दहेज की रकम की वसूली न होना पति को अग्रिम जमानत देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Update: 2024-02-15 07:48 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने माना कि दहेज के सामान की वसूली न होना आमतौर पर क्रूरता के आरोपी पति या उसके रिश्तेदारों को अग्रिम जमानत देने की याचिका अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता।

ये टिप्पणियां पति की याचिका पर आईं, जो आईपीसी की धारा 406, 498-ए के तहत अपनी पत्नी पर कथित रूप से क्रूरता करने के अपराध के लिए अग्रिम जमानत की मांग कर रहा था। जमानत का विरोध करते हुए पत्नी ने तर्क दिया कि दहेज का पूरा सामान अभी याचिकाकर्ता से बरामद नहीं हुआ, जो जानबूझकर उन्हें सौंपने से बच रहा है।

जस्टिस सुमीत गोयल की एकल पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा,

"आम तौर पर अदालत अग्रिम जमानत के लिए याचिका पर विचार करने के चरण में वसूली के दायरे में प्रवेश नहीं कर सकती, क्योंकि ऐसा चरण अभी शुरुआती है और यह अधिक होगा। यह उचित है कि सौंपे जाने/वसूली आदि के ऐसे प्रश्न पर ट्रायल कोर्ट द्वारा उचित चरण में विचार किया जाए। स्त्री-धन की प्रकृति ही इसे सामान्य धन विवाद के साथ अतुलनीय बनाती है। इसलिए अग्रिम जमानत के लिए मामला आईपीसी की धारा 498-ए को धोखाधड़ी आदि से संबंधित अन्य आपराधिक मामले की तुलना में उच्च स्तर की सहानुभूति और संवेदनशीलता का उपयोग करके तदनुसार निपटाने की आवश्यकता है, जिसमें आम तौर पर पैसे का सवाल शामिल होता है।

पत्नी ने कहा कि जब शादी हुई थी तो पर्याप्त दहेज दिया गया और शादी पर सोने के गहने आदि सहित लगभग 25 लाख रुपये खर्च किए गए। यह तर्क दिया गया कि आरोपी कभी भी इससे संतुष्ट नहीं था और उसकी शादी के तुरंत बाद उसने कम दहेज लाने के लिए याचिकाकर्ता सहित उसके ससुराल वालों द्वारा उसके साथ दुर्व्यवहार किया, परेशान किया और ताना मारा।

यह प्रस्तुत किया गया कि पत्नी के साथ शारीरिक क्रूरता भी की गई और याचिकाकर्ता जानबूझकर अपनी पत्नी को दहेज का सामान नहीं सौंप रहा है।

दलीलों पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि दहेज के सामान की बरामदगी न होना आम तौर पर पति या उसके रिश्तेदारों को अग्रिम जमानत देने की याचिका अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता।

हालांकि, यह नोट किया गया कि अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करने के लिए आरोपी का आचरण प्रासंगिक कारक है। इस तरह के आचरण में दहेज के सामान की वसूली के लिए आरोपी द्वारा सहयोग शामिल होगा।

यह माना गया कि असाधारण मामलों में परिस्थितियों के आधार पर अदालत अभियुक्त को अदालत में जमा करने या शिकायतकर्ता-पत्नी को दहेज के सामान के लिए उचित राशि भेजने का निर्देश दे सकती है, जो कि पूरी तरह से मामले-दर-मामले के आधार पर है।

वर्तमान मामले में अदालत ने कहा कि यह न तो राज्य का रुख है और न ही शिकायतकर्ता का कि याचिकाकर्ता ने गवाहों को धमकी देकर या जांच को प्रभावित करके अदालत द्वारा अंतरिम जमानत की रियायत का दुरुपयोग किया।

हालांकि, राज्य के वकील और शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दहेज के सामान की पूरी वसूली अभी तक नहीं हुई।

ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय ने अग्रिम जमानत के आदेश को पूर्ण बनाने का निर्देश दिया और याचिका स्वीकार की।

याचिकाकर्ता के वकील-कन्हिया सोनी

शिकायतकर्ता की ओर से वकील- हरमनप्रीत कौर और नरेश पॉल।

केस टाइटल- XXX बनाम XXX

साइटेशन- लाइव लॉ (पीएच) 43 2024

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