52A NDPS Act | प्रतिबंधित पदार्थ तभी प्राथमिक साक्ष्य बन जाता है, जब मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी जांच की जाती है: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) के तहत व्यक्ति की दोषसिद्धि खारिज कर दी। इसमें कहा गया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि जब बल्क से सैंपल लिया गया था, तब मजिस्ट्रेट मौजूद थे, इसलिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रतिबंधित पदार्थ को प्राथमिक साक्ष्य नहीं माना जा सकता।
NDPS Act की धारा 52 (4) का हवाला देते हुए जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस ललित बत्रा की खंडपीठ ने कहा,
"न्यायालय में प्रमाणित सूची का प्रस्तुतीकरण मात्र प्राथमिक साक्ष्य नहीं बन सकता, बल्कि तभी प्राथमिक साक्ष्य बन सकता है, जब संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रतिनिधि पार्सल के आरेखण के समय उपयुक्त लैब में जांच की जाए या तो मजिस्ट्रेट प्रतिनिधि पार्सल के साथ स्वयं लैब में जाएं या किसी राजपत्रित अधिकारी को सशक्त पुलिस अधिकारी के साथ प्रयोगशाला में प्रासंगिक जांच के लिए ले जाएं।"
न्यायालय ट्रायल कोर्ट की सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अपीलकर्ता को 2022 में NDPS Act की धारा 15 के तहत दोषी ठहराया गय और 12 वर्ष के कठोर कारावास और 1 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई।
यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता कुलदीप सिंह उर्फ कीपा पोस्त भूसी के कारोबार में लिप्त था और गुप्त सूचना के आधार पर उसे उसकी कार में 640 किलोग्राम पोस्त भूसी के साथ पकड़ा गया था। अभियोजन पक्ष के 8 गवाहों और प्रतिबंधित पदार्थ की एफएसएल रिपोर्ट की जांच के बाद सिंह को NDPS Act की धारा 15 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया।
दंड को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एफएसएल रिपोर्ट के अलावा अभियोजन पक्ष ने न तो सैंपल कपड़ा पार्सल को साक्ष्य के रूप में पेश किया, न ही जांचे गए सैंपल कपड़ा पार्सल को पेश किया गया या साक्ष्य के रूप में पेश किया गया।
प्रस्तुतियां सुनने और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर विचार करने के बाद अदालत ने नोट किया कि पोस्त की भूसी को मालखाना के प्रभारी द्वारा नष्ट कर दिया गया।
खंडपीठ ने कहा,
“संबंधित थाने के मालखाना प्रभारी के पास जो सामग्री बची थी, उसका कोई विनाश नहीं किया जा सका, क्योंकि अधिसूचना के अनुसार केवल 10 मीट्रिक टन पोस्त की भूसी को नष्ट किया जाना था लेकिन 10 मीट्रिक टन से कम वजन वाली पोस्त की भूसी, जो कि इस मामले में पोस्त की भूसी की मात्रा है, उसको नष्ट करने की आवश्यकता नहीं थी। इसलिए संबंधित जांच अधिकारी का यह दायित्व था कि यदि संबंधित एफएसएल में भी जांच की गई सामग्री को संबंधित रासायनिक परीक्षक द्वारा नष्ट कर दिया जाता है तो संबंधित रासायनिक विश्लेषक द्वारा उस पर राय बनाने के लिए थोक से सैंपल पार्सल तैयार किए जाते। हालांकि, ऐसा नहीं किया गया, जिससे अभियोजन पक्ष के मामले की प्रभावशीलता पर असर पड़ता है।"
न्यायालय ने आगे कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि थोक से प्रतिबंधित सामग्री का सैंपल लेने के समय NDPS Act की धारा 52(4) के अनुपालन में मजिस्ट्रेट मौजूद थे और उसी सैंपल की लैंब में जांच की गई। परिणामस्वरूप, न्यायालय ने प्रतिबंधित सामग्री को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में खारिज कर दिया।
उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और अपीलकर्ता को बरी कर दिया।
अपील का निपटारा करते हुए न्यायालय ने पंजाब सरकार के गृह सचिव और हरियाणा सरकार के गृह सचिव को 6 महीने में मालखाना की क्षमता बढ़ाने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- कुलदीप सिंह उर्फ कीपा बनाम पंजाब राज्य