचिकाकर्ता ने अन्य मुकदमे में प्रतिवाद भी दायर किया, जिसमें पक्षों पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए अंतरिम निषेधाज्ञा भी दी गई।
इस प्रकाश में न्यायालय ने कहा,
"एक बार जब सिविल कार्यवाही पूरी तरह से प्रगति पर होती है तो SDM की भूमिका सीमित होती है। रिसीवर की नियुक्ति जैसे आदेश जारी करना सीमाओं का अतिक्रमण करने के समान है। मजिस्ट्रेट की भूमिका शांति के आसन्न उल्लंघन को संभालना है न कि संपत्ति विवादों को निपटाना, जो सिविल न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में है। इसके बजाय, यदि शांति भंग को रोकने की आवश्यकता है तो मजिस्ट्रेट CrPC की धारा 107 के तहत उपाय कर सकता है।"
उपरोक्त के मद्देनजर हाईकोर्ट ने SDM का आदेश रद्द करने के एडिशनल सेशन जज के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाया। तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: मुंशी राम बनाम राजस्थान राज्य