तलाक की प्रतीक्षा कर रही महिला MTP Act के तहत प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करा सकती है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
यह देखते हुए कि तलाकशुदा और तलाक की प्रतीक्षा कर रही महिला की स्थिति अलग नहीं है, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने महिला को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP Act) के तहत प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कराने की अनुमति दी।
MTP Act दो रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा 20 सप्ताह तक की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कराने की अनुमति देता है।
हालांकि 20 सप्ताह से 24 सप्ताह से अधिक की अवधि में केवल कुछ श्रेणियों की महिलाओं को ही प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कराने की अनुमति है, जिनमें तलाकशुदा या विधवा महिलाएं भी शामिल हैं।
न्यायालय ने माना कि महिला को उसके पति ने उसके माता-पिता के घर पर छोड़ दिया था।
जस्टिस विनोद भारद्वाज ने कहा,
"प्रेग्नेंसी के दौरान वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन अवधारणा है, जिसे सही मायने में समझने की आवश्यकता है। हालांकि स्थिति में परिवर्तन को तलाक या विधवापन की परिणति के कारण स्थिति के विच्छेदन की ओर ले जाने वाले पूर्ण परिवर्तन के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए।"
न्यायाधीश ने कहा,
"ऐसी परिस्थिति, जिसमें महिला को न्यूनतम प्रतीक्षा अवधि के कारण तलाक के लिए याचिका दायर करने से रोका जाता है लेकिन वह गर्भवती हो जाती है और उसने अपनी शादी रद्द करने का फैसला किया है, उसे नुकसानदेह स्थिति में डालने का आधार नहीं हो सकता। वह मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से पहले से ही उस स्तर पर है, जहां वैवाहिक स्थिति बदलने के लिए निर्धारित है, लेकिन वैधानिक रोक के लिए।"
कोर्ट ने कहा कि तलाक में सफल होने वाली महिला के लिए जो परिस्थितियां होती हैं, वे तलाक का इंतजार कर रही महिला से अलग नहीं होतीं।
ये टिप्पणियां 28 सप्ताह की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की मांग करने वाली महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जो MTP Act के अनुसार प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अधिकतम स्वीकार्य सीमा है।
महिला ने जनवरी 2024 में शादी की और कथित तौर पर कम दहेज लाने के कारण उसके ससुराल वालों ने उसे छोड़ दिया। उसका पति उसे बताए बिना दुबई चला गया और उसने पत्नी से अपना संपर्क भी शेयर नहीं किया।
यह प्रस्तुत किया गया कि वह हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) के तहत अपने पति के साथ वैवाहिक संबंधों को समाप्त करना चाहती थी लेकिन उसे शादी की तारीख से एक वर्ष की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि तक इंतजार करना पड़ा।
MTP बोर्ड ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुशंसा हीं की, क्योंकि भ्रूण सामान्य था। 24 सप्ताह पार कर चुका था, जो प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के लिए अधिकतम स्वीकार्य सीमा है।
कोर्ट ने शर्मिष्ठा चक्रवर्ती और अन्य बनाम भारत संघ सचिव और अन्य, 2017 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए रेखांकित किया कि महिला का प्रजनन विकल्प रखने का अधिकार उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अविभाज्य हिस्सा है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित है। उसे अपनी शारीरिक अखंडता रखने का पवित्र अधिकार है।”
न्यायाधीश ने कहा कि महिला ने विभिन्न अधिकारियों के साथ-साथ इस न्यायालय के समक्ष बार-बार विवाह को रद्द करने की अपनी मंशा दोहराई है।
कोर्ट ने कहा,
"इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता को उसके पति ने उसके पैतृक घर पर छोड़ दिया, जो उसे बताए बिना 01.05.2024 को दुबई चला गया। उसके बाद उसने याचिकाकर्ता या उसके परिवार के सदस्यों से संपर्क करने का कोई प्रयास नहीं किया हुआ। याचिकाकर्ता स्वयं अपने माता-पिता पर निर्भर है। उसके लिए देखभाल और आवश्यक सुविधाएं और शिक्षा प्रदान करने के लिए अतिरिक्त खर्च वहन करना संभव नहीं है। फिर याचिकाकर्ता ने एक वर्ष की वैधानिक अवधि बीत जाने के बाद कानून के अनुसार तलाक के लिए याचिका दायर करके अपनी शादी को रद्द करने का सचेत निर्णय लिया है।”