पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 2 वर्षीय बेटे को यौन क्रियाकलापों में धकेलने के आरोप में गिरफ्तार मां को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मां को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया, जिस पर अपने कथित प्रेमी के साथ अपने 2 वर्षीय बेटे का यौन शोषण करने का आरोप है। न्यायालय ने कहा कि मां की भूमिका बच्चे की देखभाल और पालन-पोषण करना है। इस मानक से कोई भी विचलन, विशेष रूप से इस तरह से कि जिससे उसके अपने बच्चे को नुकसान पहुंचे कानून के तहत सख्त कार्रवाई को आमंत्रित करता है।
जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,
"याचिकाकर्ता की कथित हरकतें और आचरण, विशेष रूप से पीड़ित बच्चे की मां के रूप में बेहद चिंताजनक हैं। इसने समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालते हुए शर्मिंदगी पैदा की है। यदि ऐसी हरकतें सच साबित होती हैं तो यह न केवल एक मां के रूप में उसके कर्तव्यों का उल्लंघन है बल्कि मां-बच्चे के रिश्ते में निहित कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों के प्रति उपेक्षा को भी दर्शाता है।"
न्यायालय उस मां द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिस पर अपने 2 वर्षीय बेटे को उसके कथित प्रेमी के साथ अवैध गतिविधियों में धकेलने का आरोप है।
शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए बयान पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2012, 2019 (POCSO Act) की धारा 3, 4, 11 (ii) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2012 की धारा 6, 10, 15, 16 के तहत FIR दर्ज की गई, जिसने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी (यहां याचिकाकर्ता) ने लगभग 04 साल पहले सह-आरोपी के साथ अवैध संबंध विकसित किए।
शिकायतकर्ता के अनुसार उसने हाल ही में अपनी पत्नी के मोबाइल फोन पर अपने 02 वर्षीय बेटे की दो परेशान करने वाली तस्वीरें देखीं। इन तस्वीरों में याचिकाकर्ता का कथित प्रेमी छोटे बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करता हुआ दिखाई दे रहा है।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध लगाए गए कथित आपराधिक कृत्य से समाज के व्यापक ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ने की प्रवृत्ति है।
न्यायालय ने कहा कि यह उल्लेख करना उचित है कि अग्रिम जमानत की राहत का उद्देश्य व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है। अग्रिम जमानत देने की याचिका पर निर्णय लेते समय न्यायालय को व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक हितों की रक्षा के बीच संतुलन बनाना होगा।
जस्टिस गोयल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि न्यायालय को अपराध की गंभीरता, अभियुक्त की भूमिका, समाज पर पड़ने वाले प्रभाव और निष्पक्ष तथा स्वतंत्र जांच की आवश्यकता पर भी विचार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि राहत से जांच एजेंसी के स्वतंत्र, निष्पक्ष जांच करने के अधिकारों में अनावश्यक बाधा नहीं आनी चाहिए।
आरोपों की गंभीरता और याचिकाकर्ता के आचरण की प्रकृति को देखते हुए न्यायालय ने कहा कि इस तरह के अपराध की उचित जांच की जानी चाहिए और सच्चाई को रिकॉर्ड में लाया जाना चाहिए।
जज ने आगे कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई भी तथ्य नहीं है, जिससे यह माना जा सके कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है।
कहा गया कि कथित अपराध की प्रकृति और गंभीरता तथा याचिकाकर्ता को दी गई विशिष्ट भूमिका से यह निष्कर्ष निकलता है कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत नहीं मिलनी चाहिए।
उपर्युक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।
टाइटल: एस. बनाम एक्स