वारंट जारी होने से पहले किसी दूर की जगह चले जाना वाला व्यक्ति फरार नहीं होता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Update: 2024-04-08 06:52 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति गिरफ्तारी के वारंट से पहले किसी दूर की जगह पर चला गया है तो उसे फरार या गिरफ्तारी से बचने वाला नहीं कहा जा सकता।

गौरतलब है कि सीआरपीसी की धारा 82 में कहा गया,

"यदि किसी कोर्ट को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के बाद या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया, फरार हो गया या खुद को छिपा रहा है जिससे ऐसे वारंट को निष्पादित नहीं किया जा सके तो ऐसा न्यायालय लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है, जिसमें उसे किसी विशिष्ट स्थान पर और निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने की आवश्यकता होगी, जो ऐसी उद्घोषणा प्रकाशित होने की तिथि से कम से कम तीस दिन की अवधि का होगा।"

गिरफ्तारी से बचने के लिए व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत घोषित अपराधी घोषित किया गया। हालांकि कोर्ट ने पाया कि वारंट जारी होने से पहले ही वह भारत में एक पते पर विदेश में रह रहा है।

जस्टिस संदीप मौदगिल ने उद्घोषणा आदेश रद्द करते हुए कहा,

"किसी व्यक्ति को वारंट के निष्पादन से फरार या बचने वाला नहीं कहा जा सकता, जब वह वारंट जारी होने से पहले किसी दूर के स्थान पर चला गया हो।"

वहीं एमएसआर गुंडप्पा बनाम कर्नाटक राज्य (1977 सीआर एलजे एनओसी 187) पर भरोसा किया गया, जिसमें यह माना गया कि गिरफ्तारी वारंट जारी होने से पहले ही विदेश चले गए किसी व्यक्ति को उस वारंट के निष्पादन को बाधित करने के इरादे से फरार या खुद को छिपाने वाला नहीं कहा जा सकता।

न्यायालय सीआरपीसी की धारा 482 के तहत सुच्चा सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें एडिशनल चीफ न्यायिक मजिस्ट्रेट एसबीएस नगर द्वारा 2015 में पारित उद्घोषणा आदेश को रद्द करने की मांग की गई, जो आईपीसी की धारा 420, 406 और 120-बी से संबंधित मामले में है।

यह तर्क दिया गया कि 2014 में शिकायतकर्ता को तलाक के लिए याचिका और सम्मन की तामील की गई। इसके बाद शिकायतकर्ता ने 2014 में एक शिकायत दर्ज की, जिसके आधार पर याचिकाकर्ता उसकी पत्नी उसके बेटे और बेटी के खिलाफ वर्तमान एफ आई आर दर्ज की गई।

सिंह ने कहा कि उन्हें अपने बेटे से पता चला कि उन्हें भारत में पते पर रहते हुए दिखाया गया, जबकि वह ब्रिटिश नागरिक हैं और 1988 से विदेश में रह रहे हैं।

दूसरी ओर, यह कहा गया कि शिकायत में उल्लिखित गलत पते के कारण शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से प्रतिकूल उद्घोषित व्यक्ति कार्यवाही शुरू करने में कामयाबी हासिल की, जो सीआरपीसी की धारा 82 के प्रावधान का उल्लंघन है।

आगे यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति न तो जानबूझकर है, क्योंकि एफआईआर और शिकायत दर्ज होने से पहले वह 1988 में यूके में बसने के बाद से भारत में नहीं रहा है।

सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता 1988 से यूके का निवासी है, यानी संबंधित एफआईआर दर्ज होने से बहुत पहले से वह रह रहा है।

मामले में आगे कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 82 के अनुसार न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के खिलाफ उद्घोषणा जारी की जा सकती है, यदि यह उचित रूप से माना जाता है कि जिस व्यक्ति के लिए वारंट जारी किया गया, वह फरार हो गया है या छिप रहा है जिससे वारंट का तामील करना असंभव हो जाता है।

यही नहीं मामले की फाइल और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों को देखते हुए जस्टिस मौदगिल ने कहा,

"यह अनुमान लगाया जा सकता है कि याचिकाकर्ता यू.के. का निवासी है और वर्ष 1988 से यानी 28 वर्षों से यू.के. का नागरिक है। इसके अलावा यह बिल्कुल स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता को गांव ददियाल जिला होशियारपुर का निवासी दिखाया गया, लेकिन सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए याचिकाकर्ता का निवास यू.के. में है। इसलिए उसके लिए जानबूझकर कानून की प्रक्रिया से बचने का कोई अवसर नहीं है, क्योंकि उसे कभी भी कानून के अनुसार सेवा नहीं दी गई।"

परिणामस्वरूप न्यायालय ने कहा कि उद्घोषणा आदेश कानून की दृष्टि से खराब है और टिकाऊ नहीं है।

केस टाइटल- सुच्चा सिंह बनाम पंजाब राज्य

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